सुप्रीम कोर्ट ने 1984 के बलात्कार मामले में लोक मल की अपील खारिज की, हाई कोर्ट का फैसला बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने 41 साल पुराने बलात्कार मामले में अपील खारिज की: “पीड़िता का बयान निर्णायक”
नई दिल्ली, 7 मार्च 2025
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 1984 के एक बलात्कार मामले में अपीलकर्ता लोक मल @ लोकू की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें लोक मल को आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और धारा 323 (जबरदस्ती) के तहत 5 साल की सजा सुनाई गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
19 मार्च 1984: पीड़िता (तत्कालीन बीए प्रथम वर्ष की छात्रा) लोक मल के घर लड़कियों को ट्यूशन पढ़ाने गई। आरोप है कि लोक मल ने उसे अकेले पाकर दरवाजा बंद कर दिया, जबरदस्ती की, और बलात्कार किया।
धमकी और देरी से एफआईआर: पीड़िता परिवार को आरोपी के परिजनों ने एफआईआर दर्ज करने से रोका। शिकायत 3 दिन बाद दर्ज की गई।
2010 में हाई कोर्ट का फैसला: ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए लोक मल को दोषी ठहराया गया।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्णय
पीड़िता का बयान विश्वसनीय:
कोर्ट ने कहा कि पीड़िता का बयान “अटल और विश्वसनीय” है। उसने क्रॉस-एग्जामिनेशन में भी अपने आरोपों पर डटे रहने का दावा किया।
मेडिकल रिपोर्ट की कमी को खारिज: न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले ने कहा, “हर बलात्कार मामले में शारीरिक चोट का होना जरूरी नहीं। पीड़िता के विरोध के बावजूद आरोपी ने उसे रुमाल से मुंह बंद कर दबाया था।”
माँ के चरित्र पर सवाल बेमानी:
लोक मल के वकील ने पीड़िता की माँ के “अनैतिक चरित्र” का हवाला देकर मामले को झूठा बताया। कोर्ट ने इसे “अस्पष्ट और असंबंधित” कहते हुए खारिज किया।
देरी से एफआईआर को स्पष्ट किया गया:
कोर्ट ने माना कि धमकियों के कारण एफआईआर में देरी हुई, जो पर्याप्त रूप से स्पष्ट है।
कोर्ट ने गुरनिट सिंह और भारवाड़ा भोगिनभाई के फैसलों का हवाला दिया:
“बलात्कार पीड़िता का बयान एक घायल गवाह के समान होता है। छोटे विरोधाभासों के आधार पर उसे खारिज नहीं किया जा सकता।”
“भारतीय संदर्भ में, पीड़िता के बयान को बिना सबूत के खारिज करना उसके साथ दूसरा अपराध है।”
निष्कर्ष: “न्याय में देरी, पर न्याय नहीं टला”
सजा बरकरार: लोक मल को 5 साल की सजा कायम रखी गई। हालांकि, कोर्ट ने रिहाई की संभावना पर विचार करने के लिए राज्य सरकार को 4 सप्ताह का निर्देश दिया।
ऐतिहासिक महत्व: 41 साल पुराने मामले में यह फैसला बलात्कार पीड़िताओं के अधिकारों को मजबूती देता है और यह स्पष्ट करता है कि “पीड़िता का विश्वसनीय बयान ही निर्णायक है।”
प्रभाव
यह फैसला बलात्कार मामलों में पीड़िताओं के बयानों के महत्व को रेखांकित करता है। साथ ही, यह संदेश देता है कि अपराधियों को देरी से भी सजा मिल सकती है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय भविष्य के मामलों में पीड़िताओं को न्याय की उम्मीद दिलाएगा।
लेखक: कानूनी संवाददाता, भारतीय न्याय व्यवस्था
स्रोत: सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (CRIMINAL APPEAL NO. 325 OF 2011)
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