हाउसिंग विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने घटाया मुआवजा, 9% ब्याज दर बरकरार
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हाउसिंग विवाद: 2009 से चली आ रही कानूनी लड़ाई का अंत
नागपुर के एक हाउसिंग प्रोजेक्ट में फ्लैट की देरी से दी गई पॉजेशन को लेकर 14 साल तक चले विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च, 2025 को फैसला सुनाया। मामले में मनोहर बुरड़े ने नागपुर हाउसिंग बोर्ड (MHADA) के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी, जिसमें कोर्ट ने 10 लाख के मुआवजे को घटाकर 7.5 लाख किया और ब्याज दर 9% बनाए रखी। यह फैसला उपभोक्ता अधिकारों और सरकारी प्रोजेक्ट्स में पारदर्शिता के लिए एक मिसाल है।
मामले की पृष्ठभूमि: 2009 में खरीदा था 3BHK फ्लैट
2009 का समझौता: मनोहर बुरड़े ने 2009 में MHADA के ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट में 3BHK फ्लैट के लिए 4 लाख रुपये डाउन पेमेंट किया।
लॉटरी और किश्तें: 2010 में लॉटरी के जरिए फ्लैट आवंटित हुआ। बाकी रकम 8 किश्तों में जमा की, लेकिन 2013 तक भी पॉजेशन नहीं मिला।
शिकायत: 2017 में स्टेट कंज्यूमर फोरम (SCDRC) ने MHADA को 15% ब्याज के साथ पॉजेशन देने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों घटाया मुआवजा?
NCDRC का फैसला (2022): नेशनल कंज्यूमर फोरम ने ब्याज दर घटाकर 9% की और 10 लाख के मुआवजे को बरकरार रखा।
हाईकोर्ट का हस्तक्षेप: बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2022 में फैसला पलटते हुए 15% ब्याज बहाल किया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:
“MHADA एक सरकारी संस्था है। देरी में अधिकारियों की व्यक्तिगत लापरवाही नहीं है।”
“9% ब्याज उचित है, क्योंकि यह केस अन्य 100 मामलों को प्रभावित कर सकता था।”
“उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम” के तहत क्या हैं नियम?
धारा 2(1)(g): सेवा में कमी को “डेफिशिएंसी इन सर्विस” माना जाता है।
राहत: देरी होने पर पैसा वापसी + ब्याज + मुआवजा।
महत्वपूर्ण केस: बैंगलोर डेवलपमेंट अथॉरिटी बनाम सिंडिकेट बैंक (2007) में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि “अगर प्रोजेक्ट पूरा नहीं होता, तो अलॉटी को पूरा पैसा वापस मिलना चाहिए।”
फैसले का असर: MHADA और होम बायर्स के लिए सबक
सरकारी एजेंसियों के लिए: प्रोजेक्ट समय पर पूरा करना और पारदर्शिता बनाए रखना जरूरी।
उपभोक्ताओं के लिए:
शिकायत दर्ज करने में देरी न करें।
कंज्यूमर कोर्ट्स के फैसलों पर भरोसा रखें।
कानूनी प्रक्रिया: हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के बीच फैसलों में तालमेल की जरूरत।
महत्वपूर्ण कीवर्ड्स
फोकस कीवर्ड: हाउसिंग विवाद
अन्य कीवर्ड्स: NCDRC, मुआवजा, उपभोक्ता संरक्षण, ब्याज दर, MHADA, कंज्यूमर कोर्ट
यह फैसला उपभोक्ताओं और सरकारी एजेंसियों दोनों के लिए संतुलन बनाता है। एक तरफ, MHADA जैसी संस्थाओं को प्रोजेक्ट्स पूरे करने का दबाव है, तो दूसरी ओर, नागरिकों को यह विश्वास मिला है कि कानूनी प्रक्रिया उनके अधिकारों की रक्षा करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि “न्याय में तार्किक संतुलन” ही दीर्घकालिक समाधान है।
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