गोरखपुर हत्याकांड मामले में 7 साल 9 महीने जेल में रहने के बाद सर्वजीत सिंह को उच्च न्यायालय ने जमानत दी
अदालत: इलाहाबाद उच्च न्यायालयन्यायाधीश: माननीय न्यायमूर्ति कृष्ण पहल याचिकाकर्ता: सर्वजीत सिंह प्रतिवादी: उत्तर प्रदेश राज्य याचिकाकर्ता के वकील: श्री मयंक मोहन दत्त मिश्रा, श्री सुधांशु पांडेय प्रतिवादी के वकील: श्री सुनील कुमार, लर्न्ड एजीए मामले का सारांश इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गोरखपुर के जनगाहा थाने (क्राइम नंबर-156/2017) में आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 307 (हत्या का प्रयास) के आरोपी सर्वजीत सिंह को 7 साल 9 महीने की जेल…
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अदालत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
न्यायाधीश: माननीय न्यायमूर्ति कृष्ण पहल
याचिकाकर्ता: सर्वजीत सिंह
प्रतिवादी: उत्तर प्रदेश राज्य
याचिकाकर्ता के वकील: श्री मयंक मोहन दत्त मिश्रा, श्री सुधांशु पांडेय
प्रतिवादी के वकील: श्री सुनील कुमार, लर्न्ड एजीए
मामले का सारांश
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गोरखपुर के जनगाहा थाने (क्राइम नंबर-156/2017) में आईपीसी की धारा 302 (हत्या) और 307 (हत्या का प्रयास) के आरोपी सर्वजीत सिंह को 7 साल 9 महीने की जेल यात्रा के बाद जमानत दे दी। न्यायालय ने फैसले में “स्पीडी ट्रायल के अधिकार” (Article 21) का हवाला देते हुए कहा कि “ट्रायल में अनावश्यक देरी और लंबी जेल यात्रा संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।”
प्रमुख बिंदे:
आरोप: 2017 में सर्वजीत सिंह पर गोली चलाकर एक व्यक्ति की हत्या और दूसरे को जख्मी करने का आरोप।
जेल अवधि: आरोपी 23 मई 2017 से जेल में, ट्रायल 25 अक्टूबर 2019 से रुका हुआ।
ट्रायल की स्थिति:
3 गवाहों का बयान दर्ज, 16 और गवाह बाकी।
5 अन्य आरोपियों को धारा 319 CrPC के तहत शामिल करने पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, जिससे ट्रायल प्रक्रिया अटकी।
न्यायालय का तर्क:
“7 साल से अधिक जेल में रहना और ट्रायल का न चलना अनुचित।”
“जमानत सजा नहीं, ट्रायल में उपस्थिति सुनिश्चित करने का माध्यम है।”
सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला:
जावेद गुलाम नबी शेख बनाम महाराष्ट्र राज्य (2023):
“4 साल से अधिक जेल और ट्रायल न शुरू होना जमानत का आधार।”
इंद्राणी प्रतिम मुखर्जी बनाम सीबीआई (2024):
“6.5 साल की जेल और ट्रायल के निराशाजनक हालात में जमानत स्वीकार्य।”
वी. सेन्थिल बालाजी बनाम ED (2024):
“15 महीने की जेल और ट्रायल में देरी जमानत का वैध कारण।”
न्यायालय की शर्तें:
आरोपी 2 लाख रुपए का पर्सनल बॉन्ड और दो जमानती जमा करेगा।
ट्रायल कोर्ट में हर तारीख पर उपस्थिति अनिवार्य।
सबूतों से छेड़छाड़ न करने की लिखित शपथ।
न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की टिप्पणी:
“संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्पीडी ट्रायल का अधिकार मौलिक है। ट्रायल कोर्ट और राज्य की निष्क्रियता आरोपी के अधिकारों को कुचलती है।”
“अगर राज्य ट्रायल पूरा नहीं कर सकता, तो गंभीर आरोपों के बावजूद जमानत से इनकार नहीं किया जा सकता।”
प्रतिक्रियाएं:
आरोपी के वकील श्री मयंक मिश्रा:
“यह फैसला न्याय के सिद्धांतों की जीत है। हम ट्रायल में सहयोग करेंगे।”पीड़ित पक्ष:
“न्यायालय ने गंभीर आरोपों को नजरअंदाज किया। हम सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे।”
आगे की कार्रवाई:
ट्रायल कोर्ट ने 21 मार्च 2024 को 5 अन्य आरोपियों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था।
अर्जुन सिंह (एक आरोपी) की मौत की पुष्टि होने के बाद, शेष 4 आरोपियों की गिरफ्तारी/उपस्थिति ट्रायल की गति तय करेगी।
रिपोर्ट: Shruti Mishra
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश एवं दस्तावेज़
(यह खबर अदालती दस्तावेज़ों और सार्वजनिक सूचनाओं पर आधारित है। किसी भी त्रुटि की सूचना हमें तुरंत दें।)
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SHRUTI MISHRA
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