2025 में हरियाणा जमीन अधिग्रहण मामले का अहम अपडेट: किशोर छाबड़ा केस का निर्णय
- Home
- »
- Supreme Court
- »
- news
- »
- 2025 में हरियाणा जमीन अधिग्रहण मामले का अहम अपडेट: किशोर छाबड़ा केस का निर्णय
1. केस का संक्षिप्त विवरण
2025 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार और किशोर छाबड़ा के बीच चल रहे जमीन अधिग्रहण मामले में अपना निर्णय सुनाया। छाबड़ा ने सोनीपत के सुल्तानपुर गाँव में अपनी 386 वर्ग गज की जमीन को अधिग्रहण से मुक्त कराने की मांग की थी। हालाँकि, कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी, लेकिन मुआवजे की गणना के लिए 2013 के कानून के तहत निर्देश जारी किए।
2. जमीन अधिग्रहण की पृष्ठभूमि
1992 का अधिसूचना: हरियाणा सरकार ने 9 नवंबर 1992 को लैंड एक्विजिशन एक्ट, 1894 की धारा 4 के तहत सोनीपत में आवासीय और वाणिज्यिक विकास के लिए जमीन अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की।
1993 में धारा 6 अधिसूचना: 6 नवंबर 1993 को 329.70 एकड़ जमीन को अधिग्रहण में शामिल किया गया, जिसमें छाबड़ा की जमीन भी थी।
1995 में अवार्ड: लैंड एक्विजिशन कलेक्टर ने 5 नवंबर 1995 को अवार्ड पास किया और सरकार ने जमीन का कब्जा ले लिया।
3. किशोर छाबड़ा की मुख्य दलीलें
भेदभाव का आरोप: छाबड़ा ने दावा किया कि उनकी जमीन के समान स्थिति वाले अन्य भूस्वामियों की जमीन अधिग्रहण से मुक्त कर दी गई, लेकिन उनके साथ भेदभाव किया गया।
कारखाने का दावा: उन्होंने बताया कि 1970 से ही उनकी जमीन पर एक कारखाना चल रहा है, जो हरियाणा सरकार की 2007 की नीति के तहत छूट के योग्य है।
बिना कारण अस्वीकृति: 17 अगस्त 2010 के आदेश को चुनौती दी गई, क्योंकि इसमें जमीन रिहाई से इनकार करने का कोई तर्क नहीं दिया गया था।
4. हरियाणा सरकार का पक्ष
CLU प्रमाणपत्र का अभाव: सरकार ने जोर देकर कहा कि छाबड़ा के पास Change of Land Use (CLU) प्रमाणपत्र नहीं है, जो जमीन छूट के लिए अनिवार्य है।
हरित पट्टी में जमीन: अधिग्रहित जमीन हरित पट्टी और सड़क विकास के लिए निर्धारित है।
विकास पर खर्च: सरकार ने सेक्टर-3 के विकास पर 2661.88 लाख रुपये खर्च किए हैं, जिसमें फायर स्टेशन, पुलिस स्टेशन, और पार्क शामिल हैं।
5. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और प्रभाव
कोर्ट ने छाबड़ा के भेदभाव के दावे को खारिज करते हुए निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया:
CLU प्रमाणपत्र की अनिवार्यता: बिना CLU के जमीन की रिहाई संभव नहीं।
अन्य मामलों से अंतर: देवराज देवन और नॉर्दर्न इंडिया कार्बोनेट्स जैसे मामलों में CLU प्रमाणपत्र पहले से मौजूद थे।
मुआवजे का नया आदेश: कोर्ट ने 2013 के कानून के तहत मुआवजे की गणना का निर्देश दिया, क्योंकि छाबड़ा ने जमीन पर कब्जा बनाए रखा था।
6. CLU प्रमाणपत्र की भूमिका
कानूनी आवश्यकता: 1963 के पंजाब एक्ट के तहत नियंत्रित क्षेत्र में किसी भी वाणिज्यिक गतिविधि के लिए CLU प्रमाणपत्र जरूरी है।
छाबड़ा का मामला: उन्होंने 1964 की अधिसूचना के बावजूद CLU प्राप्त नहीं किया, जिससे उनका दावा कमजोर हुआ।
7. मुआवजा गणना का नया आदेश
2013 का कानून: भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापना अधिनियम के तहत मुआवजे की गणना की जाएगी।
विशेष परिस्थितियाँ: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल इसी मामले में लागू होगा और इसे प्रीसीडेंट नहीं माना जाएगा।
8. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1. CLU प्रमाणपत्र क्या है?
CLU (Change of Land Use) किसी भी नियंत्रित क्षेत्र में जमीन के उपयोग को बदलने के लिए जरूरी कानूनी दस्तावेज है।
Q2. 2013 के कानून से मुआवजे में क्या बदलाव आएगा?
इस कानून के तहत मुआवजे की राशि बाजार मूल्य के अनुसार तय की जाती है, जो पुराने एक्ट की तुलना में अधिक न्यायसंगत है।
Q3. क्या अन्य भूस्वामी भी इस निर्णय का लाभ उठा सकते हैं?
नहीं, कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह आदेश केवल किशोर छाबड़ा के मामले में लागू होगा।
निष्कर्ष
2025 का यह निर्णय जमीन अधिग्रहण मामलों में कानूनी प्रक्रियाओं और नीतियों की जटिलताओं को उजागर करता है। CLU प्रमाणपत्र जैसे दस्तावेजों का महत्व और सरकारी नीतियों का पालन करना हर भूस्वामी के लिए आवश्यक है। इस केस से यह भी सीख मिलती है कि न्यायिक प्रक्रिया में समय पर दस्तावेज जमा करना और कानूनी मानकों का पालन करना कितना महत्वपूर्ण है।
Author Profile
