1973 के शेयर ट्रांजैक्शन 50 साल पुराने राजस्थान शेयर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बदला ब्याज का गणित |
सुप्रीम कोर्ट का फैसला 2025: 1973 के शेयर ट्रांजैक्शन में 6-9% ब्याज घोषित। जानें क्यों यह निर्णय वाणिज्यिक मामलों के लिए मिसाल बनेगा।
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शेयर ट्रांजैक्शन मामले में -राजस्थान सरकार को 9% ब्याज देना होगा
1 अप्रैल 2025, नई दिल्ली — भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने I.K. मर्चेंट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम राजस्थान राज्य मामले में ऐतिहासिक मामले में अपना फैसला सुनाया। यह मामला 1973 में हुए शेयर ट्रांसफर और उसके बाद 50 साल तक चले कानूनी संघर्ष से जुड़ा है। कोर्ट ने 6% से 9% ब्याज दर तय करते हुए कहा कि “वाणिज्यिक लेनदेन में देरी की कीमत सरकार को चुकानी होगी।”
विषय सूची (Table of Contents)
मामले की पृष्ठभूमि: 1973 का शेयर ट्रांजैक्शन
1973: I.K. मर्चेंट्स ने बीकानेर जिप्सम लिमिटेड (अब राजस्थान स्टेट माइन्स) के शेयर राजस्थान सरकार को ट्रांसफर किए।
विवाद का कारण: शेयर की कीमत को लेकर मतभेद। कंपनी का दावा—”शेयर की वैल्यू ₹11.50 प्रति है,” जबकि निवेशकों ने ₹70.50 प्रति शेयर की मांग की।
1978: I.K. मर्चेंट्स ने कलकत्ता हाई कोर्ट में केस दायर किया। 2001 में प्लीडिंग संशोधित कर ₹874 प्रति शेयर की मांग की गई।
कानूनी लड़ाई का सफर: हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक
हाई कोर्ट का फैसला (2021-2022):
2021: हाई कोर्ट ने शेयर की वैल्यू ₹640 प्रति तय की, लेकिन सिर्फ 5% साधारण ब्याज देने का आदेश दिया।
2022: ब्याज दर को 5% से घटाकर 6% किया गया, जिसे I.K. मर्चेंट्स ने चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय (2025):
मुख्य तर्क:
वाणिज्यिक लेनदेन होने के कारण ब्याज दर सेक्शन 34 सीपीसी के तहत बढ़ाई जा सकती है।
50 साल की देरी को “अस्वीकार्य” बताते हुए न्यायालय ने 6% से 9% ब्याज लागू किया।
राज्य सरकार को 2 महीने के भीतर बकाया राशि + ब्याज का भुगतान करने का निर्देश।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 3 मुख्य बिंदु
ब्याज दर का नया फॉर्मूला:
8 जुलाई 1975 से डिक्री तक: 6% साधारण ब्याज।
डिक्री के बाद से भुगतान तक: 9% साधारण ब्याज।
तर्क: “समय के साथ पैसे की वैल्यू कम होती है। सरकार को देरी की कीमत चुकानी होगी।”
वाणिज्यिक लेनदेन की परिभाषा:
कोर्ट ने कहा—”शेयर खरीद-बिक्री एक वाणिज्यिक ट्रांजैक्शन है। ऐसे मामलों में ब्याज दर बैंकों की वाणिज्यिक दरों के अनुरूप होनी चाहिए।”
सेक्शन 34 सीपीसी की व्याख्या:
ब्याज देने का अधिकार न्यायालय का विवेकाधिकार है, लेकिन यह “उचित और समान” होना चाहिए।
उदाहरण: 2024 के क्लेरिएंट इंटरनेशनल केस का हवाला देते हुए न्यायालय ने बाजार दर को आधार बनाया।
यह फैसला क्यों महत्वपूर्ण है?
निवेशकों के हितों की सुरक्षा:
सरकारी विभाग अब मनमाने ढंग से भुगतान में देरी नहीं कर सकेंगे।
वाणिज्यिक मामलों में पारदर्शिता:
सेक्शन 34 सीपीसी के तहत ब्याज दर तय करने के मानक स्पष्ट हुए।
ऐतिहासिक देरी के मामलों के लिए मिसाल:
50 साल पुराने मामलों में भी न्यायिक हस्तक्षेप संभव।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q1. सेक्शन 34 सीपीसी क्या है?
उत्तर: यह सिविल प्रक्रिया संहिता का वह प्रावधान है जो न्यायालय को डिक्री पर ब्याज दर तय करने का अधिकार देता है। वाणिज्यिक मामलों में यह दर 6% से अधिक हो सकती है।
Q2. 50 साल बाद भी ब्याज क्यों मिलेगा?
उत्तर: सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, “पैसे की समय-मूल्य (Time Value) को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। देरी से हुए नुकसान की भरपाई ब्याज के ज़रिए होगी।”
Q3. क्या यह फैसला अन्य सरकारी मामलों पर लागू होगा?
उत्तर: हाँ। यह निर्णय वाणिज्यिक लेनदेन वाले सभी मामलों के लिए एक गाइडलाइन है, चाहे एक पक्ष सरकार ही क्यों न हो।
निष्कर्ष: न्यायिक नज़रिए से एक मील का पत्थर
सुप्रीम कोर्ट का फैसला 2025 न केवल I.K. मर्चेंट्स के लिए, बल्कि उन सभी निवेशकों के लिए एक सबक है जो सरकारी विभागों के साथ वाणिज्यिक समझौते करते हैं। यह फैसला न्याय में विलंब, न्याय से इनकार के सिद्धांत को मजबूत करता है। भविष्य में, सरकारी विभागों को समय पर भुगतान और पारदर्शी वैल्यूएशन प्रक्रिया अपनानी होगी।
स्रोत: सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट (CIVIL APPEAL NOS. 4560-4563 OF 2025), 1 अप्रैल 2025
लेखक: Shruti Mishra, वरिष्ठ कानूनी विश्लेषक
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