सुप्रीम कोर्ट ने पुणे की दुर्घटना मामले में आरोपियों को मुक्त किया: “कार्यस्थल सुरक्षा का अभाव अपराध नहीं, दुर्घटना थी”
सुप्रीम कोर्ट ने पुणे में दो कर्मचारियों की मौत के मामले में आरोपियों को बरी किया। जानें क्यों “लापरवाही” और “जानबूझकर जोखिम” में अंतर ने फैसले को प्रभावित किया।
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केस संख्या: क्रिमिनल अपील संख्या 2356/2024 (SLP(Crl.) 9928/2017)
पीठ: न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुय्यान और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका
तिथि: 7 मार्च, 2025
स्थान: नई दिल्ली
मामले का संक्षेप: 12 फीट की ऊँचाई पर कार्य करते हुए दो कर्मचारियों की मौत
सुप्रीम कोर्ट ने पुणे के एक दुकान के साइनबोर्ड पर काम कर रहे दो कर्मचारियों की विद्युत् दुर्घटना में मौत के मामले में आरोपी युवराज लक्ष्मीलाल कंथर और निमेश प्रवीणचंद्र शाह को धारा 304 (द्वितीय भाग) और 304A आईपीसी के आरोपों से मुक्त कर दिया। निचली अदालत और बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपियों को दोषी ठहराने का आदेश दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने “सबूतों की कमी और कानूनी विश्लेषण में त्रुटि” बताते हुए पलट दिया।
घटना की पृष्ठभूमि
27 सितंबर 2013: आरोपी युवराज (इंटीरियर डेकोरेटर) के दो कर्मचारी, सलाउद्दीन शेख और अरुण शर्मा, पुणे की एक दुकान के 12 फीट ऊँचे साइनबोर्ड पर लोहे की सीढ़ी से कार्य कर रहे थे।
दुर्घटना: विद्युत् झटके से दोनों की मौत। पुलिस ने आरोप लगाया कि आरोपियों ने सुरक्षा उपकरण (हेलमेट, रबर के जूते) नहीं दिए, जिससे जोखिम बढ़ा।
आरोप: धारा 304 (द्वितीय भाग) और 304A आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज।
निचली अदालतों के निर्णय में खामियाँ
ट्रायल कोर्ट (2017): “आरोपियों को पता था कि सुरक्षा उपकरण न देना जानलेवा है।”
हाईकोर्ट (2017): “आरोपियों पर गंभीर संदेह। उन्हें लकड़ी की मचान देनी चाहिए थी, लोहे की सीढ़ी नहीं।”
आरोपियों का पक्ष:
“यह एक दुर्घटना थी, कोई जानबूझकर लापरवाही नहीं।”
“मृतकों के परिवारों को ₹11 लाख मुआवजा और रोजगार दिया गया।”
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
धारा 304 (द्वितीय भाग) पर चोट:
“आरोप साबित करने के लिए जानबूझकर मौत का इरादा या ज्ञान जरूरी। यहाँ न तो इरादा था, न ही यह साबित हुआ कि आरोपियों को पता था कि सीढ़ी का उपयोग मौत का कारण बनेगा।”
न्यायमूर्ति भुय्यान: “साइनबोर्ड पर काम करना अपने आप में जोखिमभरा नहीं। सुरक्षा उपकरण न देना नागरिक उल्लंघन हो सकता है, लेकिन आपराधिक लापरवाही नहीं।”
धारा 304A (लापरवाही) भी खारिज:
“मामला केशुब महिंद्रा बनाम एमपी (1996) से अलग। भोपाल गैस कांड में जहरीले पदार्थ का रिसाव जानबूझकर था, यहाँ दुर्घटना अप्रत्याशित थी।”
कोर्ट ने कहा: “कार्यस्थल पर सुरक्षा मानदंडों का पालन न करना नियोक्ता की लापरवाही हो सकती है, लेकिन यह आईपीसी की धारा 304A के दायरे में तभी आएगा जब गंभीर उपेक्षा साबित हो।”
डिस्चार्ज का आधार:
“आरोप पत्र में कोई ओवरट एक्ट या साक्ष्य नहीं कि आरोपियों ने जानबूझकर जोखिम उठाया।”
न्यायाधीशों के प्रमुख उद्धरण
न्यायमूर्ति अभय ओका: “कानूनी प्रक्रिया में अनुमानों पर नहीं, ठोस सबूतों पर फैसला होना चाहिए। यहाँ सबूतों की कमी है।”
न्यायमूर्ति भुय्यान: “कार्यस्थल दुर्घटनाओं में नियोक्ता की जवाबदेही तय करने के लिए दोष सिद्धि जरूरी है, जो इस मामले में नहीं हुआ।”
फैसले का व्यापक प्रभाव
कॉर्पोरेट जगत के लिए राहत: कार्यस्थल दुर्घटनाओं में आपराधिक दायित्व साबित करना मुश्किल।
कानूनी मानक: धारा 304 और 304A के बीच अंतर स्पष्ट। “लापरवाही” और “जानबूझकर जोखिम” में फर्क जरूरी।
पीड़ित परिवारों के लिए: मुआवजे के बावजूद आरोपियों की सजा रद्द।
Click here to download the judgement |सुप्रीम कोर्ट ने पुणे कार्यस्थल दुर्घटना मामले में आरोपियों को मुक्त किया | धारा 304 vs 304A आईपीसी|
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SHRUTI MISHRA
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