इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ पीठ
न्यायाधीश: माननीय न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा एवं डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव
याचिकाकर्ता: अनिल पाठक एवं अन्य
प्रतिवादी: उत्तर प्रदेश राज्य एवं 4 अन्य
याचिकाकर्ता के वकील: श्री बृजेश कुमार केशरवानी, सुश्री ममता सिंह
प्रतिवादी के वकील: एएसजीआई, श्री अनूप तिवारी, सीएससी, श्री कृष्ण मोहन अस्ताना
मामले का सारांश:
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने SARFAESI अधिनियम, 2002 के तहत संपत्ति नीलामी में शेष 75% राशि जमा करने के लिए अतिरिक्त समय की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया। याचिकाकर्ताओं ने गोरखपुर स्थित एक संपत्ति की नीलामी में बोली लगाई थी, जिसके बाद उन्होंने 25% राशि (55.93 लाख रुपए) जमा की, लेकिन शेष 1.67 करोड़ रुपए का भुगतान नहीं कर सके। उन्होंने बैंक द्वारा ऋण आवेदन अस्वीकार किए जाने के कारण तीन महीने का अतिरिक्त समय मांगा था।
अदालत का निर्णय:
पीठ ने कहा कि “सुरक्षा हित (प्रवर्तन) नियम, 2002 के नियम 9(4)” के अनुसार, नीलामी राशि का शेष भाग 15 दिनों के भीतर या अधिकतम तीन महीने के विस्तारित समय में जमा किया जाना चाहिए। इस मामले में, बैंक ने पहले ही याचिकाकर्ताओं को 23 जनवरी, 2025 तक का अंतिम समय दिया था, जो नियमों में निर्धारित अधिकतम सीमा (90 दिन) है। अदालत ने स्पष्ट किया कि “सांविधिक प्रावधानों को नजरअंदाज करके समय सीमा आगे बढ़ाने का अधिकार न्यायालय के पास नहीं है।”
प्रमुख तर्क:
याचिकाकर्ताओं की ओर से:
बैंक द्वारा ऋण अस्वीकृत होने से शेष राशि जमा करने में असमर्थता।
गौरव गर्ग बनाम सिंडिकेट बैंक (2019) के निर्णय का हवाला देते हुए समय विस्तार की मांग।
बैंक का पक्ष:
याचिकाकर्ताओं को पहले ही 23 अक्टूबर, 2024 से 23 जनवरी, 2025 तक चार बार समय विस्तार दिया जा चुका।
SARFAESI नियमों के अनुसार, तीन महीने से अधिक विस्तार अवैध।
अदालत की टिप्पणी:
“SARFAESI अधिनियम का उद्देश्य बैंकों को ऋण वसूली में तेजी लाना है। नियमों का पालन अनिवार्य है।”
“यदि याचिकाकर्ता समय सीमा का पालन नहीं कर सकते, तो जमा राशि जब्त होगी और संपत्ति पुनर्नीलाम की जाएगी।”
निष्कर्ष:
अदालत ने याचिका को निरस्त करते हुए कहा कि “बैंक ने नियमों के अनुसार पर्याप्त रियायत दी है। जनहित में ऋण वसूली प्रक्रिया को लंबित नहीं किया जा सकता।” याचिकाकर्ताओं द्वारा जमा 25% राशि (55.93 लाख रुपए) जब्त करने और संपत्ति को पुनः नीलाम करने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
न्यायमूर्ति डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने कहा, “SARFAESI अधिनियम का उद्देश्य आर्थिक प्रगति को गति देना है। इसे न्यायालयों द्वारा कमजोर नहीं किया जा सकता।”
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