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Supreme Court Rules Lottery Distributors Not Liable for Service Tax, Upholds Principal-Principal Relationship with States

सुप्रीम कोर्ट ने लॉटरी वितरकों को सेवा कर से मुक्त घोषित किया, राज्यों के साथ प्रधान-से-प्रधान संबंध को मान्यता 11 फरवरी, 2025 | नई दिल्ली by Shruti Mishra परिचय भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में केंद्र सरकार की अपीलों को खारिज करते हुए सिक्किम हाई कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा है।…

सुप्रीम कोर्ट ने लॉटरी वितरकों को सेवा कर से मुक्त घोषित किया, राज्यों के साथ प्रधान-से-प्रधान संबंध को मान्यता
11 फरवरी, 2025 | नई दिल्ली by Shruti Mishra

परिचय

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में केंद्र सरकार की अपीलों को खारिज करते हुए सिक्किम हाई कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा है। कोर्ट ने माना कि लॉटरी वितरक (जैसे फ्यूचर गेमिंग सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड) प्रधान-से-प्रधान संबंध के तहत कार्य करते हैं, न कि एजेंट के रूप में। अतः वे वित्त अधिनियम, 1994 के तहत सेवा कर के दायरे में नहीं आते। यह फैसला संविधान की सातवीं अनुसूची के प्रविष्टि 62 (राज्य सूची) के तहत “जुआ और सट्टेबाजी” पर राज्यों के एकाधिकार को मजबूती देता है, जिसमें लॉटरी शामिल है।

मामले की पृष्ठभूमि

विवाद वित्त अधिनियम, 1994 में किए गए संशोधनों से उत्पन्न हुआ, जिसमें लॉटरी वितरकों पर सेवा कर लगाने का प्रयास किया गया। प्रमुख संशोधन थे:

  1. 2003 में “व्यावसायिक सहायक सेवा”: सेवाओं के प्रचार/विपणन पर कर।

  2. 2010 संशोधन : लॉटरी आयोजन से जुड़ी गतिविधियों को कर योग्य बनाया।

  3. 2012 नेगेटिव लिस्ट व्यवस्था: “जुआ, सट्टा, या लॉटरी” को कर से बाहर रखा, लेकिन बाद में व्याख्याओं के माध्यम से कर लागू किया गया।

  4. 2015–2016 संशोधन: “लॉटरी वितरक” की परिभाषा और कर योग्य राशि के दायरे को विस्तारित किया।

प्रतिवादियों (सिक्किम सरकार के लॉटरी विक्रेताओं) ने इन संशोधनों को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि उनका लेन-देन सीधी खरीद-बिक्री है, न कि सेवा। सिक्किम हाई कोर्ट ने संशोधनों को असंवैधानिक घोषित किया, जिसके बाद केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान और संवैधानिक प्रविष्टियाँ

  1. वित्त अधिनियम, 1994:

    • धारा 65(19): “व्यावसायिक सहायक सेवा” की परिभाषा।

    • धारा 65(105): लॉटरी संचालन से जुड़ी गतिविधियों पर कर (2010)।

    • धारा 66D(i): “जुआ, सट्टा, या लॉटरी” को नेगेटिव लिस्ट में शामिल किया (2012)।

    • 2015–2016 संशोधन: नेगेटिव लिस्ट के अपवादों को समाप्त करने का प्रयास।

  2. संवैधानिक ढाँचा:

    • प्रविष्टि 62, राज्य सूची: राज्यों को “जुआ और सट्टेबाजी” पर कर लगाने का विशेष अधिकार।

    • प्रविष्टि 97, संघ सूची: अवर्गीकृत विषयों पर कर लगाने की अवशिष्ट शक्ति।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केंद्र प्रविष्टि 97 का उपयोग राज्यों के विशेष अधिकार क्षेत्र (प्रविष्टि 62) में दखल देने के लिए नहीं कर सकता।

निर्णय में विचारित पूर्व न्यायिक निर्णय

  1. बी.आर. एंटरप्राइजेज बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (1999):

