सुप्रीम कोर्ट का फैसला: ज़मीन का स्वामित्व पर ऐतिहासिक निर्णय
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पृष्ठभूमि
24 मार्च, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के कर्नूल जिले में 3.34 एकड़ ज़मीन का स्वामित्व के मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले में कोर्ट ने सरकारी ज़मीन पर नागरिकों के अधिकारों को मजबूती देते हुए, अपीलकर्ताओं को 70 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का आदेश दिया। यह मामला 1943 से चले आ रहे ज़मीन के स्वामित्व और सरकार द्वारा बिना मुआवज़े के ज़मीन वापस लेने के विवाद पर केंद्रित था।
मामले की पृष्ठभूमि: 80 साल पुराना विवाद
ज़मीन का इतिहास:
1943 में हरिजन गोविंदु ने पेरुगु स्वामी रेड्डी को ज़मीन गिरवी रखी।
1970 में कोर्ट की नीलामी में कुरुवा रमन्ना ने ज़मीन खरीदी और बाद में येरिकला रोसन्ना (अपीलकर्ताओं के पूर्वज) को बेच दी।
1995 में सरकार ने DIET भवन बनाने के लिए ज़मीन पर कब्जा कर लिया।
मुख्य मुद्दे:
क्या ज़मीन सरकारी “असाइन्ड लैंड” थी?
क्या सरकार ने कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए ज़मीन वापस ली?
क्या अपीलकर्ताओं को मुआवज़ा मिलना चाहिए?
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के प्रमुख बिंदु
1. पट्टा पासबुक का महत्व
कोर्ट ने माना कि पट्टा पासबुक ज़मीन के स्वामित्व का प्रमुख दस्तावेज है। अपीलकर्ताओं के पास 1971 के आंध्र प्रदेश एक्ट के तहत जारी पट्टा पासबुक और राजस्व रसीदें थीं, जो उनके कब्जे और स्वामित्व को साबित करती हैं। कोर्ट ने कहा, “पट्टा पासबुक में प्रविष्टियाँ कानूनी रूप से मान्य हैं, जब तक विपरीत साबित न हो।”
2. सरकारी प्रक्रिया में कमियाँ
सरकार ने आंध्र प्रदेश असाइन्ड लैंड एक्ट, 1977 का हवाला दिया, लेकिन “D-फॉर्म पट्टा” या असाइनमेंट रिकॉर्ड पेश नहीं किए।
मंडल राजस्व अधिकारी (MRO) ने स्वीकार किया कि ज़मीन वापस लेने से पहले कोई सार्वजनिक सुनवाई या नोटिस नहीं दिया गया।
3. मुआवज़े का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत मुआवज़ा दिए बिना ज़मीन नहीं ले सकती। हालाँकि, चूंकि DIET भवन बन चुका है, इसलिए अपीलकर्ताओं को 70 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया जाएगा।
भविष्य के मामलों के लिए सबक
सरकारी प्रक्रिया का पालन: ज़मीन वापस लेने से पहले नोटिस और सुनवाई अनिवार्य है।
पट्टा पासबुक की भूमिका: यह ज़मीन के कानूनी स्वामित्व का प्रमुख प्रमाण है।
मुआवज़े का अधिकार: संविधान के अनुच्छेद 300-A के तहत, बिना मुआवज़े के ज़मीन नहीं ली जा सकती।
निष्कर्ष: नागरिक अधिकारों की मजबूती
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने न केवल अपीलकर्ताओं को न्याय दिलाया, बल्कि यह साबित किया कि सरकारी अधिकारी मनमाने ढंग से नागरिकों की संपत्ति नहीं छीन सकते। यह फैसला भविष्य में ऐसे विवादों के समाधान के लिए एक मिसाल बनेगा।
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