A SAD BOY SIITING

तकरीबन 21 वर्षीय युवक को न्यायालय से मिली जमानत, पढ़ें पूरा मामला

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मामला:
जबलपुर जिला न्यायालय के माननीय प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने एक अहम फैसले में संकेत राठौड़ नामक युवक को जमानत दे दी है। मामला बीए नंबर-3509/2024 से संबंधित है, जिसमें आरोपी पर भारतीय दंड संहिता की धारा 296, 119(1), 118(1), 351(2), और 3(5) के तहत गंभीर अपराध दर्ज किए गए थे।

क्या है पूरा मामला?
आरोप के अनुसार, घटना 22 अगस्त 2024 की है, जब पीड़िता वत्सला गुप्ता ने शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपी ने शराब के लिए 500 रुपए की मांग की। पीड़िता के इनकार करने पर आरोपी ने उनके साथ मारपीट और गाली-गलौज की। इसके साथ ही, उसने पीड़िता को जान से मारने की धमकी भी दी।

हालांकि, आरोपी के वकील ने न्यायालय में तर्क दिया कि घटना के वक्त आरोपी मौके पर मौजूद नहीं था और उसे झूठे आरोपों में फंसाया गया है। वकील ने यह भी कहा कि मामले में कोई ठोस सबूत या प्रत्यक्षदर्शी गवाही उपलब्ध नहीं है।

न्यायालय का फैसला:
माननीय न्यायालय ने मामले की परिस्थितियों और अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सबूतों का गहन अध्ययन किया। इसके साथ ही, यह तथ्य सामने आया कि मुख्य आरोपी अक्लाख कैफ को पहले ही जमानत मिल चुकी है। आरोपी के पक्ष में उसकी मां ने न्यायालय में शपथ पत्र भी प्रस्तुत किया, जिसमें यह दावा किया गया कि आरोपी निर्दोष है और उसे गलत तरीके से फंसाया गया है।

न्यायालय ने कहा कि आरोपी एक स्थायी निवासी है और उसके फरार होने की संभावना नहीं है। इसके साथ ही, आरोपी ने सभी कानूनी शर्तों का पालन करने का आश्वासन दिया। इन तथ्यों के मद्देनजर, न्यायालय ने आरोपी को 30,000 रुपए के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के जमानती बांड पर जमानत दे दी।

अधिवक्ता के तर्क:
आरोपी के वकील अपूर्व त्रिवेदी ने यह भी तर्क दिया कि इस मामले में पहले से ही जांच पूरी हो चुकी है और अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत चार्जशीट में आरोपी के खिलाफ ठोस सबूत नहीं पाए गए हैं। इसके अलावा, यह भी बताया गया कि आरोपी के खिलाफ पहले से कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है।

इस मामले में आरोपी के अधिवक्ता ने न्यायालय के समक्ष अपने मुवक्किल की बेगुनाही को मजबूती से प्रस्तुत किया। उनके कुशल तर्क, गहन कानूनी ज्ञान, और मामले के तथ्यों को प्रभावी ढंग से न्यायालय के समक्ष रखने के कारण आरोपी को जमानत मिलने में सफलता मिली।

अधिवक्ता ने अदालत में यह स्पष्ट रूप से साबित किया कि उनके मुवक्किल के खिलाफ लगाए गए आरोप केवल पूर्वाग्रह पर आधारित थे और किसी ठोस सबूत पर नहीं टिके। उन्होंने अभियोजन पक्ष के तर्कों को तर्कसंगत ढंग से खारिज करते हुए आरोपी के पक्ष में कानूनी और मानवीय दृष्टिकोण दोनों को प्रस्तुत किया।

उनकी बहस ने यह दर्शाया कि न्यायालय में केवल सबूतों और तथ्यों के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए, न कि भावनात्मक या काल्पनिक दृष्टिकोण पर। इस प्रकार, अधिवक्ता ने न केवल अपने मुवक्किल का पक्ष रखा, बल्कि न्याय की प्रणाली में भरोसे को भी मजबूत किया।

यह कहना उचित होगा कि उनकी मेहनत, समर्पण और कानूनी कौशल ने इस मामले में न्याय की जीत सुनिश्चित की।

सरकारी वकील की आपत्ति:
सरकारी वकील ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि आरोपी पर गंभीर अपराध के आरोप हैं और उसे जमानत देना पीड़िता की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है। लेकिन, न्यायालय ने सभी तथ्यों पर विचार करते हुए आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।

आदेश की शर्तें:
न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि आरोपी हर सुनवाई में उपस्थित रहेगा और मामले के अंतिम निपटारे तक किसी भी तरह से गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेगा। यदि वह ऐसा करता पाया गया, तो उसकी जमानत रद्द की जा सकती है।

निष्कर्ष:
यह फैसला न्यायपालिका की निष्पक्षता और सभी पक्षों के अधिकारों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। अब यह देखना बाकी है कि मामले का अंतिम निपटारा कैसे होता है।

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