सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को दी हरी झंडी: 2016 के वन कांस्टेबल भर्ती प्रक्रिया को रद्द करने का फैसला वैध
सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को 2016 की भर्ती प्रक्रिया रद्द करने की अनुमति दी। जानें कैसे आरक्षण नीति उल्लंघन और जिलेवार पक्षपात ने फैसले को प्रभावित किया।
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केस संख्या: सिविल अपील संख्या 2350/2025
पीठ: न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन
तिथि: 7 मार्च, 2025
स्थान: नई दिल्ली
मामले का संक्षिप्त विवरण
सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार के उस फैसले को वैध ठहराया, जिसमें 2016 में 104 वन कांस्टेबल पदों के लिए हुई भर्ती प्रक्रिया को रद्द किया गया था। कोर्ट ने कहा कि चयन प्रक्रिया में आरक्षण नीति का उल्लंघन और जिलेवार असंतुलित प्रतिनिधित्व जैसे गंभीर अनियमितताएं पाई गईं, जिसके आधार पर सरकार पूरी प्रक्रिया को रद्द करने के लिए सक्षम थी। गौहाटी हाईकोर्ट के उस फैसले को पलटते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने असम सरकार को ताज़ा भर्ती प्रक्रिया शुरू करने की अनुमति दी।
पृष्ठभूमि: 2016 की विवादास्पद भर्ती
2014 का विज्ञापन: असम वन बल (AFPF) में 104 कांस्टेबल पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई।
2016 का चयन: शारीरिक परीक्षा (PET) और साक्षात्कार के आधार पर चयन सूची तैयार हुई, लेकिन राजनीतिक परिवर्तन (मई 2016) के बाद नई सरकार ने इसे रद्द कर दिया।
रद्द करने का आधार:
64 चयनित उम्मीदवार केवल कामरूप और कामरूप मेट्रो जिलों से थे।
16 जिलों (हिल एरिया, बराक वैली, BTC) से एक भी उम्मीदवार चयनित नहीं हुआ।
आरक्षण नीति का उल्लंघन: मेरिट में आने वाले आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को खुली श्रेणी में न रखकर आरक्षित कोटे में डाला गया।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
चयन प्रक्रिया में गंभीर दोष:
न्यायमूर्ति दत्ता: “सिर्फ साक्षात्कार के आधार पर चयन करना पक्षपातपूर्ण था। 52% आबादी वाले 16 जिलों से एक भी चयन न होना, प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है।”
कोर्ट ने केशुब श्याम कुमार बनाम रेलवे (2010) के फैसले का हवाला देते हुए कहा: “बड़े पैमाने पर अनियमितताएं होने पर पूरी प्रक्रिया रद्द की जा सकती है।”
हाईकोर्ट की गलती:
“हाईकोर्ट ने समानुपातिकता सिद्धांत (Doctrine of Proportionality) को नज़रअंदाज़ किया। सरकार के पास तीन विकल्प थे: (i) प्रक्रिया जारी रखना, (ii) पूरी प्रक्रिया रद्द करना, (iii) खराब चयन हटाकर शेष को मंजूरी देना। सरकार ने दूसरा विकल्प चुना, जो तर्कसंगत था।”
चयनित उम्मीदवारों का अधिकार:
“चयन सूची में नाम होने से नियुक्ति का अधिकार नहीं बनता। सरकार ने जनहित में निर्णय लिया, जो मनमाना नहीं था।”
निर्णय का व्यापक प्रभाव
भविष्य की भर्तियों के लिए सबक:
सरकारें भर्ती नियम बनाकर प्रक्रिया पारदर्शी रखें।
केवल साक्षात्कार के बजाय लिखित परीक्षा + साक्षात्कार का मॉडल अपनाया जाए।
राजनीतिक परिवर्तन और प्रशासनिक निर्णय:
नई सरकारें पुरानी नीतियों को केवल जनहित और कानूनी अनियमितताओं के आधार पर ही बदल सकती हैं।
उम्मीदवारों को राहत:
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि नई भर्ती में 2016 के उम्मीदवारों को आयु सीमा और शारीरिक मापदंड में छूट दी जाए।
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SHRUTI MISHRA
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