सर्वोच्च न्यायालय ने तलाक के बाद दर्ज दहेज मामले को “प्रतिशोधात्मक” बताया, FIR खारिज की
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने “तलाक के बाद दहेज और प्रताड़ना के झूठे मामलों” पर अंकुश लगाने का ऐतिहासिक कदम उठाया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि “कानूनी प्रक्रिया को व्यक्तिगत प्रतिशोध का औजार नहीं बनाया जा सकता।” यह फैसला उन हज़ारों लोगों के लिए राहत है जो झूठे आरोपों से जूझ रहे हैं।
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सर्वोच्च न्यायालय ने तलाक के बाद दर्ज दहेज मामले को “प्रतिशोधात्मक” बताया, FIR खारिज की
केस नंबर SLP (Crl.) 9218/2024: सुमन मिश्रा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य में ऐतिहासिक फैसला
नई दिल्ली, 12 फरवरी 2025: सर्वोच्च न्यायालय ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत दहेज और मानसिक प्रताड़ना के झूठे आरोपों वाली FIR को खारिज करते हुए एक अहम फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने केस नंबर SLP 9218/2024 में कहा कि “तलाक की याचिका दायर होने के बाद दर्ज की गई FIR प्रतिशोध की भावना से प्रेरित है और कानून का दुरुपयोग है।”
मामले का संक्षिप्त विवरण (Case Snapshot)
केस नंबर: SLP (Crl.) No. 9218/2024 (Criminal Appeal No. 53643/2023)
पक्ष: सुमन मिश्रा एवं अन्य (अपीलार्थी) बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (प्रतिवादी)
आरोप:
IPC धारा 498A (पति या ससुराल वालों द्वारा क्रूरता), 504 (मानसिक प्रताड़ना), 506 (फ़ौजदारी धमकी)
दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3/4
मुख्य मुद्दा: क्या तलाक याचिका दायर होने के बाद दर्ज FIR को “प्रतिशोधात्मक” मानकर खारिज किया जा सकता है?
पृष्ठभूमि: तलाक और FIR का क्रम
2016: सुमन मिश्रा के बेटे (अपीलार्थी नंबर 3) और प्रतिवादी नंबर 2 प्रियंका मिश्रा का विवाह।
जून 2021: अपीलार्थी नंबर 3 ने बरेली परिवार न्यायालय में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत तलाक की याचिका दायर की।
अगस्त 2021: तलाक याचिका के 2 महीने बाद, प्रतिवादी ने IPC धारा 376 (बलात्कार) सहित गंभीर आरोपों वाली FIR दर्ज की।
जाँच: पुलिस ने धारा 376 का आरोप हटाकर केवल धारा 498A, 504, 506 IPC और दहेज अधिनियम के तहत चार्जशीट दायर की।
अदालत के प्रमुख निष्कर्ष (Key Judgements)
1. “FIR में अस्पष्ट और सामान्य आरोप, कोई ठोस सबूत नहीं”
पीठ ने Iqbal alias Bala बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2023) के निर्णय का हवाला देते हुए कहा:
“FIR में न तो घटना की तारीख़ है, न समय, और न ही आरोपियों के खिलाफ विशिष्ट आरोप। यह केवल परिवार के सभी सदस्यों पर ‘ओम्निबस अल्लेगेशन’ है।”
2. “तलाक याचिका के बाद FIR, कानून का दुरुपयोग”
Monica Kumar बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2008) के अनुसार:
“जब FIR तलाक या संपत्ति विवाद के बाद दर्ज की जाती है, तो अदालत को यह जाँचनी चाहिए कि क्या यह प्रतिशोध के उद्देश्य से है।”
3. “धारा 482 CrPC का उद्देश्य निर्दोषों को परेशानी से बचाना है”
पीठ ने Arun Jain बनाम NCT दिल्ली (2024) के फैसले को दोहराया:
“अगर चार्जशीट में पर्याप्त सबूत नहीं हैं, तो उच्च न्यायालय को FIR रद्द करने में संकोच नहीं करना चाहिए।”
प्रासंगिक कानूनी प्रावधान:
IPC धारा 498A: पति या रिश्तेदारों द्वारा दहेज के लिए क्रूरता।
CrPC धारा 482: उच्च न्यायालय का FIR रद्द करने का अधिकार।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961: दहेज लेने/देने पर प्रतिबंध।
निर्णायक न्यायिक मिसालें:
Mala Kar बनाम उत्तराखंड राज्य (2024): तलाक के बाद दर्ज FIR को “व्यर्थ” मानते हुए खारिज किया गया।
P.V. Krishnabhat बनाम कर्नाटक राज्य (2025): अस्पष्ट आरोपों वाली FIR को कानून का दुरुपयोग माना।
निष्कर्ष: अदालत का स्पष्ट संदेश – “कानून हथियार नहीं”
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले ने “तलाक के बाद दहेज और प्रताड़ना के झूठे मामलों” पर अंकुश लगाने का ऐतिहासिक कदम उठाया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि “कानूनी प्रक्रिया को व्यक्तिगत प्रतिशोध का औजार नहीं बनाया जा सकता।” यह फैसला उन हज़ारों लोगों के लिए राहत है जो झूठे आरोपों से जूझ रहे हैं।
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स्रोत: [सुमन मिश्रा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, 2025 INSC 203](पीडीएफ लिंक), सर्वोच्च न्यायालय का आदेश दिनांक 12.02.2025। By Shruti Mishra
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SHRUTI MISHRA
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