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सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना मामले में मुआवजे की राशि बढ़ाई, परिवार को मिलेगा 33 लाख रुपये

नई दिल्ली, 7 फरवरी 2025: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक मोटर दुर्घटना मामले में मुआवजे की राशि को बढ़ाते हुए दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के परिवार को 33 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह फैसला मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ अपील पर सुनाया गया, जिसमें मुआवजे की राशि को कम कर दिया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 7 मार्च 2014 की एक दुर्दांत दुर्घटना से जुड़ा है, जब लक्ष्मण दास महौर (मृतक) अपने बेटे जुगल किशोर के साथ एक बस में सफर कर रहे थे। बस से उतरने के बाद वे सड़क पर पैदल चल रहे थे कि तभी एक बस (रजिस्ट्रेशन नंबर MP-06/B-1725) ने उन्हें टक्कर मार दी। इस हादसे में लक्ष्मण दास की मौके पर ही मौत हो गई। लक्ष्मण दास भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) में फोन मैकेनिक के रूप में कार्यरत थे और उनकी उम्र 57-58 वर्ष थी। उनके परिवार में पत्नी और चार बच्चे हैं, जिनमें से दो बेटे आर्थिक रूप से उन पर निर्भर नहीं थे, इसलिए उन्हें मुआवजे का दावा करने का अधिकार नहीं था। मृतक की पत्नी, एक बेटा और एक बेटी ने मुआवजे का दावा किया था।

ट्रिब्यूनल और हाई कोर्ट का फैसला

मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल ने मृतक के परिवार को 28,66,994 रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था, जिसमें निर्भरता के नुकसान, पत्नी को कंसोर्टियम का नुकसान और अंतिम संस्कार के खर्च शामिल थे। हालांकि, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस राशि को घटाकर 19,66,833 रुपये कर दिया। हाई कोर्ट ने यह तर्क दिया कि मृतक केवल 2 साल और सेवा में रहते और उसके बाद रिटायर हो जाते, इसलिए मुआवजे की गणना करते समय उनकी आय को पूर्व-सेवानिवृत्ति और सेवानिवृत्ति के बाद की अवधि में विभाजित किया जाना चाहिए। हाई कोर्ट ने निर्भरता के नुकसान के लिए मुआवजे की राशि को कम कर दिया और कंसोर्टियम के नुकसान के लिए दी जाने वाली राशि को 1,00,000 रुपये से घटाकर 40,000 रुपये कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सर्वोच्च न्यायालय ने हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि मुआवजे की गणना करते समय “स्प्लिट मल्टीप्लायर” (विभाजित गुणक) के सिद्धांत को लागू करना गलत था। कोर्ट ने कहा कि मुआवजे की गणना करते समय सामान्य तौर पर सरला वर्मा बनाम DTC के मामले में दिए गए सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए, जिसमें मल्टीप्लायर का उपयोग किया जाता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट ने मृतक की भविष्य की आय में होने वाली वृद्धि (फ्यूचर प्रॉस्पेक्ट्स) को ध्यान में नहीं रखा, जो कि प्रणय सेठी बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने मृतक की आय को 4,57,000 रुपये प्रति वर्ष मानते हुए, 9 के मल्टीप्लायर का उपयोग करके निर्भरता के नुकसान के लिए मुआवजे की गणना की। इसके अलावा, मृतक की उम्र को देखते हुए 15% की भविष्य की आय वृद्धि को भी जोड़ा गया। कोर्ट ने कंसोर्टियम के नुकसान के लिए मुआवजे की राशि को बढ़ाकर 1,20,000 रुपये कर दिया, क्योंकि मृतक की पत्नी, एक बेटा और एक बेटी तीनों दावेदार थे। अंतिम संस्कार और संपत्ति के नुकसान के लिए 15,000-15,000 रुपये की राशि को बरकरार रखा गया।

अंतिम राशि

सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे की कुल राशि 33,03,300 रुपये निर्धारित की, जिसे 33 लाख रुपये तक पूर्णांकित किया गया। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि यह राशि ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारित ब्याज दर पर दी जाएगी।

न्यायाधीशों की टिप्पणी

न्यायमूर्ति जे.के. महेश्वरी और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने मुआवजे की गणना करते समय स्प्लिट मल्टीप्लायर के सिद्धांत को लागू करके गलती की, जबकि इसके लिए कोई विशेष कारण नहीं दिया गया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि मृतक एक तकनीकी रूप से योग्य व्यक्ति थे और उनकी उम्र में लोग आमतौर पर स्वस्थ होते हैं और सेवानिवृत्ति के बाद भी काम करते रहते हैं।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मोटर दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के परिवार को न्याय मिला है। यह फैसला यह भी स्पष्ट करता है कि मुआवजे की गणना करते समय न्यायालयों को स्थापित सिद्धांतों का पालन करना चाहिए और किसी भी विचलन के लिए विशेष कारण दर्ज किए जाने चाहिए।