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जाति-आधारित जनगणना को मोदी सरकार की मंजूरी : सामाजिक न्याय या चुनावी रणनीति ?

जाति-आधारित जनगणना केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दी 94 वर्षों बाद जाति जनगणना को मिली मंजूरी

 

जाति-आधारित जनगणना को राष्ट्रीय जनगणना में शामिल करने के फैसले को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने 30 अप्रैल 2025 को एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित गणना को शामिल करने की मंजूरी दी है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस वार्ता में बताया कि यह प्रक्रिया “पारदर्शी और संरचित” तरीके से की जाएगी, जिससे नीतिगत निर्णयों में सटीकता और प्रभावशीलता बढ़ेगी |

94 वर्षों बाद जाति जनगणना को मिली मंजूरी, जाति जनगणना का इतिहास: 1931 से 2025 तक

भारत में अंतिम बार पूर्ण जाति जनगणना 1931 में हुई थी। उसके बाद से, स्वतंत्र भारत में 1951 से 2011 तक की जनगणनाओं में केवल अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के आंकड़े ही प्रकाशित किए गए। 2011 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) करवाई, लेकिन यह मुख्य जनगणना का हिस्सा नहीं थी और इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गए।

94 वर्षों बाद 2025 में लिया गया यह निर्णय भारत के सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य को बदल सकता है। जाति जनगणना से न केवल हाशिए पर खड़े वर्गों को पहचान और अधिकार मिलेंगे, बल्कि यह सरकार को योजनाओं के निर्माण और क्रियान्वयन में भी सटीकता प्रदान करेगा। हालांकि, यह देखना होगा कि सरकार इसे पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से कैसे लागू करती है। समाज के लिए यह एक बड़ा कदम साबित हो सकता है, बशर्ते कि इसे राजनीतिक लाभ के बजाय समावेशी विकास के लिए उपयोग किया जाए।

 

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं: समर्थन और विरोध

सरकार का दावा है कि यह निर्णय सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। वहीं, विपक्षी दलों, विशेषकर कांग्रेस, ने इसे आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए लिया गया राजनीतिक निर्णय बताया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इसे “सामाजिक न्याय की नई क्रांति” करार दिया है, जबकि भाजपा ने कांग्रेस पर जाति जनगणना के मुद्दे का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया है।

नीतिगत प्रभाव: आंकड़ों का महत्व

जाति आधारित आंकड़ों की अनुपस्थिति के कारण कई कल्याणकारी योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन संभव नहीं हो पाता। सटीक आंकड़े मिलने से सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा जैसी योजनाओं को बेहतर तरीके से लक्षित करने में मदद मिलेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम सामाजिक असमानताओं को दूर करने में सहायक हो सकता है।

अन्य कैबिनेट निर्णय: किसानों और पूर्वोत्तर के लिए राहत

कैबिनेट ने 2025-26 के लिए गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) ₹355 प्रति क्विंटल तय किया है, जिससे देशभर के लगभग 5 करोड़ किसानों को लाभ होगा। इसके अलावा, पूर्वोत्तर क्षेत्र में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए ₹22,864 करोड़ की शिलॉंग-सिलचर हाईवे परियोजना को भी मंजूरी दी गई है।

सामाजिक समावेश या राजनीतिक गणित?

जाति जनगणना का यह निर्णय भारत के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। जहां एक ओर यह सामाजिक न्याय और समावेशी विकास की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकता है, वहीं दूसरी ओर इसके राजनीतिक निहितार्थों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आगामी समय में यह स्पष्ट होगा कि यह निर्णय वास्तव में सामाजिक असमानताओं को दूर करने में कितना प्रभावी साबित होता है।


आपकी राय क्या है? क्या यह निर्णय सामाजिक न्याय की दिशा में एक सकारात्मक कदम है या आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए लिया गया राजनीतिक निर्णय? अपने विचार कमेंट में साझा करें।

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