सुप्रीम कोर्ट ने COFEPOSA के तहत निरोध आदेश रद्द किया: “बेल शर्तों की अनदेखी गंभीर त्रुटि”
सुप्रीम कोर्ट ने जॉय किट्टी जोसेफ की अपील स्वीकार करते हुए COFEPOSA एक्ट के तहत जारी निरोध आदेश को रद्द किया। कोर्ट ने कहा कि निरोध प्राधिकरण ने बेल पर लगाई गई शर्तों की पर्याप्त जांच नहीं की।
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सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को संरक्षण विदेशी मुद्रा और तस्करी निवारण अधिनियम (COFEPOSA), 1974 के तहत जारी एक निवारक निरोध आदेश को रद्द कर दिया। यह फैसला अपीलकर्ता जॉय किट्टी जोसेफ (हिरासत में लिए गए व्यक्ति की पत्नी) की याचिका पर सुनवाई के बाद आया, जिसमें आरोप था कि निरोध प्राधिकरण ने मनन की कमी दिखाई और बेल पर लगाए गए शर्तों को नजरअंदाज किया।
मामले की पृष्ठभूमि
5 मार्च 2024 को डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) ने मुंबई में एक दुकान पर छापेमारी की, जहां से 10 किलो सोना और नकदी बरामद हुई।
हिरासत में लिए गए व्यक्ति (जॉय के पति) पर सोने की तस्करी के नेटवर्क का मुखिया होने का आरोप लगा।
जुलाई 2024 में COFEPOSA एक्ट के तहत निवारक निरोध का आदेश जारी किया गया, जिसे हाई कोर्ट ने बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख तर्क
बेल शर्तों की अनदेखी:
हिरासत प्राधिकरण ने 16 अप्रैल 2024 को मजिस्ट्रेट द्वारा बेल पर लगाए गए शर्तों (जैसे सोने की तस्करी में शामिल न होने की शपथ) का मूल्यांकन नहीं किया।
कोर्ट ने कहा, “निरोध आदेश में यह स्पष्ट नहीं किया गया कि बेल शर्तें तस्करी रोकने के लिए अपर्याप्त क्यों थीं।”
NDPS मामले का संदर्भ:
निरोध आदेश में 2013 के नार्कोटिक्स केस का जिक्र था, जिसमें हिरासत में लिया गया व्यक्ति बेल पर था।
कोर्ट ने माना कि NDPS मामले का वर्तमान तस्करी गतिविधियों से कोई जीवंत संबंध नहीं था।
मनन की कमी:
COFEPOSA एक्ट की धारा 3(1) के तहत चारों उपधाराओं (i से iv) का आरोप “एक साथ” लगाया गया, जो तथ्यात्मक आधार के बिना था।
निरोध प्राधिकरण ने बेल रद्द करने की अर्जी (जो कभी सुनवाई तक नहीं पहुंची) को ध्यान में नहीं रखा।
निष्कर्ष: “निवारक निरोध अंतिम विकल्प”
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और के. विनोद चंद्रन की पीठ ने रामेश्वर लाल पटवारी बनाम बिहार राज्य (1968) और अमीना बेगम बनाम तेलंगाना (2023) के फैसलों का हवाला देते हुए कहा:
“निवारक निरोध का उपयोग तभी हो जब सामान्य कानून व्यवस्था विफल हो। बेल शर्तों को अनदेखा करना संवैधानिक अधिकारों (अनुच्छेद 14, 19, 21) का उल्लंघन है।”
प्रभाव
यह फैसला निवारक निरोध कानूनों की सीमाओं को रेखांकित करता है। अब तक हिरासत में रखे गए व्यक्ति को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया गया है। यह मामला सरकारी एजेंसियों के लिए एक चेतावनी है कि निवारक निरोध के आदेश जारी करते समय न्यायिक प्रक्रियाओं और बेल शर्तों को गंभीरता से लें।
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SHRUTI MISHRA
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