    • लॉटरी को “जुआ” माना और राज्य सूची के अधिकार क्षेत्र में रखा।

  2. सनराइज एसोसिएट्स बनाम एनसीटी दिल्ली (2006):

    • लॉटरी टिकटों को “क्रियात्मक दावा” माना, जो “माल” की परिभाषा से बाहर हैं।

  3. के. अरुमुगम बनाम भारत संघ (2024):

    • लॉटरी टिकटों की खरीद-बिक्री को “सेवा” नहीं माना।

  4. भोपाल शुगर इंडस्ट्रीज बनाम एसटीओ (1977):

    • एजेंसी (न्यासी नियंत्रण) और प्रधान-प्रधान लेन-देन में अंतर स्पष्ट किया।

समझौतों का विश्लेषण

कोर्ट ने सिक्किम सरकार और वितरकों के बीच समझौतों की शर्तों पर गौर किया, जिनसे एजेंसी संबंध नकारा गया:

  1. सीधी खरीद: वितरकों ने थोक मूल्य पर टिकट खरीदे और न बिकने के जोखिम स्वयं वहन किए।

  2. क्षतिपूर्ति का अभाव: राज्य ने नुकसान की भरपाई नहीं की, जो प्रधान-प्रधान संबंध को दर्शाता है।

  3. स्वतंत्र पुनर्विक्रय अधिकार: वितरकों ने उप-एजेंटों की नियुक्ति राज्य के हस्तक्षेप के बिना की।

  4. न्यूनतम राजस्व गारंटी: बिक्री से स्वतंत्र, राज्य को निश्चित वार्षिक भुगतान।

कोर्ट ने कहा कि समझौतों में “एकमात्र खरीदार” और “वितरक” जैसे शब्द खरीदार-विक्रेता संबंध को दर्शाते हैं, न कि एजेंसी को।

न्यायालय का तर्क

  1. कोई सेवा प्रदान नहीं: वितरकों ने टिकट खरीदकर मुनाफे के लिए बेचे और जोखिम स्वयं उठाए। राज्य की भूमिका बिक्री के बाद समाप्त हो गई।

  2. क्रियात्मक दावा: लॉटरी टिकटें, क्रियात्मक दावा होने के नाते, धारा 66D(i) के तहत सेवा कर से मुक्त हैं।

  3. विधायी सक्षमता: लॉटरी पर कर लगाना राज्यों का विशेषाधिकार; केंद्र अवशिष्ट शक्तियों का दुरुपयोग नहीं कर सकता।

  4. संशोधन असंवैधानिक: 2010 के बाद के संशोधन राज्यों के अधिकार क्षेत्र में दखल देते हैं।

न्यायमूर्ति नागरत्न ने कहा, “राज्य का नियंत्रण नियामक है, एजेंसी नहीं। वितरक का मुनाफा प्रधान-प्रधान संबंध को सिद्ध करता है।”

प्रभाव

  • राज्यों की राजकोषीय स्वायत्तता: लॉटरी से राजस्व पर निर्भर राज्यों (जैसे सिक्किम) के अधिकार मजबूत।

  • व्यवसायों के लिए स्पष्टता: वितरकों को सेवा कर से मुक्ति, मुकदमेबाजी के जोखिम कम।

  • अवशिष्ट शक्तियों की सीमा: केंद्र राज्य सूची के विषयों पर कर नहीं लगा सकता।

निष्कर्ष

यह निर्णय केंद्र और राज्यों के बीच कराधान के संवैधानिक संतुलन को रेखांकित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “जुआ और सट्टेबाजी” से जुड़ी गतिविधियाँ राज्यों के अधिकार क्षेत्र में हैं, और केंद्र इन पर सेवा कर लागू नहीं कर सकता। यह फैसला लॉटरी व्यवसाय से जुड़े हितधारकों और राज्य सरकारों के लिए एक बड़ी राहत है।

पूर्ण निर्णय पढ़ें: सिविल अपील संख्या 4289-4290/2013, भारत का सुप्रीम कोर्ट


विधिक संवाददाता द्वारा
अधिक जानकारी के लिए वित्त अधिनियम, 1994 और भारतीय संविधान देखें।

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