मोटर दुर्घटना मुआवजा: दोनों पैर गंवाने वाले अधिकारी को सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ाई राशि
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केस का संक्षिप्त विवरण- मोटर दुर्घटना मुआवजा
1999 में, बिहार के एक युवा ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर (बीडीओ) सवारी करते समय एक ट्रैक्टर-ट्रॉलर से टकरा गए। इस हादसे में उनके दोनों पैर काटने पड़े। ट्रिब्यूनल ने शुरुआत में 7.5 लाख रुपये मुआवजा दिया, जिसमें बीमा कंपनी को 60% भुगतान का आदेश दिया गया। हाईकोर्ट ने इसे बरकरार रखा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजा बढ़ाकर 16 लाख रुपये कर दिया और बीमा कंपनी को पूरी राशि चुकाने का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
सहभागी लापरवाही का खंडन
कोर्ट ने कहा कि स्कूटर चालक के पास लर्नर्स लाइसेंस होने भर से उसकी लापरवाही साबित नहीं होती।
ट्रॉलर चालक की रिपोर्ट में रैश ड्राइविंग का सबूत मिलने के बावजूद, ट्रिब्यूनल ने गलती से स्कूटर चालक को दोषी ठहराया।
सबूतों का पुनर्मूल्यांकन
एफआईआर और चार्जशीट में ट्रॉलर चालक को दोषी बताया गया था।
गवाहों के बयानों को नज़रअंदाज़ करना ट्रिब्यूनल की गलती थी।
मुआवजे का पुनर्गणन
कृत्रिम अंगों की लागत: 3 लाख रुपये के दावे को बढ़ाकर 9 लाख रुपये किया गया।
सहायक की लागत: 2 लाख रुपये (जीवनभर के लिए)।
शारीरिक कष्ट और जीवन स्तर में गिरावट: 5 लाख रुपये।
मुआवजे का विवरण
चिकित्सा और कृत्रिम अंग
दुर्घटना के बाद कृत्रिम अंग लगाने और उनके रखरखाव पर 9 लाख रुपये स्वीकृत।
अस्पताल और दवाओं पर 2 लाख रुपये का खर्च मान्य।
स्थायी अपंगता और मानसिक पीड़ा
दोनों पैरों के अंगभंग को स्थायी अपंगता मानते हुए 5 लाख रुपये दिए गए।
जीवनभर की पीड़ा और सुविधाओं के नुकसान के लिए 2 लाख रुपये।
सहायक की लागत
रोजमर्रा के कामों में मदद के लिए 2 लाख रुपये स्वीकृत।
फैसले का प्रभाव
बीमा कंपनियों के लिए सबक
दुर्घटना में मुख्य दोषी वाहन के बीमाकर्ता को पूरी जिम्मेदारी लेनी होगी।
लर्नर्स लाइसेंस धारक की उपस्थिति स्वतः लापरवाही नहीं मानी जाएगी।
पीड़ितों के अधिकार मजबूत
चिकित्सा बिल और भविष्य के खर्चों को मुआवजे में शामिल करना अनिवार्य।
संबंधित कीवर्ड्स
मोटर दुर्घटना मुआवजा
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
स्थायी अपंगता मुआवजा
बीमा कंपनी की जिम्मेदारी
सहभागी लापरवाही
कृत्रिम अंग व्यय
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने मोटर दुर्घटना मुआवजा से जुड़े मामलों में न्यायिक स्पष्टता दी है। यह सुनिश्चित किया गया कि पीड़ितों को उनके वास्तविक नुकसान के अनुरूप मुआवजा मिले, चाहे दुर्घटना को दशकों बाद ही निपटाया जाए। यह फैसला भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल बनेगा।
फोकस कीवर्ड: मोटर दुर्घटना मुआवजा, स्थायी अपंगता मुआवजा, बीमा कंपनी की जिम्मेदारी
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