उपभोक्ता संरक्षण और ऋण समझौता: सुप्रीम कोर्ट ने फ्लैट खरीदारों, बिल्डर और बैंक के बीच ऋण विवाद निपटान किया
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केस का संक्षिप्त विवरण- ऋण विवाद निपटान का मार्गदर्शन
कई फ्लैट खरीदारों ने आईसीआईसीआई बैंक और बिल्डर राजसंकेत रियल्टी के खिलाफ एनसीडीआरसी (राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग) में शिकायत दर्ज की थी। शिकायत में ऋण वसूली नोटिस और आरबीआई दिशा-निर्देशों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया। कोर्ट ने तीनों पक्षों (खरीदार, बिल्डर, बैंक) के बीच ऋण विवाद निपटान का मार्गदर्शन किया, जिसके तहत बकाया राशि के भुगतान और स्वामित्व हस्तांतरण की शर्तें तय हुईं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की मुख्य बातें
ऋण समझौते की शर्तें
बैंक की रियायत: आईसीआईसीआई बैंक ने 30% छूट देकर बकाया ब्याज और पूर्व-ईएमआई राशि को कम किया।
बिल्डर का योगदान: बिल्डर ने 50% पूर्व-ईएमआई भुगतान करने और फ्लैटों का स्वामित्व हस्तांतरित करने का वादा किया।
खरीदारों की जिम्मेदारी: खरीदारों ने शेष 5% राशि बिल्डर को अदा की और बैंक को मूलधन चुकाया।
समयसीमा और अनुपालन
बिल्डर को 20 दिसंबर 2024 तक पूर्व-ईएमआई का भुगतान करना था।
खरीदारों ने बैंक को मूलधन की शेष राशि 30 नवंबर 2024 तक जमा कर दी।
फ्लैटों का स्वामित्व 31 मार्च 2025 तक हस्तांतरित करने का निर्देश दिया गया।
इस समझौते का उपभोक्ताओं पर प्रभाव
उपभोक्ता अधिकारों की मजबूती
यह फैसला उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत बैंक और बिल्डर की जवाबदेही तय करता है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऋण समझौते में सभी पक्षों की सहमति और पारदर्शिता जरूरी है।
भविष्य के विवादों के लिए सबक
बैंकों और बिल्डरों को आरबीआई दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा।
खरीदारों को ऋण समझौते की शर्तें समझकर ही हस्ताक्षर करने चाहिए।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने उपभोक्ता संरक्षण और ऋण समझौता से जुड़े जटिल मामलों को सुलझाने में एक मिसाल कायम की है। यह दर्शाता है कि तीनों पक्षों (खरीदार, बिल्डर, बैंक) के बीच सहयोग और कोर्ट का हस्तक्षेप ऋण विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से निपटा सकता है। यह फैसला भविष्य में ऐसे विवादों के समाधान के लिए एक रोडमैप प्रदान करता है।
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SHRUTI MISHRA
ऋण विवाद निपटान, उपभोक्ता संरक्षण, बिल्डर-बैंक समझौता