सुप्रीम कोर्ट ने कोमा में जीवित व्यक्ति को 48.7 लाख रुपये का मुआवजा: मोटर दुर्घटना दावे का ऐतिहासिक निर्णय
परिचय 10 फरवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने Civil Appeal No. 3066 of 2024 के तहत एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, जिसमें राजस्थान के एक कोमा पीड़ित प्रकाश चंद शर्मा को 48.7 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया। यह मामला न केवल 100% विकलांगता की गणना और चिकित्सा प्रमाणपत्रों के महत्व को उजागर करता है, बल्कि दीर्घकालिक न्यायिक देरी की समस्या पर भी प्रकाश डालता है।…
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परिचय
10 फरवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने Civil Appeal No. 3066 of 2024 के तहत एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया, जिसमें राजस्थान के एक कोमा पीड़ित प्रकाश चंद शर्मा को 48.7 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया। यह मामला न केवल 100% विकलांगता की गणना और चिकित्सा प्रमाणपत्रों के महत्व को उजागर करता है, बल्कि दीर्घकालिक न्यायिक देरी की समस्या पर भी प्रकाश डालता है।
मामले का संक्षिप्त विवरण
पैरामीटर | विवरण |
---|---|
दुर्घटना तिथि | 23 मार्च 2014 |
स्थान | अलवर, राजस्थान |
पीड़ित | प्रकाश चंद शर्मा (कोमा अवस्था में) |
चोट | सिर में गंभीर चोट, दिमागी क्षति, कैथेटर निर्भरता |
आरोप | IPC की धारा 279, 337, 338 |
दावा राशि | अनिर्दिष्ट (अस्पताल बिल: ₹1,71,155) |
न्यायिक प्रक्रिया का समयरेखा
चरण | अवधि | निर्णय |
---|---|---|
MACT (2017) | 3 वर्ष | ₹16.29 लाख |
हाईकोर्ट (2023) | 6 वर्ष | ₹19.39 लाख |
सुप्रीम कोर्ट (2025) | 2 वर्ष | ₹48.70 लाख |
कुल समय: 11 वर्ष (दुर्घटना से अंतिम निर्णय तक) |
मुख्य मुद्दे और न्यायालय की टिप्पणी
1. 100% विकलांगता का चिकित्सकीय प्रमाण: MACT की भूल
चिकित्सा बोर्ड का प्रमाणपत्र:
बोलने और चलने में अक्षमता।
मानसिक कार्यों का पूर्ण नुकसान।
दैनिक गतिविधियों के लिए 100% दूसरों पर निर्भरता।
MACT का तर्क: प्रमाणपत्र अविश्वसनीय, विकलांगता 50% मानी।
सुप्रीम कोर्ट का निरीक्षण:
राज कुमार बनाम अजय कुमार (2011) के अनुसार, चिकित्सा बोर्ड के प्रमाणपत्र को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
तलविंदर सिंह केस (2012): विशेषज्ञ राय को प्राथमिकता देना अनिवार्य।
गणना सुधार:
वार्षिक आय = ₹1,90,740 भविष्यिक आय (25%) = ₹2,38,425 गुणक (13) = ₹30,99,525 100% विकलांगता = ₹30,99,525
2. अटेंडेंट चार्जेस: अनदेखी की गई वास्तविकता
पीड़ित की स्थिति: 24×7 नर्सिंग केयर की आवश्यकता।
सुप्रीम कोर्ट का तर्क:
काजल बनाम जगदीश चंद (2020) के अनुसार, ₹5,000/माह अटेंडेंट चार्ज लागू।
कुल अटेंडेंट लागत: ₹5,000 x 12 x 13 = ₹7,80,000।
तुलनात्मक विश्लेषण: MACT vs हाईकोर्ट vs सुप्रीम कोर्ट
मुआवजा मद | MACT (₹) | हाईकोर्ट (₹) | सुप्रीम कोर्ट (₹) |
---|---|---|---|
