“के. कृष्णमूर्ति बनाम आयकर विभाग: सुप्रीम कोर्ट ने आयकर धारा 271AAA के तहत दंड राशि घटाई”
परिचय 13 फरवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने के. कृष्णमूर्ति बनाम आयकर विभाग मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने आयकर अधिनियम की धारा 271AAA के तहत लगाए गए 4.78 करोड़ रुपए के दंड को घटाकर 2.49 करोड़ रुपए कर दिया। कोर्ट ने माना कि आयकर विभाग…
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परिचय
13 फरवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने के. कृष्णमूर्ति बनाम आयकर विभाग मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने आयकर अधिनियम की धारा 271AAA के तहत लगाए गए 4.78 करोड़ रुपए के दंड को घटाकर 2.49 करोड़ रुपए कर दिया। कोर्ट ने माना कि आयकर विभाग ने “अघोषित आय” की गणना में त्रुटि की थी।
मामले की पृष्ठभूमि
खोज अभियान: 25 नवंबर 2010 को आयकर विभाग ने के. कृष्णमूर्ति के परिसर में छापेमारी की। इस दौरान 2010-11 और 2011-12 के लिए अघोषित आय का खुलासा हुआ।
दंड का आधार: विभाग ने 2010-11 के लिए 4.78 करोड़ रुपए की अघोषित आय बताते हुए 10% (47.8 लाख रुपए) दंड लगाया।
अपील का सफर: करदाता ने आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT) और कर्नाटक हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन दंड बरकरार रहा।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख तर्क
धारा 271AAA की व्याख्या:
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दंड केवल “अघोषित आय” पर ही लगाया जा सकता है, जो खोज के दौरान पाई गई हो।
के. कृष्णमूर्ति ने 2.27 करोड़ रुपए की आय स्वीकार की थी और कर चुकाया था, इसलिए इस राशि पर दंड नहीं लगाया जा सकता।
दस्तावेज़ों की प्रामाणिकता:
शेष 2.49 करोड़ रुपए की आय संबंधित दस्तावेज़ (बिक्री दस्तावेज़) समाज से प्राप्त हुए थे। कोर्ट ने माना कि ये दस्तावेज़ खोज अभियान का हिस्सा थे, इसलिए इस राशि पर दंड वैध है।
पूर्व निर्णयों का हवाला:
दिलीप एन. श्रॉफ बनाम सीआईटी (2007) और आर्यन माइनिंग केस (2019) के फैसलों को आधार बनाते हुए कोर्ट ने कहा कि दंड लगाने से पहले अघोषित आय का स्पष्ट सबूत होना चाहिए।
निर्णय का प्रभाव
करदाताओं के लिए राहत: खोज के दौरान स्वीकार की गई आय पर दंड से छूट मिलेगी, बशर्ते कर और ब्याज का भुगतान किया गया हो।
आयकर विभाग के लिए संदेश: दंड लगाने से पहले अघोषित आय के सबूतों की गहन जाँच अनिवार्य।
कानूनी स्पष्टता: “अघोषित आय” की परिभाषा और “खोज के दौरान प्राप्त दस्तावेज़” की व्याख्या स्पष्ट हुई।
विशेषज्ञों की राय
वकील रजत मित्तल (सुप्रीम कोर्ट): “यह फैसला करदाताओं और विभाग के बीच संतुलन स्थापित करता है। अब विभाग मनमाने ढंग से दंड नहीं लगा सकेगा।”
कर विशेषज्ञ प्रो. अनुराधा शर्मा: “निर्णय से पारदर्शिता बढ़ेगी, लेकिन विभाग को जाँच प्रक्रिया और सख्त करनी होगी।”
भविष्य की संभावनाएँ
पुनर्विचार याचिका: आयकर विभाग द्वारा पुनर्विचार याचिका दायर करने की संभावना कम, क्योंकि कोर्ट ने कानूनी प्रावधानों की स्पष्ट व्याख्या की है।
विधायी सुधार: धारा 271AAA में “अघोषित आय” की परिभाषा को और स्पष्ट करने की माँग उठ सकती है।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय कर विवादों में पारदर्शिता और न्यायिक संतुलन की मिसाल पेश करता है। यह सुनिश्चित करता है कि आयकर विभाग मनमाने ढंग से दंड न लगाए, साथ ही करदाताओं को निष्पक्ष प्रक्रिया का अधिकार मिले। यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मार्गदर्शक भूमिका निभाएगा।
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SHRUTI MISHRA
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