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बॉम्बे HC ने NAFED और रोज एंटरप्राइजेज के ₹339 करोड़ विवाद में फैसला पलटा, नई सुनवाई का आदेश

अदालत: बॉम्बे उच्च न्यायालयन्यायाधीश: न्यायमूर्ति ए.एस. चंदूरकर और राजेश पाटिल   मामला संख्या: COMMERCIAL ARBITRATION APPEAL NO.15 OF 2024 पक्ष: NAFED (नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन) बनाम रोज एंटरप्राइजेज (P) लिमिटेड मुख्य धाराएँ: आर्बिट्रेशन एंड कंसिलिएशन एक्ट, 1996 की धारा 34 और 37 मुआवजा राशि: ₹33.97 करोड़ (पुरस्कार के तहत) मामले का सारांश बॉम्बे उच्च न्यायालय ने NAFED और रोज एंटरप्राइजेज (REPL) के…

अदालत: बॉम्बे उच्च न्यायालय
न्यायाधीश: न्यायमूर्ति ए.एस. चंदूरकर और राजेश पाटिल

 

  • मामला संख्या: COMMERCIAL ARBITRATION APPEAL NO.15 OF 2024
  • पक्ष: NAFED (नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन) बनाम रोज एंटरप्राइजेज (P) लिमिटेड
  • मुख्य धाराएँ: आर्बिट्रेशन एंड कंसिलिएशन एक्ट, 1996 की धारा 34 और 37
  • मुआवजा राशि: ₹33.97 करोड़ (पुरस्कार के तहत)

मामले का सारांश

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने NAFED और रोज एंटरप्राइजेज (REPL) के बीच 2004 के टाई-अप समझौतों से जुड़े ₹339 करोड़ के वाणिज्यिक विवाद में अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने पुणे की जिला अदालत के 22 अप्रैल, 2024 के फैसले को रद्द करते हुए धारा 34 के तहत मामले की नई सुनवाई का आदेश दिया। न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत ने NAFED की आपत्तियों पर समुचित विचार नहीं किया, जिससे पुरस्कार में “स्पष्ट अवैधता” (Patent Illegality) का प्रश्न उठता है।


प्रमुख बिंदे:

  1. विवाद का कारण:

    • 2004 के दो टाई-अप समझौते: NAFED ने REPL को स्टॉक खरीद के लिए 80% वित्तीय सहायता दी।

    • NAFED का दावा: समझौते ऋण समझौते थे, जबकि REPL ने इसे संयुक्त उद्यम बताया।

    • पंचाट पुरस्कार (2019): आर्बिट्रेटर ने REPL के पक्ष में ₹33.97 करोड़ का पुरस्कार दिया।

  2. निचली अदालत का फैसला (2024):

    • NAFED की धारा 34 याचिका खारिज, पुरस्कार बरकरार।

  3. उच्च न्यायालय की टिप्पणी:

    • “जिला अदालत ने NAFED के तर्कों को गंभीरता से नहीं लिया।”

    • “पुरस्कार में सबूतों की अनदेखी और विरोधाभासों पर विचार नहीं।”


न्यायालय का विश्लेषण:

  1. टाई-अप समझौते की प्रकृति:

    • NAFED ने दावा किया कि समझौते ऋण समझौते थे, जबकि आर्बिट्रेटर ने इसे संयुक्त उद्यम माना।

    • कोर्ट का निरीक्षण: “जिला अदालत को समझौते की व्याख्या से जुड़े सबूतों (चेक, पत्राचार) पर विचार करना चाहिए था।”

  2. मुआवजे का आधार:

    • REPL ने 20% लाभ हानि का दावा किया, लेकिन NAFED ने कहा कि कोई ठोस सबूत नहीं

    • कोर्ट की टिप्पणी: “आर्बिट्रेटर ने बिना सबूत के 5% की जगह 20% लाभ माना, जो विवादास्पद है।”

  3. ब्याज दर पर सवाल:

    • REPL ने 12% साधारण ब्याज मांगा, लेकिन आर्बिट्रेटर ने मासिक चक्रवृद्धि ब्याज दिया।

    • कोर्ट का रुख: “यह दावे से अधिक राहत है। निचली अदालत को इस पर विचार करना चाहिए।”


न्यायमूर्तियों के प्रमुख उद्धरण:

  • न्यायमूर्ति ए.एस. चंदूरकर:
    “आर्बिट्रेशन पुरस्कार की समीक्षा करते समय अदालत को धारा 34 के दायरे में रहते हुए सभी आपत्तियों पर विचार करना आवश्यक है। यहाँ NAFED के तर्कों को नज़रअंदाज़ किया गया, जो न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन है।”


भविष्य की कार्रवाई:

  • मामला अब पुणे की जिला अदालत को वापस भेजा गया।

  • 3 महीने के भीतर नई सुनवाई पूरी करने का निर्देश।

  • NAFED द्वारा जमा की गई राशि अस्थायी रूप से जमा रहेगी।


विशेषज्ञ विश्लेषण:

  • वकील अशोक मेनन (वाणिज्यिक कानून विशेषज्ञ):
    “यह फैसला आर्बिट्रेशन पुरस्कारों की समीक्षा में न्यायालयों की सक्रिय भूमिका को रेखांकित करता है। धारा 34 के तहत ‘स्पष्ट अवैधता’ एक महत्वपूर्ण आधार है, जिसे अक्सर नजरअंदाज किया जाता है।”


(यह खबर अदालती दस्तावेज़ों पर आधारित है। किसी भी त्रुटि की सूचना हमें तुरंत दें।)


रिपोर्ट: न्यायिक आदेश एवं विशेषज्ञ विश्लेषण के आधार पर
स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय का आदेश (COARA-15-2024)

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