स्थायी विकलांगता | 12,39,810 | 15,49,763 | 30,99,525 |
अटेंडेंट चार्ज | 0 | 0 | 7,80,000 |
दर्द-कष्ट | 2,00,000 | 2,00,000 | 8,00,000 |
कुल | 16,29,465 | 19,39,418 | 48,70,000 |
विशेषज्ञ राय: न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता
न्यायमूर्ति संजय करोल का कहना है:
“MACT को चिकित्सा बोर्ड के प्रमाणपत्रों को नज़रअंदाज़ करने के बजाय, उन्हें पुनः जाँच के लिए भेजना चाहिए। विशेषज्ञ राय को चुनौती देने का अधिकार केवल तकनीकी आधार पर होना चाहिए।”
डॉ. अर्चना शर्मा (न्यूरोलॉजिस्ट):
“कोमा पीड़ितों के लिए मुआवजा केवल चिकित्सा खर्च तक सीमित नहीं होना चाहिए। जीवनभर की देखभाल और मानसिक आघात को प्राथमिकता देनी चाहिए।”
सांख्यिकीय डेटा: भारत में गंभीर चोट वाले दावे
पैरामीटर | राष्ट्रीय औसत (2025) | इस मामले में |
---|---|---|
औसत मुआवजा | 12.5 लाख रुपये | 48.7 लाख रुपये |
निपटान अवधि | 8.2 वर्ष | 11 वर्ष |
विकलांगता दर | 45% | 100% |
निष्कर्ष: मानवीय पहलू को प्राथमिकता
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने तीन मुख्य संदेश दिए हैं:
चिकित्सा विशेषज्ञता का सम्मान: बिना पुनः जाँच के चिकित्सा प्रमाणपत्रों को निरस्त न करें।
दीर्घकालिक देखभाल की मान्यता: अटेंडेंट चार्जेस और मानसिक पीड़ा को मुआवजे में शामिल करें।
समयबद्ध न्याय: 11 साल की देरी पीड़ितों के जीवन को दोगुना कठिन बनाती है।
भविष्य की राह:
चिकित्सा बोर्ड सत्यापन: AI-आधारित डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से त्वरित प्रमाणीकरण।
मानकीकृत मुआवजा फॉर्मूला: गंभीर चोटों के लिए स्वचालित गणना प्रणाली।
“यह निर्णय न केवल एक परिवार को न्याय देता है, बल्कि उन हज़ारों पीड़ितों के लिए एक आदर्श स्थापित करता है जो न्यायिक व्यवस्था की जटिलताओं से जूझ रहे हैं।”
– अधिवक्ता मनीषा त्यागी, सुप्रीम कोर्ट
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1. 100% विकलांगता के लिए क्या मापदंड हैं?
शारीरिक अक्षमता (जैसे चलने/बोलने में असमर्थता)।
दैनिक गतिविधियों के लिए पूर्ण निर्भरता।
मानसिक कार्यक्षमता का पूर्ण नुकसान।
Q2. कोमा पीड़ितों के लिए विशेष मुआवजा प्रावधान क्या हैं?
K.S. मुरलीधर केस (2024): दर्द-कष्ट के लिए अलग से ₹6 लाख तक मुआवजा।
24×7 नर्सिंग केयर के लिए अटेंडेंट चार्जेस।
Q3. MACT दावे में चिकित्सा बोर्ड प्रमाणपत्र कैसे प्राप्त करें?
जिला अस्पताल से संपर्क करके चिकित्सा बोर्ड गठित करवाएँ।
सभी चिकित्सा रिपोर्ट्स और डायग्नोस्टिक टेस्ट जमा करें।
लेखक की टिप्पणी: यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका की उस संवेदनशीलता को दर्शाता है जो कानूनी प्रावधानों से आगे बढ़कर मानवीय पीड़ा को समझती है। आने वाले वर्षों में, यह केस गंभीर चोटों वाले दावों के मानकीकरण में मील का पत्थर साबित होगा।
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SHRUTI MISHRA
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