सर्वोच्च न्यायालय ने यूपी गैंगस्टर एक्ट के तहत FIR रद्द की: जय किशन बनाम उत्तर प्रदेश (केस नंबर 23042/2024)
सर्वोच्च न्यायालय ने यूपी गैंगस्टर एक्ट, 1986 के तहत दर्ज FIR को खारिज करते हुए कहा – “नागरिक विवादों को आपराधिक मामलों में नहीं बदला जा सकता”। जानें केस नंबर 23042/2024 का पूरा विवरण।
Share this:
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to print (Opens in new window) Print
सर्वोच्च न्यायालय ने यूपी गैंगस्टर एक्ट के दुरुपयोग पर लगाई रोक, FIR खारिज की |
केस नंबर 23042/2024: जय किशन एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में ऐतिहासिक फैसला
नई दिल्ली, 12 फरवरी 2025: सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एवं असामाजिक गतिविधियाँ (निवारण) अधिनियम, 1986 के तहत दर्ज एक FIR को खारिज करते हुए महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने केस नंबर 23042/2024 में कहा कि “संपत्ति विवाद जैसे नागरिक मामलों को आपराधिक गतिविधि बताकर गैंगस्टर एक्ट लागू करना कानून का दुरुपयोग है।”
मामले का संक्षिप्त विवरण (Case Snapshot)
केस नंबर: SLP (Crl.) No. 9218/2024 (Criminal Appeal No. 53643/2023)
पक्ष: जय किशन एवं अन्य (अपीलार्थी) बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (प्रतिवादी)
आरोप:
यूपी गैंगस्टर एक्ट, 1986 की धारा 2/3
IPC धारा 395 (डकैती), 420 (ठगी), 506 (फ़ौजदारी धमकी)
मुख्य मुद्दा: क्या संपत्ति विवाद और नागरिक मामलों को गैंगस्टर एक्ट के दायरे में लाया जा सकता है?
पृष्ठभूमि: FIR और विवाद का सार
2022-2023: अपीलार्थियों के खिलाफ तीन आपराधिक मामले (CC No.119/2022, 58/2023, 60/2023) दर्ज, जिनमें संपत्ति लेनदेन और धन विवाद शामिल थे।
नवंबर 2023: पुलिस ने इन मामलों के आधार पर गैंगस्टर एक्ट के तहत FIR (CC No.0092/2023) दर्ज की, जिसमें अपीलार्थियों को “गैंग” सदस्य बताया गया।
हाईकोर्ट का आदेश: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनवरी 2024 में FIR को बरकरार रखते हुए याचिका खारिज की।
अदालत के प्रमुख निष्कर्ष (Key Judgements)
1. “गैंगस्टर एक्ट का दुरुपयोग नागरिक विवादों में नहीं हो सकता”
पीठ ने मोहम्मद वजीद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023) के निर्णय का हवाला देते हुए कहा:
“FIR में दर्ज आरोपों के पीछे की वास्तविकता देखनी होगी। संपत्ति विवाद और नागरिक मुकदमों को गैंगस्टर एक्ट के तहत नहीं रखा जा सकता।”
2. “आरोपों में अस्पष्टता और कोई साक्ष्य नहीं”
श्रद्धा गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2022) के अनुसार:
“गैंगस्टर एक्ट लागू करने के लिए गंभीर और सुस्पष्ट आपराधिक गतिविधियाँ होनी चाहिए। यहाँ केवल नागरिक विवादों को आपराधिक रंग दिया गया है।”
3. “धारा 482 CrPC का उद्देश्य निर्दोषों को कानूनी उत्पीड़न से बचाना है”
पीठ ने अरुण जैन बनाम एनसीटी दिल्ली (2024) के फैसले को दोहराया:
“जब आरोपों में सत्यता का अभाव हो, तो उच्च न्यायालय को FIR रद्द करने में संकोच नहीं करना चाहिए।”
प्रासंगिक कानूनी प्रावधान:
यूपी गैंगस्टर एक्ट, 1986 की धारा 2(b): “गैंग” की परिभाषा में हिंसा, अशांति या अनुचित लाभ के लिए सामूहिक गतिविधियाँ शामिल हैं।
CrPC धारा 482: उच्च न्यायालय का अंतर्निहित अधिकार क्षेत्र।
निर्णायक न्यायिक मिसालें:
Iqbal सिंह मरवाह बनाम मीनाक्षी मरवाह (2005): नागरिक और आपराधिक मामलों के बीच अंतर स्पष्ट किया।
Md. रहीम अली बनाम असम राज्य (2024): दंडात्मक कानूनों की सख्त व्याख्या पर जोर।
निष्कर्ष: कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता की जीत
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने यूपी गैंगस्टर एक्ट के दुरुपयोग पर रोक लगाकर कानूनी प्रक्रिया में निष्पक्षता सुनिश्चित की है। अदालत ने स्पष्ट किया कि “नागरिक विवादों को आपराधिक मामलों में तब्दील करना संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन है।” यह फैसला उन लोगों के लिए मिसाल है जो झूठे आरोपों से जूझ रहे हैं।
#यूपी_गैंगस्टर_एक्ट #झूठी_FIR #सर्वोच्च_न्यायालय_2025 #जय_किशन_केस #SLP9218_2024
स्रोत: [जय किशन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2025 INSC 198](पीडीएफ लिंक), सर्वोच्च न्यायालय का आदेश दिनांक 12.02.2025।
Author Profile

SHRUTI MISHRA
Share this:
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to print (Opens in new window) Print