गुजरात जमीन अधिग्रहण मुआवजा मामला: सुप्रीम कोर्ट ने बढ़ाया मुआवजा, 95 रुपये प्रति वर्ग मीटर का फैसला
गुजरात के रणोली गांव में जमीन अधिग्रहण मुआवजा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजा दर 30 से बढ़ाकर 95 रुपये प्रति वर्ग मीटर किया। जानें कैसे पेट्रोल पंप प्लॉट और विकास लागत ने बदला केस।
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जमीन अधिग्रहण मुआवजा: 34 साल के संघर्ष का अंत
गुजरात के रणोली गांव में 1989 में अधिग्रहित की गई जमीन के लिए मुआवजे को लेकर 34 साल तक चले कानूनी संघर्ष का अंत हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने 25 मार्च, 2025 को अपने फैसले में मुआवजा दर 30 रुपये से बढ़ाकर 95 रुपये प्रति वर्ग मीटर कर दिया। यह फैसला पेट्रोल पंप प्लॉट के मूल्यांकन और “विकास लागत” में कटौती पर आधारित है।
मामले की पृष्ठभूमि: कब और क्यों अधिग्रहित हुई जमीन?
अधिग्रहण का उद्देश्य: जीआईडीसी (Gujarat Industrial Development Corporation) को औद्योगिक विकास के लिए वडोदरा के रणोली गांव की सर्वे संख्या 179/3 की जमीन चाहिए थी।
अधिसूचना: भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 की धारा 4 के तहत 24 जुलाई, 1989 को अधिसूचना जारी की गई।
प्रारंभिक मुआवजा: 1992 में भूमि अधिकारी ने 11 रुपये प्रति वर्ग मीटर का प्रस्ताव रखा, जिसे स्वीकार नहीं किया गया।
कानूनी लड़ाई: 30 रुपये से 95 रुपये तक का सफर
रेफरेंस कोर्ट का फैसला (2011): 2011 में कोर्ट ने मुआवजा बढ़ाकर 30 रुपये प्रति वर्ग मीटर किया।
हाईकोर्ट ने खारिज की अपील: 2015 में हाईकोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा।
सुप्रीम कोर्ट का तर्क:
पेट्रोल पंप प्लॉट का उदाहरण: 1988 में जीआईडीसी ने पास के प्लॉट 7/1 को 180 रुपये प्रति वर्ग मीटर में पेट्रोल पंप के लिए आवंटित किया था।
मूल्य में वृद्धि: 1989 तक कीमतों में 5% बढ़ोतरी को ध्यान में रखते हुए 189 रुपये (गोलाकार 190 रुपये) माना गया।
कटौतियाँ:
विकास लागत (40%): सड़क, बिजली, पानी जैसी सुविधाएं बनाने के लिए।
बड़े क्षेत्र का प्रभाव (10%): बड़ी जमीन का बाजार मूल्य छोटे प्लॉट से कम होता है।
अंतिम गणना: 190 रुपये से 50% कटौती के बाद 95 रुपये प्रति वर्ग मीटर तय हुआ।
क्यों नहीं मिला 450 रुपये का मुआवजा?
आरोपी ने 450 रुपये प्रति वर्ग मीटर की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। दो प्रमुख कारण:
पेट्रोल पंप प्लॉट की शर्तें: जीआईडीसी ने प्लॉट 7/1 को लीज पर दिया था, जबकि अधिग्रहित जमीन फ्रीहोल्ड (सीधी मालिकाना) थी।
फलदार पेड़ों का दावा: APMC आनंद की रिपोर्ट में नींबू, आम के पेड़ों का जिक्र था, लेकिन आय का कोई प्रमाण नहीं मिला।
फैसले का किसानों पर प्रभाव
सकारात्मक पहलू: 34 साल बाद न्याय मिलने से भविष्य के मामलों में मुआवजा गणना का एक मापदंड तय हुआ।
सीख:
दस्तावेजी प्रमाण जरूरी: फलदार पेड़ों से आय का दावा करने के लिए बिक्री रसीदें या बैंक स्टेटमेंट जमा करें।
विकास लागत का असर: अधिग्रहित जमीन का उपयोग सीधे नहीं होता, इसलिए कटौतियाँ स्वाभाविक हैं।
यह फैसला किसानों और सरकार दोनों के लिए एक संतुलन बनाता है। जमीन अधिग्रहण में न्यायसंगत मुआवजा ही विकास और नागरिक अधिकारों के बीच पुल है।
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SHRUTI MISHRA
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