Breaking news सहमति के आधार पर धारा 376 IPC मामले में FIR क्यों हुआ रद्द?
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ऐतिहासिक फैसला
24 मार्च, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के एक संवेदनशील मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने धारा 376 IPC (बलात्कार) के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया और स्पष्ट किया कि “सहमति” के अभाव में ही यौन संबंधों को बलात्कार माना जा सकता है। यह फैसला यौन अपराधों में सहमति का मुद्दा और कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग पर गहरा प्रभाव डालता है।
मामले की पृष्ठभूमि: ‘विवाह का वादा’ और यौन संबंध
शिकायतकर्ता का आरोप:
महिला ने आरोप लगाया कि जोथिरागवन (अपीलकर्ता) ने उसे विवाह का झूठा वादा देकर यौन संबंध बनाए।
तीन बार होटल में यौन संबंध बनाने के दौरान सहमति का अभाव बताया गया।
अपीलकर्ता का पक्ष:
जोथिरागवन ने दावा किया कि संबंध सहमति से थे और कोई विवाह का वादा नहीं दिया गया।
उच्च न्यायालय ने धारा 482 CrPC के तहत एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रमुख बिंदु
1. ‘सहमति’ और ‘विवाह के वादे’ में अंतर
कोर्ट ने कहा कि यौन संबंधों में सहमति केवल तभी अमान्य होती है, जब वह धोखे या जबरदस्ती से प्राप्त की गई हो। इस मामले में, महिला ने स्वीकार किया कि वह खुद होटल गई और अभियुक्त के साथ लगातार संपर्क में थी। न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन ने कहा, “सहमति के बाद बाद में वादा तोड़ने को बलात्कार नहीं माना जा सकता।”
2. FIR रद्द करने का आधार
कोर्ट ने धारा 482 CrPC के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए एफआईआर रद्द की।
प्रिथ्वीराजन बनाम स्टेट (2025) के मामले का हवाला देते हुए कहा गया कि “सहमति से यौन संबंध बनाने के बाद विवाह न करना, अपराध नहीं है।”
3. कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग
महिला की शिकायत में असंगत बयान पाए गए, जैसे कि तीन बार होटल जाना और संबंध बनाना।
कोर्ट ने कहा कि यह मामला कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग का उदाहरण है, जहाँ व्यक्तिगत रिश्ते को अपराध का रूप दे दिया गया।
न्यायिक प्रभाव: भविष्य के मामलों के लिए मिसाल
सहमति का स्पष्टीकरण: कोर्ट ने रेखांकित किया कि सहमति का अर्थ “हाँ” या “नहीं” से परे संदर्भों पर निर्भर करता है।
विवाह के वादे की सीमा: केवल झूठे वादे से प्राप्त सहमति ही अपराध मानी जाएगी, न कि टूटे वादे को।
कानूनी सावधानी: न्यायालयों को धारा 376 IPC के मामलों में शिकायत की प्रामाणिकता की गहन जाँच करनी चाहिए।
विशेषज्ञों की राय: क्या कहते हैं कानूनी जानकार?
डॉ. अमित शर्मा (वकील): “यह फैसला यौन अपराधों में सहमति के मानदंडों को स्पष्ट करता है। अब झूठे आरोपों पर अंकुश लगेगा।”
प्रो. अनिता राय (महिला अधिकार कार्यकर्ता): “फैसले से पीड़िताओं को न्याय मिलने में चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं, लेकिन कानूनी दुरुपयोग रोकना भी ज़रूरी है।”
निष्कर्ष: कानून और संबंधों का संतुलन
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने धारा 376 IPC के दुरुपयोग को रोकने में अहम भूमिका निभाई है। यह स्पष्ट कर दिया गया है कि सहमति और विवाह के वादे के बीच का अंतर कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यह फैसला न्यायालयों और आम नागरिकों दोनों के लिए एक मार्गदर्शक सिद्ध होगा।
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