सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: उपभोक्ता शिकायतों में “मियाद” (लिमिटेशन) पर रोक, निरंतर कार्रवाई के मामलों में समयसीमा लागू नहीं
नई दिल्ली, :
सुप्रीम कोर्ट ने उपभोक्ता विवादों में “मियाद” (लिमिटेशन पीरियड) के सख्त इस्तेमाल पर रोक लगाते हुए एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि यदि विवाद की कार्रवाई निरंतर जारी है और पक्षकार समाधान के लिए प्रयासरत हैं, तो समयसीमा का सिद्धांत लागू नहीं होगा। यह फैसला मुंबई के “माधव बाग” रीडेवलपमेंट प्रकरण में फ्लैट आवंटन को लेकर उठे विवाद पर आया है, जहाँ एनसीडीआरसी ने शिकायत को समयबाह्य माना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे पलट दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
2013 का समझौता: मुंबई के अंधेरी स्थित “माधव बाग” के मालिक एम/एस सहज अंकुर रियल्टर्स ने पुरानी इमारत को गिराकर नई बिल्डिंग बनाने का फैसला किया। मूल निवासी (किरायेदार) पुष्पा जगन्नाथ शेट्टी और अन्य को 20 सितंबर 2013 के समझौते के तहत नई बिल्डिंग के 8वें माले पर फ्लैट आवंटित करने का वादा किया गया।
2015 का इंडेमनिटी-कम-अंडरटेकिंग: निर्माण में देरी होने पर, 10 जनवरी 2015 को बिल्डर ने एक नया समझौता किया। इसमें कहा गया कि यदि 6 महीने में मंजूरी नहीं मिली, तो शेट्टी को फ्लैट नंबर 301 और 302 (कुल 1317 वर्ग फुट) मुफ्त में दिए जाएंगे।
एस्क्रो व्यवस्था: बिल्डर ने फ्लैट के कागजात को एक एस्क्रो एजेंट (मुख्तार माहेश जानी) के पास रखा। 2018 तक बिल्डर ने फ्लैट का पंजीकरण नहीं किया, जिसके बाद शेट्टी ने 6 फरवरी 2019 को एनसीडीआरसी में शिकायत दर्ज की।
एनसीडीआरसी का फैसला और सुप्रीम कोर्ट में अपील
एनसीडीआरसी ने शिकायत को “समयबाह्य” मानते हुए खारिज कर दिया। आयोग का तर्क था कि 10 जुलाई 2015 को कार्रवाई शुरू होनी चाहिए थी, जबकि शिकायत 2019 में दाखिल की गई। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को गलत बताया।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख तर्क
निरंतर कार्रवाई (Continuing Cause of Action):
कोर्ट ने कहा कि बिल्डर और शिकायतकर्ता के बीच 2015 से 2018 तक लगातार बातचीत और पत्राचार हुआ। एस्क्रो एजेंट ने भी दिसंबर 2018 में फ्लैट के कागजात शेट्टी को सौंपे। ऐसे में, “मियाद” की गणना 2015 से नहीं, बल्कि 2018 से होगी।
जस्टिस संजय करोल ने कहा, “जब तक पक्षकार समाधान के लिए प्रयासरत हैं, कार्रवाई निरंतर मानी जाएगी। समयसीमा का उद्देश्य उपभोक्ताओं के अधिकारों को कुचलना नहीं है।”
एस्क्रो व्यवस्था का महत्व:
एस्क्रो एजेंट के पास कागजात रखना यह साबित करता है कि बिल्डर ने अपने वादे को पूरा नहीं किया। शेट्टी ने फ्लैट के कब्जे के बाद ही शिकायत दर्ज की, जो समयसीमा के दायरे में है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की भावना:
कोर्ट ने जोर देकर कहा कि धारा 24-ए के तहत मियाद का सिद्धांत “सख्त नहीं, लचीला” होना चाहिए। यदि उपभोक्ता ने अपने अधिकारों के लिए ईमानदारी से प्रयास किए हैं, तो शिकायत को खारिज नहीं किया जा सकता।
फैसले का व्यापक प्रभाव
यह फैसला रीयल एस्टेट सेक्टर में उपभोक्ताओं के लिए एक बड़ी राहत है। अब बिल्डर “मियाद” के बहाने अपने वादों से मुकर नहीं सकेंगे।
एस्क्रो व्यवस्था को कानूनी मान्यता मिली, जिससे भविष्य में ऐसे विवादों में पारदर्शिता बढ़ेगी।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “तकनीकी कानूनी पेंच” उपभोक्ताओं के अधिकारों पर भारी नहीं पड़ सकते। इस फैसले से यह संदेश मिलता है कि न्यायपालिका आम आदमी के हितों को प्राथमिकता देती है। अब एनसीडीआरसी को मामले की सुनवाई कर 6 महीने में फैसला सुनाना होगा।
समाचार कोड: SC_ConsumerRights_2025
संवाददाता: विधिक समाचार नेटवर्क
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