सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश : एक प्रेरणादायक न्यायिक यात्रा

supreme court of india सुप्रीम कोर्ट

Justice Surya Kant

जन्म: 10 फरवरी 1962 (हिसार, हरियाणा)
कार्यकाल: 05 अक्टूबर 2018 (हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस) से 24 मई 2019 (सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश) और सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी के अध्यक्ष (12 नवंबर 2024 से)
सेवानिवृत्ति तिथि: 09 फरवरी 2027


परिचय

इस आलेख में हम एक ऐसे सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश की न्यायिक यात्रा का विस्तार से वर्णन करेंगे, जिनका जन्म हिसार, हरियाणा में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ। इनकी कहानी शिक्षा, लगन और अटूट मेहनत की मिसाल है। इनके करियर में हर मोड़ पर नई ऊँचाइयों को छूने का रिकॉर्ड रहा है। इस प्रेरणादायक सफ़र के प्रत्येक पड़ाव को विस्तार से जानिए।


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

जन्म एवं परिवारिक पृष्ठभूमि:
10 फरवरी 1962 को हिसार (हरियाणा) में जन्मे, इन न्यायमूर्ति ने एक मध्यम वर्गीय परिवार में अपने जीवन की शुरुआत की। परिवार की साधारण पृष्ठभूमि ने उन्हें कड़ी मेहनत और लगन से आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।

शैक्षिक उपलब्धियाँ:

  • 1981: हिसार स्थित Government Post Graduate College से स्नातक
  • 1984: महारishi Dayanand University, Rohtak से कानून में स्नातक (Bachelor’s degree in Law)
  • 2011: कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र के Directorate of Distance Education से मास्टर्स में प्रथम श्रेणी प्रथम की उपाधि

प्रारंभिक करियर – वकालत की दुनिया में प्रवेश

वकालत की शुरुआत:
1984 में हिसार के जिला न्यायालय में वकालत की शुरुआत की। 1985 में अपनी प्रैक्टिस को नई दिशा देने हेतु, उन्होंने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में काम शुरू किया।

विशेषज्ञता के क्षेत्र:
न्यायमूर्ति ने मुख्यतः संवैधानिक, सेवा तथा नागरिक मामलों में विशेषज्ञता हासिल की। उन्होंने विभिन्न विश्वविद्यालयों, बोर्डों, निगमों, बैंकों और यहां तक कि उच्च न्यायालय का भी प्रतिनिधित्व किया।


महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ और पदोन्नति

सबसे युवा एडवोकेट जनरल का सम्मान:
7 जुलाई 2000 को उन्हें हरियाणा का सबसे युवा एडवोकेट जनरल नियुक्त किया गया। यह उपलब्धि उनके उत्कृष्ट कानूनी ज्ञान और समर्पण का प्रमाण है।

वरिष्ठ अधिवक्ता का मान:
मार्च 2001 में उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate) के रूप में नियुक्त किया गया, जिससे उनके करियर में एक नया मुकाम स्थापित हुआ।

न्यायिक सेवा में प्रवेश:
09 जनवरी 2004 को उन्हें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। इससे पहले वे हरियाणा के एडवोकेट जनरल के पद पर भी कार्यरत रहे।


राष्ट्रीय विधिक सेवा एवं अन्य समिति में योगदान

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA):
23 फरवरी 2007 को राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के गवर्निंग बॉडी के सदस्य के रूप में दो लगातार कार्यकाल (2007-2011) के लिए नियुक्त हुए। यह पद उनकी कानूनी निपुणता और समाज सेवा के प्रति समर्पण को दर्शाता है।

भारतीय लॉ इंस्टिट्यूट:
वर्तमान में, वे भारतीय लॉ इंस्टिट्यूट की विभिन्न समितियों के सदस्य हैं, जो कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय के अधीन एक प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्था है।


हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश

चीफ जस्टिस के रूप में कार्यभार संभालना:
05 अक्टूबर 2018 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाला। इस पद पर रहते हुए, उन्होंने न्यायिक सुधारों और त्वरित न्याय प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति

सुप्रीम कोर्ट में उन्नयन:
24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में उनका उन्नयन हुआ। यह भारत के न्यायिक तंत्र में उनकी प्रतिष्ठा का सर्वोच्च प्रमाण है। सुप्रीम कोर्ट में कार्य करते हुए, उन्होंने देश के प्रमुख मामलों में न्यायिक सिद्धांतों को दृढ़ता से स्थापित किया।

वर्तमान प्रशासनिक पद:
12 नवंबर 2024 से, वे सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं, जिससे वे न्यायिक सेवा के क्षेत्र में और अधिक सुधार एवं पारदर्शिता लाने में अग्रसर हैं।


भविष्य की योजना और सेवानिवृत्ति

सेवानिवृत्ति की तिथि:
उनकी नियोजित सेवानिवृत्ति 09 फरवरी 2027 को होगी। इस सेवानिवृत्ति के बाद भी, उनके द्वारा स्थापित मानदंड और न्यायिक सुधार भारतीय न्याय व्यवस्था में दीर्घकालिक प्रभाव छोड़ेंगे।


निष्कर्ष

इस सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश की यात्रा एक प्रेरणादायक कहानी है। हिसार की एक मध्यम वर्गीय पृष्ठभूमि से लेकर सुप्रीम कोर्ट के उच्चतम पद तक का उनका सफर, कड़ी मेहनत, प्रतिबद्धता और उत्कृष्टता का प्रतीक है।
इनकी उपलब्धियाँ न केवल न्यायिक क्षेत्र में, बल्कि भारतीय कानून एवं समाज सेवा में भी अमूल्य योगदान देती हैं। उनके कार्यकाल में लिए गए निर्णय और सुधार भविष्य में भी न्यायपालिका की दिशा तय करेंगे।


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