सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: गैर-कार्यकारी निदेशक पर चेक डिशनर केस खारिज
(13 फरवरी, 2025 को सुप्रीम कोर्ट का निर्णय)
मामले की पृष्ठभूमि
मुख्य विवाद:
अपीलकर्ता कमलकिशोर श्रीगोपाल तापड़िया, M/s D.S. कुलकर्णी डेवलपर्स लिमिटेड के स्वतंत्र गैर-कार्यकारी निदेशक थे।
कंपनी ने 2016-17 में ₹56 लाख और ₹70 लाख के चेक जारी किए, जो फंड की कमी के कारण डिशनर हो गए।
अपीलकर्ता न तो चेक पर हस्ताक्षरकर्ता थे और न ही कंपनी के वित्तीय प्रबंधन में शामिल।
हाईकोर्ट का निर्णय:
बॉम्बे हाईकोर्ट ने धारा 482 CrPC के तहत अपीलकर्ता की याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि “निदेशक की भूमिका परीक्षण का विषय है”।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
प्रतिनिधि उत्तरदायित्व की सीमाएँ:
धारा 141, NI एक्ट के अनुसार, केवल वही निदेशक दायित्व में होते हैं जो कंपनी के व्यवसाय के प्रभारी थे।
राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम बनाम हरमीत सिंह (2010): शिकायत में विशिष्ट आरोप अनिवार्य हैं।
एस.एम.एस. फार्मास्युटिकल्स बनाम नीता भल्ला (2005): केवल “निदेशक” पदनाम पर दायित्व नहीं थोपा जा सकता।
गैर-कार्यकारी निदेशक की भूमिका:
पूजा रवींदर देवीदासानी बनाम महाराष्ट्र राज्य (2014): गैर-कार्यकारी निदेशक दैनिक संचालन में शामिल नहीं होते।
अपीलकर्ता ने 3 मई, 2017 को पद से इस्तीफा दे दिया था, जो ROC को सूचित किया गया।
शिकायतों में कमियाँ:
चेक पर अपीलकर्ता के हस्ताक्षर नहीं।
शिकायतों में कोई विशिष्ट आरोप नहीं कि वह कंपनी के वित्तीय निर्णयों में शामिल थे।
महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान
प्रावधान | विवरण |
---|---|
NI एक्ट, धारा 138 | चेक डिशनर होने पर दंडिक कार्यवाही। |
NI एक्ट, धारा 141 | कंपनी के निदेशकों का प्रतिनिधि उत्तरदायित्व। |
कंपनी अधिनियम | गैर-कार्यकारी निदेशक की भूमिका और दायित्व। |
पूर्व निर्णयों का संदर्भ
राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम बनाम हरमीत सिंह (2010):
“शिकायत में निदेशक की सक्रिय भूमिका स्पष्ट होनी चाहिए।”
पूजा रवींदर देवीदासानी बनाम महाराष्ट्र (2014):
“गैर-कार्यकारी निदेशक पर दायित्व के लिए सबूत आवश्यक।”
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानूनी प्रक्रिया का कठोरता से पालन अनिवार्य है। बिना विशिष्ट आरोपों के, गैर-कार्यकारी निदेशकों को चेक डिशनर के मामलों में फंसाना मनमाना है। यह निर्णय कॉर्पोरेट प्रशासन में जवाबदेही और पारदर्शिता के महत्व को रेखांकित करता है।
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