सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगा मामला में 7 आरोपियों को दी राहत: “मात्र उपस्थिति अपराध नहीं”

सुप्रीम कोर्ट ने 2002 गुजरात दंगा मामला में 7 आरोपियों को बरी किया। जानें, कैसे “मात्र उपस्थिति” और “अवैध जमावड़ा” के कानूनी पहलुओं ने इस फैसले को आकार दिया।

पृष्ठभूमि: गुजरात दंगा मामला 2002 के वडोद गांव की कहानी

घटना का सारांश

28 फरवरी 2002 की रात, गुजरात के वडोद गांव में एक कब्रिस्तान और मस्जिद के आसपास 1000-1500 लोगों के भीड़ ने हिंसक प्रदर्शन किया। पुलिस की गोलीबारी और आंसू गैस के बीच 7 लोगों को गिरफ्तार किया गया। ट्रायल कोर्ट ने 2005 में सभी 19 आरोपियों को बरी कर दिया, लेकिन गुजरात हाई कोर्ट ने गुजरात दंगा मामला  में 7 आरोपियों को दोषी ठहराया।

मुख्य आरोप

  • IPC की धारा 143 (अवैध जमावड़ा)
  • धारा 147 (दंगा)
  • धारा 436 (आगजनी)

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: 5 प्रमुख बिंदु

1. “उपस्थिति ≠ अपराध” सिद्धांत

जस्टिस मनोज मिश्रा और पामिदिघंटम श्री नरसिम्हा की पीठ ने स्पष्ट किया कि अवैध जमावड़ा (धारा 149 IPC) के लिए सिर्फ मौजूदगी पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता। गांव के निवासी होने के नाते घटनास्थल पर मौजूदगी स्वाभाविक है।

2. सबूतों की कमी को चिन्हित किया

कोर्ट ने नोट किया कि:

  • किसी आरोपी के हाथ में हथियार नहीं मिले
  • कोई विशिष्ट भूमिका (overt act) साबित नहीं हुई
  • गवाह PW-2 और PW-4 के बयान अविश्वसनीय पाए गए

3. हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करने का आधार

सुप्रीम कोर्ट ने मसलती बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1965) के नजीर को दोहराते हुए कहा: “बड़ी भीड़ वाले मामलों में केवल सामान्य आरोप पर दोषी नहीं ठहराया जा सकता”

4. बाईस्टैंडर और अपराधी में अंतर

न्यायमूर्तियों ने स्पष्ट किया कि उत्सुकतावश घटनास्थल पर मौजूद निर्दोष दर्शकों को अपराधी नहीं माना जा सकता, खासकर जब:

  • कर्फ्यू लागू नहीं था
  • कोई प्रतिबंधात्मक आदेश नहीं थे

5. लाभ संदेह का सिद्धांत

ट्रायल कोर्ट के बरी करने के फैसले को पलटने के लिए हाई कोर्ट के पास पर्याप्त आधार नहीं थे। सुप्रीम कोर्ट ने बेनिफिट ऑफ डाउट के सिद्धांत को दोहराया।

गुजरात दंगा मामला

कानूनी विश्लेषण: अवैध जमावड़ा मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण

धारा 149 IPC की व्याख्या

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अवैध जमावड़ा के सदस्य होने के लिए निम्न साबित करना जरूरी है:

  1. सामान्य उद्देश्य (Common Object) की जानकारी
  2. सक्रिय भागीदारी
  3. हिंसा को प्रोत्साहन देना

न्यायिक सावधानियां

बड़ी भीड़ वाले मामलों में न्यायालय:

  • सामूहिक आरोपों से बचें
  • विशिष्ट सबूतों पर निर्भर रहें
  • मासूम दर्शकों और अपराधियों में भेद करें

प्रतिक्रियाएं: क्या कह रहे हैं विशेषज्ञ?

वकील समुदाय की प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट के वकील राजीव गुप्ता ने कहा: “यह फैसला IPC की धारा 149 के दुरुपयोग पर अंकुश लगाएगा। अब पुलिस को स्पष्ट सबूत जुटाने होंगे।”

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का रुख

एमनेस्टी इंडिया के प्रवक्ता ने इसे “न्यायिक संतुलन की जीत” बताया और कहा कि सामूहिक आरोपों से निर्दोषों को बचाने की जरूरत है।

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