हरीश साल्वे भारत का चमकता सितारा जिसने दुनिया में भारत का नाम ऊंचा किया

 

हरीश साल्वे केसी दुनिया के अग्रणी मध्यस्थता सलाहकारों में से एक हैं। उनका बारीक नजर एवं मामले की गहरी से समझना के क्षमता अतुलनीय एवं अनेको लोगो के लिया प्रेरणा का माध्यम रहा है। वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैश्विक अनुभवी और वरिष्ठ वकील हैं। वाणिज्यिक मध्यस्थता और मुकदमेबाजी में उनको महरात हासिल है कानून के जटिल प्रक्रिया को समझ कार बड़ी ही सटीकता से एवं सरल तरीके से उसको वह जजों के सामने नियमों को स्पष्ट रूप से समझाने में सक्षम है । उन्हें कानून की बारीकियों की समझ है उनकी विशेष रूचि अंतर्राष्ट्रीय कानून, मानवाधिकार, नागरिक धोखाधड़ी, सार्वजनिक, ऊर्जा और कर इत्यादि में है।

हरीश को इंग्लैंड और वेल्स में 2020 में शामिल हुआ एवं इंग्लैंड की अदालत में वो क़ानूनी मामलो में पैरवी करता है। हरीश पूर्व में भारत के सॉलिसिटर जनरल थे और भारतीय बार कौंसिल ने उन्हे वरिष्ठ वकील की पदवी दी है (1992), बड़े पैमाने पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय में वकालत करते रहे हैं। हरीश को भारत के सर्वोच्च पुरस्कारों में से एक, पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था जिसकी घोषणा साल 2015 में हुई।

अधिवक्ता हरीश साल्वे को क्वींस काउंसिल के सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया। साथ ही वह निजी तौर पर भी कई ममो में पैरवी करते है। वरिष्ठ वकील के साथ-साथ मध्यस्थ के रूप में उनके कार्यो की अत्यधिक सराहना की जाती है विधिक जगत में।  इंटरनेशनल चैंबर्स ऑफ कॉमर्स, लंदन कोर्ट द्वारा मध्यस्थ के रूप में नियुक्त किया गया अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता, और सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता परिषद। दिखाई दिया जिनेवा, लंदन में  अंतर्राष्ट्रीय पंचाट न्यायाधिकरण के समक्ष मुख्य वकील के रूप में, सिंगापुर, हेग, पेरिस आदि सिंगापुर की अदालत की एक  समिति  द्वारा  सदस्य  नियुक्त किया गया इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन चैंबर और लंदन काउंसिल ऑफ इंटरनेशनल में मध्यस्थता करना। इस पर रिपोर्ट देने के लिए सिंगापुर सरकार द्वारा गठित एक समिति के सदस्य  नियुक्त की गई है जो सिंगापुर में अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक न्यायालय की स्थापना पर अपना अभिमत देंगे । 

जुलाई 2013 में अपने भारतीय होने के आधार पर यूनाइटेड किंगडम और वेल्स के बार में सदसयता मिली उन्हें कुछ नियमो में छूट भी दे गयी है।  

शिक्षण

उन्होंने अपना करियर एक चार्टर्ड अकाउंटेंट के रूप में काम शुरू किया, विशेष रूप से टैक्स का काम किया।उन्होंने जे.बी. दादाचंजी एंड कंपनी से जुड़े एक प्रशिक्षार्थी के रूप में फिर वो प्रमोट हो गया एक सहयोगी के रूप में फिर वो अधिवक्ता परामर्श अभ्यास में रूचि ली एवं श्री सोली सोराबजी (भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल) के चैंबर में शामिल हो गए 1980 में। 1986 में स्वतंत्र चैंबर की स्थापना की। 1992 में एक वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया। ज्यादातर भारत के सर्वोच्च न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय में वकालत करते रहे हैं। उन्होंने लगभग सभी उच्च न्यायालयों किसी न किसी मामले में पैरवी की है। 1999 में भारत के सॉलिसिटर जनरल बने – 43 वर्ष की आयु में सबसे कम उम्र के सॉलिसिटर जनरल बने।
नवंबर 2002 में निजी प्रैक्टिस में लौट आये। उन्होंने डरा सोलिस्टर जनरल बनाने पेशकश की गयी पर उन्होंने इंकार कर दिया

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