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सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय: MSRTC को महादेव कृष्ण नाइक को 75% पिछला वेतन देने का आदेश

सर्वोच्च न्यायालय ने MSRTC के खिलाफ महादेव कृष्ण नाइक के मामले में फैसला सुनाया। जानें कैसे न्यायालय ने “सप्रेशियो वेरी” और “सजेस्टियो फाल्सी” को आधार बनाकर पिछले वेतन और सेवा लाभों का आदेश दिया।

सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय: MSRTC को देना होगा 75% पिछला वेतन

मामले की पृष्ठभूमि

महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) और बस चालक महादेव कृष्ण नाइक के बीच 1996 की एक दुर्घटना को लेकर लंबा विवाद चल रहा था। 10 मई 1996 को एक ट्रक और MSRTC की बस के बीच हुई टक्कर में दो यात्रियों की मौत हो गई थी। नाइक को दोषी ठहराते हुए 1997 में उनकी सेवा समाप्त कर दी गई। श्रम न्यायालय और बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी MSRTC के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन नाइक ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की।

प्रमुख तर्क और न्यायालय का विश्लेषण

1. MSRTC का “सप्रेशियो वेरी” और “सजेस्टियो फाल्सी”

सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि MSRTC ने श्रम न्यायालय के समक्ष MACT (मोटर वाहन दावा ट्रिब्यूनल) के निर्णय और अपने ही लिखित बयान को छिपाया। MACT में निगम ने स्वीकार किया था कि दुर्घटना का दोष ट्रक चालक पर था, लेकिन श्रम न्यायालय में नाइक को दोषी बताया। न्यायालय ने इसे “सप्रेशियो वेरी” (सत्य का दमन) और “सजेस्टियो फाल्सी” (झूठा सुझाव) माना।

2. पिछले वेतन पर निर्णय

न्यायालय ने Hindustan Tin Works v. Employees (1979) और Deepali Gundu Surwase v. Kranti Junior Adhyapak Mahavidyala (2013) जैसे पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि सेवा पुनर्स्थापना के साथ पिछला वेतन देना सामान्य नियम है। हालाँकि, नाइक ने स्वीकार किया कि वह “बदली” काम कर रहे थे। इस आधार पर सर्वोच्च न्यायालय ने 75% पिछला वेतन देने का आदेश दिया।

3. कानूनी प्रावधान

  • अनुच्छेद 226: नाइक ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की थी।

  • औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 11-A: श्रम न्यायालय को दंड की समीक्षा का अधिकार।

  • मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166: MACT में मुआवजे का दावा।


निष्कर्ष

सर्वोच्च न्यायालय ने MSRTC को निर्देश दिया कि वह महादेव कृष्ण नाइक को 75% पिछला वेतन (27 मई 1997 से सेवानिवृत्ति तक) और पूर्ण सेवानिवृत्ति लाभ दे। साथ ही, देरी पर 6% ब्याज और अतिरिक्त 2% ब्याज (3 महीने के भीतर भुगतान न होने पर) का प्रावधान किया गया। यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता का एक मिसाल है।


यह लेख न्यायिक प्रक्रिया, श्रमिक अधिकारों, और कॉर्पोरेट जवाबदेही पर प्रकाश डालता है। सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल बनेगा।

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