सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय कानून को दी प्राथमिकता: कोलंबियाई कंपनी और भारतीय फर्म के बीच विवाद पर ऐतिहासिक फैसला ……अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता
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- सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय कानून को दी प्राथमिकता: कोलंबियाई कंपनी और भारतीय फर्म के बीच विवाद पर ऐतिहासिक फैसला ……अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता
अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में भारतीय अदालतों को अधिकार, कोर्ट ने कहा— “समझौते का मूल कानून भारत का होगा”
नई दिल्ली, 18 मार्च 2025 — सुप्रीम कोर्ट ने कोलंबिया की कंपनी डिसऑर्थो एस.ए.एस. और गुजरात स्थित मेरिल लाइफ साइंसेज प्राइवेट लिमिटेड के बीच चले विवाद में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि भले ही मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) बोगोटा, कोलंबिया में होनी थी, लेकिन समझौते पर भारतीय कानून लागू होने के कारण भारतीय अदालतें मध्यस्थ नियुक्त करने के लिए सक्षम हैं। इस फैसले से अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों में भारतीय कानून की प्राथमिकता स्पष्ट हुई है।
केस की पृष्ठभूमि: क्लॉज का टकराव
2016 का समझौता: डिसऑर्थो और मेरिल ने मेडिकल उत्पादों के वितरण के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौता किया।
क्लॉज 16.5: समझौता भारतीय कानून के तहत होगा, और गुजरात की अदालतों को अधिकार क्षेत्र होगा।
क्लॉज 18: विवाद का समाधान कोलंबिया के बोगोटा में मध्यस्थता से होगा, जहां कोलंबियाई कानून लागू होगा।
विवाद: मेरिल ने भारतीय अदालतों के अधिकार क्षेत्र को चुनौती दी, जबकि डिसऑर्थो ने मध्यस्थ नियुक्ति की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ
“भारतीय कानून है प्रमुख”: चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि क्लॉज 16.5 स्पष्ट है—समझौते पर भारतीय कानून लागू होता है। मध्यस्थता समझौता भी इसी के दायरे में आएगा।
“बोगोटा सिर्फ वेन्यू, सीट नहीं”: कोर्ट ने कहा कि बोगोटा मध्यस्थता का स्थान (वेन्यू) है, न कि “सीट”। इसलिए, भारतीय अदालतें मध्यस्थ नियुक्त कर सकती हैं।
पक्षों की सहमति: दोनों कंपनियों ने कोर्ट में स्वीकार किया कि यदि भारत में मध्यस्थता हो, तो वे सहमत हैं।
फैसले का असर
भारतीय अदालतों को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता मामलों में अधिकार मजबूत हुआ।
डिसऑर्थो और मेरिल के बीच विवाद का निपटारा अब दिल्ली हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जज एस.पी. गर्ग की अध्यक्षता में होगा।
मध्यस्थता प्रक्रिया दिल्ली इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर के नियमों के तहत संचालित होगी।
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