5 बड़े अपडेट्स: शिक्षकों का वेतनमान और पदोन्नति पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने AICTE नियमों के तहत शिक्षकों के वेतनमान और पदोन्नति से जुड़े मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जानें किन शिक्षकों को मिलेगा लाभ और क्या हैं नए दिशा-निर्देश।

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विषय सूची

  1. मामले की पृष्ठभूमि

  2. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय क्या है?

  3. किन शिक्षकों को मिलेगा लाभ?

  4. PhD की अनिवार्यता पर बहस

  5. AICTE नियमों की भूमिका

  6. आगे की प्रक्रिया


मामले की पृष्ठभूमि

सुप्रीम कोर्ट ने 1 अप्रैल, 2025 को ऑल इंडिया श्री शिवाजी मेमोरियल सोसाइटी (AISSMS) बनाम महाराष्ट्र सरकार और अन्य के मामले में अपना फैसला सुनाया। यह मामला तकनीकी संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों के वेतनमान और पदोन्नति से जुड़ा था। मुख्य विवाद शिक्षकों का वेतनमान और पदोन्नति के लिए AICTE द्वारा निर्धारित PhD की अनिवार्यता को लेकर था।

  • मुख्य पक्ष:

    • AISSMS (एक निजी संस्था)

    • महाराष्ट्र सरकार और Laxman Shivaji Godse समेत अन्य शिक्षक

  • मुद्दा:

    • क्या PhD के बिना नियुक्त शिक्षकों को 6वें वेतन आयोग के तहत उच्च वेतनमान और एसोसिएट प्रोफेसर का पद मिल सकता है?


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय क्या है?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में दो श्रेणियों में शिक्षकों को विभाजित किया:

क. 15 मार्च, 2000 से पहले नियुक्त शिक्षक

  • इन्हें शिक्षकों का वेतनमान और पदोन्नति का लाभ मिलेगा, क्योंकि उस समय PhD अनिवार्य नहीं था।

  • इन्हें 6वें वेतन आयोग के तहत ₹37,400-67,000 के पे बैंड और एसोसिएट प्रोफेसर का पद मिलेगा।

ख. 15 मार्च, 2000 के बाद नियुक्त शिक्षक

  • इनमें से जिन्होंने 7 वर्षों के भीतर PhD पूरा नहीं किया, उन्हें यह लाभ नहीं मिलेगा।

  • अपवाद: डॉ. माधवी अजय प्रधान जैसे शिक्षक, जिन्होंने बाद में PhD पूरा किया, वे लाभ के पात्र होंगे।


किन शिक्षकों को मिलेगा लाभ?

कोर्ट ने निम्नलिखित शिक्षकों को लाभ देने का आदेश दिया:

  • पंडुरंग अभिमन्यु पाटिल

  • मंगल हेमंत ढेंड

  • दिवाकर हरिभाऊ जोशी

  • शिवानंदगौड़ा कल्लनगौड़ा बिरादर

  • डॉ. माधवी अजय प्रधान (PhD पूरा करने पर)

ध्यान दें:

  • लाभ पाने वाले शिक्षकों को 7.5% ब्याज के साथ बकाया राशि 4 सप्ताह में मिलेगी।

  • यदि देरी हुई, तो ब्याज दर 15% होगी।


PhD की अनिवार्यता पर बहस

AICTE के नियमों के अनुसार:

  • 2000 से पहले: PhD अनिवार्य नहीं था।

  • 2000 के बाद: PhD अनिवार्य कर दिया गया।

  • 2005 की अधिसूचना: यदि कोई शिक्षक 7 वर्षों में PhD पूरा नहीं करता, तो उसकी वेतन वृद्धि रोक दी जाएगी।

कोर्ट की टिप्पणी:

  • “PhD के बिना शिक्षकों को उच्च पद और वेतन देना शिक्षण की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।”

  • “AICTE एक विशेषज्ञ संस्था है, इसलिए उसके नियमों को चुनौती नहीं दी जा सकती।”


AICTE नियमों की भूमिका

AICTE (ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन) ने शिक्षकों की योग्यता और वेतनमान को लेकर कई अधिसूचनाएं जारी कीं:

  • 2000 की अधिसूचना: पहली बार PhD को अनिवार्य बनाया गया।

  • 2010 की अधिसूचना: लेक्चरर्स को असिस्टेंट प्रोफेसर का पद दिया गया।

  • 2016 का स्पष्टीकरण: PhD न होने पर केवल वेतन वृद्धि रोकी जाएगी, नौकरी नहीं।

कोर्ट का मानना है:

  • “2016 का स्पष्टीकरण केवल पुराने नियमों को दोहराता है, नए नहीं बनाता।”


आगे की प्रक्रिया

  • PhD पूरा करने वाले शिक्षक: वे संस्थान और AICTE से उच्च वेतनमान के लिए आवेदन कर सकते हैं।

  • लंबित मामले: महाराष्ट्र हाईकोर्ट में ₹30 लाख की जमा राशि का निपटारा इस फैसले के आधार पर होगा।


निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने शिक्षकों का वेतनमान और पदोन्नति से जुड़े कई सवालों को सुलझा दिया है। यह फैसला न केवल शिक्षकों के अधिकारों को स्पष्ट करता है, बल्कि शैक्षणिक गुणवत्ता को बनाए रखने में भी मदद करेगा। अब संस्थानों को AICTE के नियमों का सख्ती से पालन करना होगा और योग्य शिक्षकों को ही लाभ देना होगा।

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