वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007 – पिता के खिलाफ बेटे के निष्कासन पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007 के तहत बेटे के निष्कासन के मामले में हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। जानिए केस नंबर और कानूनी प्रावधान।
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संपत्ति विवाद में बेटे के निष्कासन पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
2025 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर से जुड़े पारिवारिक संपत्ति विवाद के एक मामले में फैसला सुनाया। संतोला देवी (75 वर्ष) ने अपने बेटे कृष्ण कुमार को घर से निकालने की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए निष्कासन को खारिज कर दिया।
केस का विवरण
अपीलकर्ता: संतोला देवी
प्रतिवादी: कृष्ण कुमार (बेटा) और उत्तर प्रदेश सरकार
केस नंबर: सिविल अपील संख्या ____/2025 (2025 INSC 404)
कानून: वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007
कल्लू मल और संतोला देवी के तीन बेटों और दो बेटियों के बीच संपत्ति बंटवारे को लेकर विवाद था। कल्लू मल ने बेटियों को दुकानें गिफ्ट कीं, जिसे बेटे ने चुनौती दी। संतोला देवी ने बेटे के मानसिक प्रताड़ना के आरोप में निष्कासन की मांग की, लेकिन कोर्ट ने कहा कि संपत्ति पर स्वामित्व विवादित होने के कारण निष्कासन संभव नहीं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुख्य बिंदु
संपत्ति का स्वामित्व: कोर्ट ने कहा कि कल्लू मल ने संपत्ति के कुछ हिस्से बेटियों को ट्रांसफर कर दिए, इसलिए यह साबित नहीं होता कि पूरी संपत्ति उनकी थी।
निष्कासन अंतिम विकल्प: वरिष्ठ नागरिक अधिनियम में निष्कासन केवल सुरक्षा के लिए हो सकता है, न कि संपत्ति विवाद के लिए।
सिविल कोर्ट में केस लंबित: कृष्ण कुमार ने सिविल कोर्ट में अपने 1/6 हिस्से का दावा किया है, जिसका निर्णय अभी बाकी है।
निष्कर्ष
इस फैसले ने पारिवारिक विवादों में कानून की सीमाओं को रेखांकित किया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम का उद्देश्य केवल भरण-पोषण सुनिश्चित करना है, न कि संपत्ति से निष्कासन।
Author Profile
SHRUTI MISHRA
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