सुप्रीम कोर्ट ने वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों को मजबूती देते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि यदि संपत्ति प्राप्त करने वाला व्यक्ति वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल नहीं करता है, तो “मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन्स एक्ट, 2007” की धारा 23 के तहत संपत्ति का हस्तांतरण रद्द किया जा सकता है और उन्हें कब्जा वापस दिलाया जा सकता है। यह फैसला मध्य प्रदेश की एक बुजुर्ग महिला द्वारा अपने बेटे के खिलाफ दायर की गई याचिका पर आया है।
मामले की पृष्ठभूमि
वर्ष 1968 में खरीदी गई संपत्ति को माँ उर्मिला दीक्षित ने 7 सितंबर 2019 को अपने बेटे सुनील शरन दीक्षित के नाम गिफ्ट डीड के माध्यम से हस्तांतरित किया। इस डीड में स्पष्ट शर्त थी कि बेटा माता-पिता की जीवनभर देखभाल करेगा। डीड पंजीकरण के दो दिन बाद, बेटे ने एक “वचन पत्र” भी लिखा, जिसमें उसने स्वीकार किया कि यदि वह देखभाल नहीं करता है, तो माँ को संपत्ति वापस लेने का अधिकार होगा।
हालाँकि, दिसंबर 2020 में माँ ने धारा 23 के तहत उपखंड मजिस्ट्रेट के समक्ष शिकायत दर्ज की। उन्होंने आरोप लगाया कि बेटा संपत्ति को बेचने का प्रयास कर रहा है और उनके साथ दुर्व्यवहार करता है। उपखंड मजिस्ट्रेट ने गिफ्ट डीड को रद्द कर दिया, लेकिन बेटे ने कलेक्टर और हाई कोर्ट में अपील की। हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने बेटे के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसके बाद माँ ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट का तर्क
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस चुडालायिल टी. रविकुमार की पीठ ने कहा कि यह अधिनियम वरिष्ठ नागरिकों को “सामाजिक न्याय” और “गरिमापूर्ण जीवन” सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है। कोर्ट ने के.एच. नज़ार बनाम मैथ्यू के. जेकब (2019) और सुदेश छिकारा बनाम रामती देवी (2022) के मामलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि धारा 23 के दो मुख्य प्रावधान—
संपत्ति हस्तांतरण के साथ देखभाल की शर्त जुड़ी होना,
प्राप्तकर्ता द्वारा शर्त का उल्लंघन—इस मामले में पूरे होते हैं।
पीठ ने कहा, “बच्चों का यह सामाजिक और संवैधानिक दायित्व है कि वे बुजुर्द माता-पिता की देखभाल करें। अधिनियम का उद्देश्य त्वरित और सस्ता न्याय दिलाना है, इसलिए अधिकारियों को संपत्ति पर कब्जा वापस दिलाने का अधिकार होगा।”
फैसले का व्यापक प्रभाव
यह फैसला वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक बड़ी राहत है, खासकर उनके लिए जो संपत्ति हस्तांतरण के बाद उपेक्षा का शिकार होते हैं। अब अधिकारी न केवल गिफ्ट डीड को रद्द कर सकेंगे, बल्कि “कब्जा वापसी” का आदेश भी दे सकेंगे। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि इस कानून का उदार व्याख्या के साथ पालन होना चाहिए ताकि वरिष्ठजनों का सम्मान बना रहे।
निष्कर्ष
इस फैसले से साफ है कि भारतीय न्यायपालिका वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों को प्राथमिकता देती है। जस्टिस करोल ने कहा, “कानून की भावना यह है कि बुजुर्गों को उनके अधिकारों के लिए लंबी कानूनी लड़ाई न लड़नी पड़े।” यह मामला अन्य बच्चों के लिए भी एक सबक है कि माता-पिता की देखभाल उनका नैतिक दायित्व है, न कि संपत्ति प्राप्ति का सौदा।
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