2025 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय संपत्ति विवाद और सीमा अधिनियम पर नई रोशनी डालता है। जानें केस की पूरी कहानी, न्यायिक प्रक्रिया और इसके प्रभाव।

सड़क क्रोध मामला में सुप्रीम कोर्ट ने बदला फैसला: धारा 302 से धारा 304 IPC तक का सफर

 सड़क क्रोध मामला में सुप्रीम कोर्ट ने रविंदर कुमार की सजा को धारा 302 से घटाकर धारा 304 IPC कर दिया। जानें कैसे एक झगड़े ने बदल दी मामले की दिशा।

एक झगड़े ने ले ली जान

एक सड़क क्रोध मामले ने पंजाब के एक परिवार की जिंदगी बदलकर रख दी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपने ताजा फैसले में आरोपी रविंदर कुमार @राजू की सजा को धारा 302 (हत्या) से घटाकर धारा 304 IPC (दोषपूर्ण हत्या जो हत्या नहीं है) कर दिया। यह फैसला 25 मार्च, 2025 को आया, जिसमें कोर्ट ने मामले में “अचानक उत्तेजना” और “पूर्वनियोजन की कमी” को अहम माना।


मामले की पृष्ठभूमि: क्या हुआ था उस दिन?

  • घटना का समय: कुछ साल पहले, पंजाब के एक चौराहे पर दो वाहनों की टक्कर हुई। एक स्कूटर सवार गिर गया, लेकिन उसे चोट नहीं आई।

  • पीछा करने की कोशिश: स्कूटर सवार और उसके साथी (जिसमें मृतक और उसके पिता शामिल थे) ने भागते हुए तीन पहिया वाहन का पीछा किया।

  • झगड़ा और हमला: पकड़े जाने पर आरोपी रविंदर ने लोहे की रॉड से मृतक के सिर पर वार कर दिया, जिससे 5 दिन बाद उसकी मौत हो गई।


सुप्रीम कोर्ट ने क्यों बदला फैसला?

कोर्ट ने तीन मुख्य बिंदुओं पर जोर दिया:

  1. पूर्वनियोजन का अभाव: आरोपी ने पहले से हमले की योजना नहीं बनाई थी।

  2. अचानक उत्तेजना: मृतक और उसके साथियों ने आरोपियों को घेरकर उकसाया था।

  3. एक ही वार: लोहे की रॉड से सिर पर केवल एक ही प्रहार किया गया, जो घातक साबित हुआ।

कोर्ट के अनुसार, यह मामला भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 304 भाग I के तहत आता है, क्योंकि चोट “जानबूझकर” लगाई गई थी, लेकिन हत्या का इरादा नहीं था।


धारा 302 vs धारा 304 IPC: क्या है अंतर?

  • धारा 302 (हत्या): इसमें सजा-ए-मौत या उम्रकैद हो सकती है।

  • धारा 304 (दोषपूर्ण हत्या):

    • भाग I: जानबूझकर चोट पहुँचाना, जिससे मौत हो सकती थी। सजा—10 साल तक की कैद।

    • भाग II: बिना इरादे के चोट पहुँचाना। सजा—5 साल तक।

इस मामले में कोर्ट ने भाग I लागू करते हुए आरोपी को 7 साल की सजा सुनाई।


फैसले का समाज पर प्रभाव

  1. सबक: सड़क पर झगड़े से बचें। पुलिस को तुरंत सूचित करें।

  2. कानूनी जागरूकता: “सेल्फ-डिफेंस” और “उत्तेजना” के बीच का अंतर समझना जरूरी है।

  3. न्यायिक संदेश: कोर्ट ने साफ किया कि “आक्रामक पीछा” करने वालों को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।


यह फैसला एक चेतावनी है कि सड़क पर हिंसा किसी की जिंदगी बर्बाद कर सकती है। कानून हर पक्ष को न्याय देता है, लेकिन सतर्कता हमारी जिम्मेदारी है।

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