2025 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय संपत्ति विवाद और सीमा अधिनियम पर नई रोशनी डालता है। जानें केस की पूरी कहानी, न्यायिक प्रक्रिया और इसके प्रभाव।

5 अहम बदलाव: सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के बिजली ओपन एक्सेस नियमों को किया मंजूर राजस्थान RERC नियम 2016

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान बिजली विनियमन आयोग – राजस्थान RERC नियम 2016 ओपन एक्सेस नियमों को वैध ठहराया। जानें कैसे यह फैसला उद्योगों, कैप्टिव पावर प्लांट्स और ग्रिड स्थिरता को प्रभावित करेगा।

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मामले की पृष्ठभूमि

सुप्रीम कोर्ट ने 1 अप्रैल, 2025 को बिजली ओपन एक्सेस नियम से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में अपना फैसला सुनाया। यह मामला राजस्थान बिजली विनियमन आयोग (RERC) द्वारा 2016 में बनाए गए नियमों की वैधता को चुनौती देने वाली कंपनियों की याचिकाओं से संबंधित था। मुख्य विवाद था:

  • क्या RERC को इंटर-स्टेट ओपन एक्सेस (राज्यों के बीच बिजली आपूर्ति) को रेगुलेट करने का अधिकार है?

  • क्या कैप्टिव पावर प्लांट्स (स्वयं की बिजली उत्पादन इकाइयों) पर लगाए गए जुर्माने और प्रतिबंध उचित हैं?

  • क्या 24 घंटे पहले सूचना देने की शर्त ग्राहकों के हितों के खिलाफ़ है?


सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुख्य बिंदु

सुप्रीम कोर्ट ने RERC के 2016 के नियमों को वैध ठहराते हुए कहा कि ये नियम बिजली ओपन एक्सेस नियम के तहत बनाए गए हैं और इनका उद्देश्य ग्रिड स्थिरता और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना है। फैसले के प्रमुख पहलू:

  • इंटर-स्टेट ओपन एक्सेस: RERC राज्य के भीतर बिजली वितरण को रेगुलेट कर सकता है, भले ही बिजली दूसरे राज्य से आती हो।

  • कैप्टिव पावर प्लांट्स: नियमों में की गई भेदभावपूर्ण व्यवस्था को गलत नहीं माना गया।

  • 24 घंटे पहले सूचना: यह शर्त ग्रिड प्रबंधन के लिए ज़रूरी है और उचित है।


इंटर-स्टेट ओपन एक्सेस पर ज़िम्मेदारी

याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि इंटर-स्टेट ओपन एक्सेस का रेगुलेशन केवल केंद्रीय आयोग (CERC) का काम है। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया:

  • RERC की भूमिका: राज्य के भीतर बिजली वितरण और ग्रिड प्रबंधन RERC के अधीन आता है, भले ही बिजली दूसरे राज्य से आए।

  • उदाहरण: सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्गों का उदाहरण देते हुए समझाया कि जिस तरह राज्य सड़कों पर टोल लगा सकते हैं, उसी तरह RERC राज्य के ग्रिड को मैनेज कर सकता है।


कैप्टिव पावर प्लांट्स पर प्रभाव

कई उद्योगों ने शिकायत की थी कि RERC के नियम कैप्टिव पावर प्लांट्स के खिलाफ़ हैं। कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा:

  • समान नियम: सभी बिजली उत्पादकों (चाहे कैप्टिव हों या डिस्कॉम) पर एक जैसे नियम लागू होते हैं।

  • ग्रिड डिसिप्लिन: कैप्टिव प्लांट्स को भी बिजली सप्लाई का शेड्यूल पहले बताना होगा, ताकि ग्रिड असंतुलन न हो।

  • जुर्माने का आधार: नियमों में जुर्माना लगाने का उद्देश्य ग्राहकों को अनुशासित करना है, न कि उन्हें नुकसान पहुँचाना।


ग्रिड स्थिरता और जुर्माने का प्रावधान

सुप्रीम कोर्ट ने RERC के नियमों में शामिल ग्रिड स्थिरता से जुड़े प्रावधानों को जायज़ ठहराया:

  • शेड्यूलिंग ज़रूरी: बिजली की मांग और आपूर्ति का पूर्वानुमान लगाने के लिए 24 घंटे पहले सूचना देना अनिवार्य है।

  • जुर्माने का तर्क: यदि कोई कंपनी अनियमित रूप से बिजली लेती है, तो ग्रिड की स्थिरता खतरे में पड़ सकती है। ऐसे में जुर्माना लगाना उचित है।

  • उदाहरण: 2014 में देशभर में ग्रिड फेल होने की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए ये नियम बनाए गए हैं।


आगे की राह

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद:

  • उद्योगों को अनुकूलन करना होगा: कंपनियों को अब बिजली की खरीदारी और उपयोग में RERC के नियमों का पालन करना होगा।

  • ग्रिड सुरक्षा बढ़ेगी: नियमों के कारण बिजली आपूर्ति अधिक पारदर्शी और स्थिर होगी।

  • कैप्टिव प्लांट्स के लिए राहत नहीं: कोर्ट ने कैप्टिव यूनिट्स की मांगों को खारिज कर दिया, इसलिए उन्हें नियमों के अनुसार काम करना होगा।


निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बिजली ओपन एक्सेस नियम के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगा। इससे न केवल ग्रिड प्रबंधन में सुधार होगा, बल्कि उद्योगों और उपभोक्ताओं के बीच निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी। हालाँकि, कैप्टिव पावर प्लांट्स और बड़े उद्योगों को अब अपनी रणनीतियाँ नए नियमों के अनुरूप ढालनी होंगी।

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