कविता पर FIR: सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दी मजबूती
सुप्रीम कोर्ट ने एक कविता के आधार दर्ज की गई FIR को रद्द करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का मूल आधार है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक कविता के आधार दर्ज की गई FIR को रद्द करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का मूल आधार है।
Criminal Appeal No.1545 of 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। मामला जामनगर में आयोजित एक सामूहिक विवाह कार्यक्रम में प्रस्तुत की गई कविता से जुड़ा था, जिसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के बाद धारा 196, 197, 299 BNS के तहत FIR दर्ज की गई।
कविता का अंग्रेजी अनुवाद:
“खून के प्यासे सुनो, अगर हक की लड़ाई में जुल्म मिले, तो हम जुल्म से इश्क निभाएंगे… लाशें हमारे अपनों की तुम्हारे सिंहासन के लिए खतरा हैं, तो हम उन्हें हंसते-हंसते दफनाएंगे।”
आरोप: कविता से साम्प्रदायिक तनाव फैलाने का इरादा।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओक और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान ने कहा कि “कविता में न तो किसी धर्म या समुदाय का उल्लेख है, न ही यह राष्ट्रीय एकता के लिए खतरनाक है।”
कोर्ट ने “मेन्स रिया (दुर्भावना) के अभाव को रेखांकित करते हुए कहा कि FIR दर्ज करना असंवैधानिक था।
परिणाम: FIR और संबंधित कार्यवाही रद्द।
अपराधिक मामले में नवयुवको को मिलि न्यायालय से जमानात मामला: जबलपुर जिला न्यायालय के माननीय प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने एक अहम फैसले में अविनाश रजक नामक युवक को जमानत दे दी है। F.I.R NO 541 /2024 थाना रांझी अंतरगत मामला R.C.T 3103385 /2024 से संबंधित है, जिसमें आरोपी पर भारतीय दंड संहिता की…
परिचय 10 फरवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने Civil Appeal No. 3066 of 2024 के तहत एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, जिसमें राजस्थान के एक कोमा पीड़ित प्रकाश चंद शर्मा को 48.7 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया। यह मामला न केवल 100% विकलांगता की गणना और चिकित्सा प्रमाणपत्रों के महत्व को उजागर करता है, बल्कि दीर्घकालिक न्यायिक देरी की समस्या पर भी प्रकाश डालता है।…
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “तकनीकी कानूनी पेंच” उपभोक्ताओं के अधिकारों पर भारी नहीं पड़ सकते। इस फैसले से यह संदेश मिलता है कि न्यायपालिका आम आदमी के हितों को प्राथमिकता देती है। अब एनसीडीआरसी को मामले की सुनवाई कर 6 महीने में फैसला सुनाना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने TADA मामले में CBI की अपील खारिज करते हुए स्वीकारोक्ति बयानों को अवैध ठहराया। जानें, कैसे प्रक्रियात्मक खामियों और फॉरेंसिक सबूतों के अभाव में बरी हुए आरोपी।
सड़क क्रोध मामला में सुप्रीम कोर्ट ने रविंदर कुमार की सजा को धारा 302 से घटाकर धारा 304 IPC कर दिया। जानें कैसे एक झगड़े ने बदल दी मामले की दिशा।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ पीठन्यायाधीश: माननीय न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा एवं डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव याचिकाकर्ता: अनिल पाठक एवं अन्य प्रतिवादी: उत्तर प्रदेश राज्य एवं 4 अन्य याचिकाकर्ता के वकील: श्री बृजेश कुमार केशरवानी, सुश्री ममता सिंह प्रतिवादी के वकील: एएसजीआई, श्री अनूप तिवारी, सीएससी, श्री कृष्ण मोहन अस्ताना मामले का सारांश: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने SARFAESI अधिनियम, 2002 के तहत…