सबूतों की कमी हत्या के आरोप में फंसे चारों आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने दी बरी: सबूतों में गंभीर खामियां
सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में इंदौर के किशनपुरा गंज में मोहन सिंह की हत्या के मामले में चारों आरोपियों को सबूतों की कमी के आधार पर बरी कर दिया। जानिए केस नंबर और निर्णय के बारे में।
Share this:
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to print (Opens in new window) Print
सबूतों की कमी
सुप्रीम कोर्ट ने इंदौर के किशनपुरा गंज हत्याकांड (2009) में चार आरोपियों—अरुण, राधेश्याम, नरेंद्र और रामलाल—को सबूतों की कमी के आधार पर बरी कर दिया। यह मामला ग्रामीण झगड़े और जमीन विवाद से जुड़ा था, जहां मोहन सिंह की गोली और पत्थरों से हत्या कर दी गई थी। ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने आरोपियों को दोषी ठहराया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गवाहों के बयानों में असंगतियों को आधार बनाते हुए फैसला पलट दिया।
केस का संक्षिप्त विवरण
अपीलकर्ता: अरुण, राधेश्याम, नरेंद्र, रामलाल
प्रतिवादी: मध्य प्रदेश पुलिस
केस नंबर: SLP(Cri) 5493/2024 (2025 INSC 406)
IPC धाराएं: 302 (हत्या), 34 (साझा इरादा)
6 नवंबर 2009 को मोहन सिंह को उनके भतीजे अभय और दोस्त विजय डोंगरे के साथ मोटरसाइकिल पर बैठे हुए हमला हुआ। पुलिस ने FIR 458/2009 दर्ज कर चार लोगों को गिरफ्तार किया। हालांकि, गवाहों के बयान और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में विसंगतियां थीं, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के प्रमुख आधार
गवाहों में असंगतियां: मुख्य गवाह देवी सिंह (पीड़ित के पिता) और मधुबाला (पत्नी) के बयान FIR और कोर्ट में अलग-अलग थे। पुलिस ने उनके बयान 7-17 दिन बाद दर्ज किए, जिससे उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध हुई।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट: डॉ. एल.एस. वर्मा ने स्वीकार किया कि मोहन सिंह को गोली नहीं लगी थी, बल्कि चाकू से चोट आई थी। इससे आरोपियों पर लगा फायरआर्म्स का आरोप खारिज हुआ।
बाल गवाह का बयान: 6 साल के अभय (भतीजा) का बयान समयरेखा के साथ मेल नहीं खाता था, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि केवल संदिग्ध गवाही के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह फैसला निर्दोषता के संदेह के सिद्धांत को मजबूती देता है।
Author Profile
SHRUTI MISHRA
Share this:
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to print (Opens in new window) Print
