supreme court of india सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने CMJ विश्वविद्यालय के भंग को वैध ठहराया, चांसलर नियुक्ति थी अवैध
(13 फरवरी, 2025 को सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय)

मामले की मुख्य बातें

  1. पृष्ठभूमि:

    • मेघालय विधानसभा ने 2009 में CMJ विश्वविद्यालय अधिनियम बनाकर शिलांग में निजी विश्वविद्यालय की स्थापना की।

    • चांसलर की नियुक्ति विवादास्पद रही। अधिनियम की धारा 14(1) के अनुसार, चांसलर की नियुक्ति के लिए विजिटर (राज्यपाल) की मंजूरी अनिवार्य थी, लेकिन विश्वविद्यालय ने 2010 में ही बिना मंजूरी के चांसलर नियुक्त कर लिया।

    • विजिटर ने 2013 में विश्वविद्यालय को अवैध प्रथाओं (फर्जी डिग्री, अनियमित प्रवेश, अनुमति रहित कैंपस) के आरोपों में भंग करने की सिफारिश की।

    • मेघालय सरकार ने धारा 48 के तहत 31 मार्च, 2014 को विश्वविद्यालय को भंग कर दिया।

  2. विवाद का केंद्र:

    • क्या चांसलर की नियुक्ति धारा 14(1) का उल्लंघन थी?

    • क्या भंग का आदेश प्राकृतिक न्याय और धारा 48 की प्रक्रिया के अनुसार था?

सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  1. चांसलर की नियुक्ति अवैध:

    • धारा 14(1) के अनुसार, चांसलर की नियुक्ति विजिटर की मंजूरी पर सशर्त है।

    • “मौन स्वीकृति” या “डीम्ड अप्रूवल” का कोई कानूनी आधार नहीं

    • K.R.C.S. Balakrishna Chetty बनाम मद्रास राज्य (1960) के मामले में “सब्जेक्ट टू” को “सशर्त” माना गया।

  2. भंग आदेश वैध:

    • विश्वविद्यालय ने UGC नियमों और CMJ अधिनियम का खुला उल्लंघन किया।

    • धारा 48(2) के तहत, राज्य सरकार ने नोटिस जारी कर और जवाब मांगकर उचित प्रक्रिया अपनाई।

    • G. Ganayutham बनाम भारत संघ (1997) के सिद्धांतों के अनुसार, न्यायिक समीक्षा केवल निर्णय प्रक्रिया तक सीमित है।

  3. हाईकोर्ट का रिमांड आदेश अमान्य:

    • डिवीजन बेंच ने प्रक्रिया को सही ठहराया, लेकिन मामले को वापस भेजना अनावश्यक था।

    • Nadekerappa बनाम पिल्लम्मा (2022) के अनुसार, रिमांड केवल अनिवार्य स्थितियों में ही हो सकता है।

महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान

प्रावधानविवरण
धारा 14(1), CMJ अधिनियमचांसलर नियुक्ति विजिटर की मंजूरी पर सशर्त।
धारा 48, CMJ अधिनियमविश्वविद्यालय भंग करने की प्रक्रिया: नोटिस, जवाब, और निष्पक्ष सुनवाई।
UGC नियम, 2003निजी विश्वविद्यालयों के मानकों और ऑफ-कैंपस केंद्रों पर प्रतिबंध।

पूर्व निर्णयों का संदर्भ

  1. K.R.C.S. Balakrishna Chetty बनाम मद्रास राज्य (1960):

    • “सब्जेक्ट टू” का अर्थ “सशर्त” होता है।

  2. G. Ganayutham बनाम भारत संघ (1997):

    • प्रशासनिक निर्णयों की न्यायिक समीक्षा वेडनेसबरी सिद्धांत तक सीमित।

  3. Nadekerappa बनाम पिल्लम्मा (2022):

    • रिमांड केवल अत्यावश्यक स्थितियों में ही संभव।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानूनी प्रक्रिया की पवित्रता और संस्थागत जवाबदेही सर्वोपरि है। CMJ विश्वविद्यालय का भंग छात्र हितों और शैक्षणिक मानकों की रक्षा के लिए आवश्यक था। यह निर्णय निजी शिक्षण संस्थानों के लिए कानूनी अनुपालन की महत्ता को रेखांकित करता है।


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