बैंक धोखाधड़ी

सुप्रीम कोर्ट ने ₹6.70 करोड़ के बैंक घोटाले में नंदकुमार सोनी को बरी किया: “सबूतों की कमी और संदेह पर नहीं टिक सकती सज़ा”

 “सबूतों की कमी और संदेह पर नहीं टिक सकती सज़ा” नई दिल्ली, 27 फरवरी 2025: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विजया बैंक, नासिक शाखा के ₹6.70 करोड़ के टेलीग्राफिक ट्रांसफर (TT) घोटाले में आरोपी नंदकुमार बाबुलाल सोनी को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया है। जस्टिस बी.आर. गवाई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन…

 “सबूतों की कमी और संदेह पर नहीं टिक सकती सज़ा”

नई दिल्ली, 27 फरवरी 2025: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने विजया बैंक, नासिक शाखा के ₹6.70 करोड़ के टेलीग्राफिक ट्रांसफर (TT) घोटाले में आरोपी नंदकुमार बाबुलाल सोनी को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया है। जस्टिस बी.आर. गवाई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि “संदेह, चाहे कितना भी गहरा क्यों न हो, सबूत की जगह नहीं ले सकता।”


मामले की पृष्ठभूमि: क्या था TT घोटाला?

  • 1997 में धोखाधड़ी: मुंबई की काल्पनिक फर्म ग्लोब इंटरनेशनल के नाम पर बैंक खाता खोलकर 12 नकली टीटी के जरिए ₹6.70 करोड़ की हेराफेरी की गई।

  • सोने की बरामदगी: 2001 में सीबीआई ने आरोपी नंदकुमार सोनी (ज्वैलर) की दुकान से 205 सोने की डिब्बियाँ (₹18 करोड़ मूल्य) जब्त कीं।

  • ट्रायल कोर्ट का फैसला: 2009 में नंदकुमार को आईपीसी की धारा 120B (साजिश) और 411 (चोरी की संपत्ति रखना) के तहत दोषी ठहराया गया।

  • हाई कोर्ट ने बैंक अधिकारियों को बरी किया, लेकिन नंदकुमार की सज़ा बरकरार रखी।


सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुख्य बिंदु

  1. सबूतों की कमी:

    • अदालत ने कहा कि जब्त सोने की डिब्बियों को ग्लोब इंटरनेशनल से जोड़ने वाला कोई ठोस सबूत नहीं है।

    • सोने पर M/s. चेनाजी नरसिंहजी के ब्रांड के निशान नहीं मिले, जिससे पहचान असंभव रही।

  2. विधिक प्रक्रिया में खामियाँ:

    • सीबीआई ने 4 साल बाद सोना जब्त किया, जिससे “गलत पहचान” की आशंका बढ़ी।

    • नंदकुमार के खिलाफ साजिश का कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं मिला।

  3. कानूनी सिद्धांतों की अनदेखी:

    • अदालत ने कहा कि “धारा 411 IPC के लिए चोरी की संपत्ति का ज्ञान होना जरूरी है,” जो साबित नहीं हुआ।

    • संदिग्धों को बचाने के लिए “इनोसेंस का प्रेज़म्प्शन” (निर्दोषता की धारणा) लागू किया गया।


न्यायालय की प्रमुख टिप्पणियाँ

  • जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा: “सज़ा के लिए सबूतों का पूरा सिलसिला चाहिए। यहाँ सिर्फ अटकलें थीं, जो कानूनी आधार नहीं बन सकतीं।”

  • जस्टिस बी.आर. गवाई: “सोने की पहचान न हो पाना मामले की रीढ़ था। प्रोसेक्यूशन अपना केस साबित करने में विफल रहा।”


नंदकुमार सोनी को मिली राहत

  • सोना वापसी: अदालत ने 205 सोने की डिब्बियाँ नंदकुमार को लौटाने का आदेश दिया।

  • बैंक की अपील खारिज: विजया बैंक को सोने पर दावा करने का अधिकार नहीं मिला।


विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया

  • वकील उदय गुप्ता (नंदकुमार के पक्ष में): “यह फैसला कानूनी प्रक्रिया की जीत है। सीबीआई ने सिर्फ संदेह पर केस बनाया था।”

  • कानूनविद् डॉ. राजीव शुक्ला: “यह केस याद दिलाता है कि सजा के लिए सबूतों का पूरा चेन होना चाहिए, न कि सिर्फ परिस्थितिजन्य आधार।”


निष्कर्ष: कानूनी प्रक्रिया की मजबूती

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में “निर्दोषता की धारणा” और “सबूतों का बोझ” के सिद्धांतों को मजबूती देता है। यह मामला अधिकारियों के लिए चेतावनी है कि संदेह के आधार पर नहीं, बल्कि ठोस सबूतों के साथ केस बनाया जाए।


✍️ लेखक: Shruti Mishra, वरिष्ठ कानून संवाददाता
स्रोत: सुप्रीम कोर्ट का आदेश (क्रिमिनल अपील सं. Download judgement 572_2010_17_1501_59703_Judgement_25-Feb-2025 (1)

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