supreme court of india सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: कर छूट पर फॉर्म सी/डी की अनिवार्यता को लेकर महत्वपूर्ण निर्णय
(12 फरवरी, 2025 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रिस्म सीमेंट केस में सुनाया गया निर्णय)

मामले की मुख्य बातें

  1. पृष्ठभूमि:

    • महाराष्ट्र सरकार ने PSI 1993 योजना के तहत पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों को कर छूट का लाभ दिया।

    • प्रिस्म सीमेंट को 1998 में एलिजिबिलिटी सर्टिफिकेट मिला, जिसके आधार पर 2012 तक ₹273.54 करोड़ की कर छूट प्राप्त हुई।

    • 2002 के वित्त अधिनियम ने CST अधिनियम की धारा 8(5) में संशोधन कर फॉर्म सी/डी जमा करना अनिवार्य बना दिया।

  2. विवाद का केंद्र:

    • क्या 2002 का संशोधन पूर्व प्राप्त छूट को रद्द कर सकता है?

    • क्या फॉर्म सी/डी की अनिवार्यता पूर्वप्रभावी (retrospective) रूप से लागू होगी?

सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  1. कानूनी व्याख्या:

    • धारा 8(5) CST अधिनियम का 2002 संशोधन केवल भविष्य (11 मई 2002 के बाद) के लिए लागू।

    • पहले प्राप्त एलिजिबिलिटी सर्टिफिकेट के आधार पर अर्जित अधिकार समाप्त नहीं किए जा सकते।

    • फॉर्म सी/डी की आवश्यकता संशोधन से पहले के लेन-देन पर लागू नहीं।

  2. न्यायिक उद्धरण:

    “कानून में स्पष्ट प्रावधान के बिना, पूर्व अर्जित अधिकारों को छीना नहीं जा सकता।”
    — MRF Ltd. vs Asstt. Commissioner (2006)

महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान

प्रावधानविवरण
धारा 8(4) CST अधिनियमअंतर्राज्यीय बिक्री पर कर छूट के लिए फॉर्म सी/डी जमा करना अनिवार्य।
धारा 8(5) CST अधिनियमराज्य सरकार को कर छूट देने का अधिकार, लेकिन 2002 संशोधन के बाद फॉर्म सी/डी अनिवार्य।

पूर्व निर्णयों का संदर्भ

  1. श्री दिग्विजय सीमेंट बनाम राजस्थान (2000):

    • धारा 8(5) के तहत फॉर्म सी/डी की आवश्यकता को माफ करने का अधिकार।

  2. दर्शन सिंह बनाम राम पाल (1991):

    • संशोधन केवल भविष्य के लिए लागू होते हैं, जब तक कानून में स्पष्ट न हो।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानूनी निश्चितता और विधिक अधिकारों की सुरक्षा कर प्रणाली का मूल आधार हैं। 2002 का संशोधन केवल भविष्य के लिए लागू होगा, जबकि पूर्व में प्राप्त छूट अक्षुण्ण रहेगी। यह निर्णय व्यवसायों और कर प्राधिकारियों दोनों के लिए कानूनी पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।

#कर_छूट_निर्णय #CST_अधिनियम #सुप्रीमकोर्ट_फैसला #वित्त_अधिनियम2002 #कानूनी_पारदर्शिता

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *