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राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का आदेश: ब्याज दरों पर विवाद

नई दिल्ली:
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (National Consumer Disputes Redressal Commission, NCDRC) द्वारा 07 जुलाई 2008 को पारित आदेश और निर्णय के खिलाफ अपीलों का यह समूह प्रस्तुत किया गया है। ये अपीलें शिकायत संख्या 51/2007 और पुनर्विचार याचिका संख्या 1913/2004 से संबंधित हैं। हालांकि, पुनर्विचार याचिका संख्या 1913/2004 के संदर्भ में किसी भी पक्ष द्वारा कोई अपील दायर नहीं की गई है।

प्रमुख विवाद:

राष्ट्रीय आयोग ने ब्याज दरों को लेकर निम्नलिखित महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार किया:

  1. ब्याज दरों का अत्यधिक होना:
    आयोग ने प्रारंभिक दृष्टिकोण अपनाते हुए माना कि 36% से 49% प्रति वर्ष तक की ब्याज दरें अत्यधिक और उधारकर्ताओं/ऋणी पक्षों का शोषण करती हैं। इसे सूदखोरी (usurious) और अनुचित मानते हुए आयोग ने इस पर सवाल उठाए।

  2. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की भूमिका:
    आयोग ने यह मुद्दा उठाया कि क्या भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (NBFCs), और अन्य मनी लेंडर्स को किसी निश्चित दर से ऊपर ब्याज वसूलने से रोकने के लिए कोई सर्कुलर या दिशा-निर्देश जारी करना चाहिए?

अहम बिंदु:

  • आयोग ने यह तर्क दिया कि उधारकर्ताओं पर अधिक ब्याज दरें थोपना शोषण के समान है और इस पर नियंत्रण की आवश्यकता है।
  • ब्याज दरों का यह मुद्दा नीति-निर्माण, उपभोक्ता अधिकार, और वित्तीय संस्थानों की जिम्मेदारी के बीच संतुलन की आवश्यकता को दर्शाता है।

फैसले का प्रभाव:

यह विवाद केवल व्यक्तिगत मामलों तक सीमित नहीं है, बल्कि बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र में व्यापक नीति और उपभोक्ता अधिकारों को भी प्रभावित कर सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक की भूमिका पर निर्णय इन मुद्दों के समाधान में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

निष्कर्ष:

इस मामले का परिणाम न केवल उधारकर्ताओं और वित्तीय संस्थानों के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करेगा, बल्कि देश में वित्तीय अनुशासन और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक अहम कदम भी हो सकता है।

क्रेडिट कार्ड पर 30% से अधिक ब्याज वसूली को अनुचित व्यापार प्रथा घोषित करने का मामला

नई दिल्ली:
हांगकांग शंघाई कॉर्पोरेशन, सिटीबैंक, अमेरिकन एक्सप्रेस बैंकिंग कॉर्पोरेशन, और स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक (क्रमशः अपील संख्या 5273/2008, 5294/2008, 5627/2008 और 5278/2008) के साथ हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्पोरेशन (HDFC) ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के 07 जुलाई 2008 के आदेश को चुनौती दी है।

इस आदेश में कहा गया था कि बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (NBFCs) द्वारा क्रेडिट कार्ड धारकों से 30% से अधिक ब्याज वसूलना एक अनुचित व्यापार प्रथा (Unfair Trade Practice) है।

राष्ट्रीय आयोग का आदेश:

राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने निम्नलिखित निष्कर्ष दिए थे:

  1. ब्याज दर का 30% से अधिक होना:
    बैंकों द्वारा क्रेडिट कार्ड धारकों से 30% प्रति वर्ष से अधिक ब्याज वसूलना, विशेष रूप से भुगतान में देरी या न्यूनतम राशि जमा करने में चूक होने पर, एक अनुचित व्यापार प्रथा है।

  2. पेनल ब्याज (Penal Interest):
    पेनल ब्याज केवल एक बार और एक ही अवधि के लिए लगाया जा सकता है। इसे बार-बार लागू करना या इसे मूलधन (Principal) में जोड़ना उचित नहीं है।

  3. मासिक चक्रवृद्धि ब्याज:
    मासिक आधार पर ब्याज लगाना (Charging of Interest with Monthly Rests) भी अनुचित व्यापार प्रथा है।

अपीलकर्ता बैंकों की आपत्ति:

अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि:

  • 30% से अधिक ब्याज वसूलना बैंकिंग और वित्तीय नीतियों के तहत है और इसे अनुचित व्यापार प्रथा नहीं माना जाना चाहिए।
  • पेनल ब्याज का उद्देश्य बकाया राशि की वसूली सुनिश्चित करना है, और इसे पूंजीकरण की अनुमति होनी चाहिए।
  • मासिक चक्रवृद्धि ब्याज बैंकिंग उद्योग में एक मानक प्रक्रिया है।

फैसला:

सुप्रीम कोर्ट ने सभी संबंधित अपीलें (C.A. No. 5273/2008, C.A. No. 5294/2008, C.A. No. 5627/2008, C.A. No. 5278/2008 और C.A. No. 6679/2008) स्वीकार कर लीं और 07 जुलाई 2008 को पारित राष्ट्रीय आयोग के आदेश को रद्द कर दिया।

 

यह मामला वित्तीय संस्थानों और उपभोक्ताओं के अधिकारों के बीच संतुलन की आवश्यकता को रेखांकित करता है। यह निर्णय न केवल क्रेडिट कार्ड धारकों के लिए बल्कि बैंकिंग नीतियों और उपभोक्ता संरक्षण के लिए भी एक मिसाल साबित हो सकता है।

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