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सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: विवाह संबंधी मांटेनेंस एवं अलिमनी के मामले पर विवेकाधीन निर्णय

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय | तारीख: 12 फरवरी 2025 by Shruti Mishra

परिचय

सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत मांटेनेंस और अलिमनी के मामलों पर एक निर्णायक फैसला सुनाया है। इस निर्णय में, अदालत ने पति और पत्नी दोनों के अधिकारों तथा वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए विवेकाधीन रूप से आदेश दिए हैं।

मामले की पृष्ठभूमि

इस मामले में, एक विवाह विवाद के दौरान, अपीलकर्ता (पति) और उत्तरदाता (पत्नी) ने मांटेनेंस और अलिमनी की मांग की थी। उच्च न्यायालय ने प्रारंभ में अपीलकर्ता के पक्ष में निर्णय दिया, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इसकी समीक्षा करते हुए महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया।

  • मांटेनेंस के लिए अपीलकर्ता ने यह दावा किया कि विवाह को शून्य घोषित करने के बावजूद, उसे स्थायी राहत नहीं मिली।
  • हाई कोर्ट के आदेशों में स्पष्ट नहीं किया गया था कि किन परिस्थितियों में मांटेनेंस और अलिमनी दी जानी चाहिए।
  • सुप्रीम कोर्ट ने विवेकाधीन निर्णय लेते हुए उपयुक्त शर्तों को रेखांकित किया।

मुख्य कानूनी मुद्दे

  • Section 25 (1955 Act): यह अनुभाग पति या पत्नी को स्थायी अलिमनी का हक देता है। कोर्ट ने कहा कि यह अधिकार विवेकाधीन है और दोनों पक्षों की वित्तीय स्थिति पर निर्भर करता है।
  • Section 24 (1955 Act): अंतरिम मांटेनेंस के लिए यह प्रावधान लागू होता है। यदि कोई पक्ष आर्थिक रूप से असमर्थ है, तो अदालत विवेक से अंतरिम राहत दे सकती है।
  • पूर्व उच्च न्यायालय के आदेशों में कुछ तकनीकी त्रुटियाँ पाई गईं, जिनके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने विवेकाधीन रूप से निर्णय दिया।

न्यायालय का विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह स्थापित किया कि विवाह में मांटेनेंस और अलिमनी के आदेश दोनों ही विवेकाधीन होते हैं। कोर्ट ने कहा कि:

  • विवाह संबंधी निर्णय में ‘preponderance of probabilities’ मानक का प्रयोग किया जाता है, जो अपराधी मामलों से अलग है।
  • अदालत ने कहा कि मांटेनेंस का हक सिर्फ वही है, जो आर्थिक रूप से निर्भर है, और इसके लिए विवेक से उचित आदेश दिया जा सकता है।
  • पूर्व के महत्वपूर्ण निर्णय, जैसे Chand Dhawan, Rameshchandra Daga आदि, के आधार पर यह भी सिद्ध किया गया कि विवेकाधीन आदेशों को प्रभावित करने की कोई गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय सुनाया कि विवाह को शून्य घोषित करने के बावजूद, आर्थिक रूप से निर्भर पक्ष को मांटेनेंस और अलिमनी का हक प्राप्त है। यह आदेश यह दर्शाता है कि मांटेनेंस के अधिकार का निर्धारण न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है और इसे संविधान तथा कानून के अनुरूप ही लागू किया जाएगा।

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