सुप्रीम कोर्ट का फैसला सेशन जज के फैसले को बहाल किया: सतबीर सिंह बनाम राजेश कुमार धारा 319 CrPC अपडेट मामले में बड़ा……
सुप्रीम कोर्ट का फैसला सेशन कोर्ट को निर्देश दिया है कि वह राजेश कुमार और नीरज के धारा 319 CrPC अपडेट खिलाफ ट्रायल शीघ्र पूरा करे। साथ ही, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस फैसले के कोई भी टिप्पणी भविष्य के ट्रायल को प्रभावित नहीं करेगी।
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सुप्रीम कोर्ट का फैसला सेशन जज के फैसले
1 अप्रैल 2025, नई दिल्ली — भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में सतबीर सिंह बनाम राजेश कुमार एवं अन्य के आपराधिक मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस फैसले में हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए सेशन जज के निर्णय को बहाल किया गया है। यह मामला धारा 319 CrPC के तहत अतिरिक्त आरोपियों को समन करने से जुड़ा है, जिसमें चिकित्सा साक्ष्य और पुलिस जाँच रिपोर्ट्स की भूमिका प्रमुख रही।
मामले की पृष्ठभूमि: वॉलीबॉल मैच से शुरू हुआ विवाद
9 फरवरी 2020 को करनाल के रसूलपुर खुर्द गाँव में वॉलीबॉल मैच के दौरान सतबीर सिंह और मुकेश के बीच विवाद हुआ।
सतबीर सिंह (भारतीय सेना में कार्यरत) ने आरोप लगाया कि मुकेश ने उन पर चाकू से हमला किया, जबकि राजेश कुमार, नीरज, सागर @ बिट्टू और अंकित ने लाठी-डंडों से प्रहार किए।
सतबीर को गंभीर चोटें आईं, जिनमें छाती और कमर पर चाकू के घाव शामिल थे। चिकित्सा रिपोर्ट के अनुसार, छाती की चोट जानलेवा थी।
कानूनी प्रक्रिया: धारा 319 CrPC का उपयोग
सितंबर 2021 में सेशन जज ने सतबीर के आवेदन को स्वीकार करते हुए राजेश, नीरज, सागर और अंकित को अतिरिक्त आरोपी बनाने का आदेश दिया।
हाई कोर्ट ने मार्च 2024 में इस आदेश को पलट दिया, जिसके बाद सतबीर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
1 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि सेशन जज का निर्णय “तार्किक और कानूनी रूप से सही” था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रमुख बिंदु
चिकित्सा साक्ष्य की भूमिका: हाई कोर्ट ने तर्क दिया कि सागर और अंकित द्वारा लाठी से मारने के आरोप चिकित्सा रिपोर्ट से पुष्ट नहीं होते। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह निष्कर्ष सिर्फ ट्रायल के दौरान ही तय किया जा सकता है।
पुलिस जाँच रिपोर्ट्स: राजेश और नीरज के खिलाफ तीन DSPs की रिपोर्ट्स में कोई सबूत नहीं मिले, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें “अंतिम निर्णायक” नहीं माना।
Hardeep Singh केस का संदर्भ: सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि धारा 319 CrPC के तहत समन करने के लिए “प्राइमा फेसी” से अधिक संतुष्टि आवश्यक है।
क्यों महत्वपूर्ण है यह फैसला?
न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता: यह फैसला दर्शाता है कि ट्रायल कोर्ट को अतिरिक्त आरोपियों को शामिल करने का अधिकार है, भले ही पुलिस जाँच में उनका नाम न आया हो।
पीड़ित के अधिकार: सतबीर सिंह जैसे पीड़ितों को न्याय दिलाने में यह मिसाल कायम करता है।
कानूनी मानकों की स्पष्टता: Hardeep Singh केस के सिद्धांतों को पुष्ट करता है, जिससे भविष्य के मामलों में मार्गदर्शन मिलेगा।
अगले कदम
सुप्रीम कोर्ट ने सेशन कोर्ट को निर्देश दिया है कि वह राजेश कुमार और नीरज के खिलाफ ट्रायल शीघ्र पूरा करे। साथ ही, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस फैसले के कोई भी टिप्पणी भविष्य के ट्रायल को प्रभावित नहीं करेगी।
निष्कर्ष
सतबीर सिंह मामला भारतीय न्याय प्रणाली में धारा 319 CrPC के उपयोग और पीड़ित-केंद्रित न्याय का एक उदाहरण है। यह फैसला न केवल कानूनी विद्यार्थियों बल्कि आम जनता के लिए भी शिक्षाप्रद है।
स्रोत: सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट (1 अप्रैल 2025), CRIMINAL APPEAL No. 1487 OF 2025
लेखक: Shruti Mishra , कानूनी विश्लेषक
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SHRUTI MISHRA
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