अपर्याप्त सबूत और विरोधाभासी गवाही: 30 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दी हत्या के आरोपी को राहत?
सुप्रीम कोर्ट ने 30 साल पुराने हत्या केस में आरोपी को अपर्याप्त सबूत और विरोधाभासी गवाही के आधार पर बरी किया। जानें कैसे गवाहों के बयानों में अंतर ने बदला केस का नतीजा।
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अपर्याप्त सबूत और विरोधाभासी गवाही
सुप्रीम कोर्ट ने 27 मार्च, 2025 को “अपर्याप्त सबूत और विरोधाभासी गवाही” वाले एक ऐतिहासिक हत्या केस में आरोपी असलम @ इमरान को बरी कर दिया। यह केस 1994 में मध्य प्रदेश के जबलपुर में हुई ज़हीद खान (गुड्डू) की हत्या से जुड़ा था, जिसमें आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। कोर्ट ने गवाहों के बयानों में गंभीर विसंगतियों और सबूतों की कमी को आधार बनाते हुए इस सजा को पलट दिया।
मामले की पृष्ठभूमि: केस नंबर, पक्षकार और घटनाक्रम
केस संख्या: क्रिमिनल अपील संख्या 2025 (एसएलपी (क्रि.) 15254/2024)
याचिकाकर्ता (अपीलार्थी): असलम @ इमरान
प्रतिवादी: मध्य प्रदेश राज्य
न्यायाधीश: न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और ए.जी. मसीह
मुख्य धारा: आईपीसी धारा 302 (हत्या)
पूर्व निर्णय:
ट्रायल कोर्ट: 21 नवंबर, 1995 को आजीवन कारावास।
हाई कोर्ट: 26 सितंबर, 2024 को ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
घटना का सार:
22 अगस्त, 1994 को जबलपुर के नया मोहल्ला इलाके में असलम और गुड्डू के बीच विवाद हुआ। आरोप था कि असलम ने गुड्डू को बछेड़ा (बक़ा) से गर्दन पर वार कर हत्या कर दी। गुड्डू के भाई शाहिद खान (पीडब्ल्यू-1) ने FIR दर्ज की, और पुलिस ने आरोपी से खूनी चाकू बरामद किया। 1995 में ट्रायल कोर्ट ने असलम को दोषी ठहराया, जिसे 2024 में हाई कोर्ट ने भी सही माना।
सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ: क्यों बरी हुआ आरोपी?
1. गवाहों के बयानों में विरोधाभास
शाहिद खान (पीडब्ल्यू-1) का बयान: गुड्डू को अस्पताल ले जाने का दावा किया, लेकिन उनके कपड़ों पर खून के निशान नहीं थे।
अब्बी (पीडब्ल्यू-6) का बयान: शाहिद घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे, बल्कि बाद में पहुँचे।
रस्सू (पीडब्ल्यू-2) और असीफ खान (पीडब्ल्यू-3): पुलिस को सूचना न देने और विवाद की शुरुआत के बारे में अनिश्चितता जताई।
सैयद वहीद अली (पीडब्ल्यू-4): घटना को “सुनी-सुनाई” बताया, जो कानूनी तौर पर अमान्य है।
2. सबूतों की कमी और संदिग्ध जाँच
चाकू की बरामदगी: आरोपी के घर से चाकू मिला, लेकिन गवाहों ने माना कि यह हत्या में इस्तेमाल चाकू नहीं था।
MLC रिपोर्ट: गवाहों ने अस्पताल में हत्या का कारण नहीं बताया, जिससे साजिश का संदेह पैदा हुआ।
गवाहों के बयान देर से दर्ज: कुछ गवाहों के बयान 45 दिन बाद रिकॉर्ड किए गए, जो विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।
3. पूर्व दुश्मनी और झूठे आरोप की संभावना
कोर्ट ने माना कि मृतक गुड्डू एक “इतिहास प्रसिद्ध अपराधी” था और आरोपी के साथ उसकी पुरानी दुश्मनी थी। इससे झूठे आरोप की गुंजाइश बनी।
विशेषज्ञ राय: कानून और समाज पर प्रभाव
कानूनी विशेषज्ञ डॉ. राजीव मिश्रा :
“यह फैसला गवाहों के बयानों की पड़ताल के महत्व को रेखांकित करता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सजा सिर्फ संदेह पर नहीं, बल्कि ठोस सबूतों पर आधारित होनी चाहिए।”
सामाजिक कार्यकर्ता अनिता देवी :
“पुराने केसों में गवाहों की मेमोरी और सबूतों का संरक्षण चुनौतीपूर्ण है। इस फैसले से पुलिस जाँच में पारदर्शिता की मांग बढ़ेगी।”
निष्कर्ष: न्यायिक प्रक्रिया में सबूतों की अहमियत
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला “अपर्याप्त सबूत और विरोधाभासी गवाही” के मामले में एक मिसाल बन गया है। यह दर्शाता है कि “आरोप साबित करने के लिए गवाहों की विश्वसनीयता और सबूतों का स्पष्ट होना जरूरी है।” 30 साल तक चले इस केस ने न्यायिक व्यवस्था की जटिलताओं को भी उजागर किया है।
यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक गाइडलाइन का काम करेगा, जहाँ गवाही और सबूतों की कमजोरी आरोपी के खिलाफ निर्णायक साबित होती है। न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि “न्याय की राह में समय चाहे जितना लगे, सच्चाई सामने आनी ही चाहिए।”
Author Profile
SHRUTI MISHRA
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