कैनरा बैंक बनाम अजीतकुमार: सर्वोच्च न्यायालय ने करुणामय नियुक्ति के नियमों को स्पष्ट किया
Case No. 255/2025 (SLP (C) 30532/2019) में ऐतिहासिक फैसला
नई दिल्ली, 11 फरवरी 2025: सर्वोच्च न्यायालय ने करुणामय नियुक्ति से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले (Civil Appeal No. 255/2025) में कैनरा बैंक की अपील को स्वीकार करते हुए केरल उच्च न्यायालय के आदेश को पलट दिया। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने फैसला सुनाया कि याचिकाकर्ता अजीतकुमार जी.के. को नियुक्ति का अधिकार नहीं है, लेकिन बैंक को उन्हें ₹2.5 लाख का मुआवजा देने का निर्देश दिया। यह फैसला 1993 की करुणामय नियुक्ति योजना और 2005 के एकमुश्त अनुग्रह राशि प्रावधान की व्याख्या करता है।
मामले का संक्षिप्त विवरण (Case Background)
केस नंबर: Civil Appeal No. 255/2025 (Arising from SLP (C) No. 30532/2019)
पक्षकार: कैनरा बैंक (अपीलार्थी) बनाम अजीतकुमार जी.के. (प्रतिवादी)
मुख्य मुद्दा: सेवा के दौरान मृत कर्मचारी के आश्रित को करुणामय नियुक्ति देने में आर्थिक संकट और आयु सीमा की भूमिका।
प्रमुख घटनाक्रम:
2001: अजीतकुमार के पिता (कैनरा बैंक क्लर्क) की सेवा के दौरान मृत्यु।
2002: बैंक ने 1993 की योजना के तहत आवेदन खारिज किया, जिसमें पारिवारिक पेंशन (₹4,637) और टर्मिनल लाभ (₹3.09 लाख) को आधार बनाया।
2015-2016: केरल उच्च न्यायालय ने बैंक के निर्णय को रद्द कर नियुक्ति और ₹5 लाख मुआवजे का आदेश दिया।
2025: सर्वोच्च न्यायालय ने बैंक की अपील स्वीकार की और उच्च न्यायालय के आदेश को पलटा।
अदालत के प्रमुख निष्कर्ष (Key Judgements)
1. करुणामय नियुक्ति का उद्देश्य स्पष्ट:
पीठ ने उमेश कुमार नागपाल बनाम हरियाणा राज्य (1994) और एन.सी. संतोष बनाम कर्नाटक (2020) के निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि यह नियुक्ति “आपातकालीन आर्थिक सहायता” के लिए है, न कि वंशानुगत अधिकार।
“परिवार को पेंशन और टर्मिनल लाभ मिलने से आर्थिक संकट का आधार ग़ायब होता है” – न्यायमूर्ति दत्ता।
2. 1993 की योजना बनाम 2005 का प्रावधान:
अदालत ने स्पष्ट किया कि 1993 की योजना के तहत आवेदन का मूल्यांकन करते समय आर्थिक स्थिति का विश्लेषण अनिवार्य है।
कैनरा बैंक बनाम एम. महेश कुमार (2015) के विपरीत, इस मामले में परिवार की स्थिर आय को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
3. आयु छूट पर सख्त रुख:
योजना के पैरा 5.1 के अनुसार, आयु में छूट केवल तभी दी जा सकती है जब आवेदक योग्यता और आर्थिक संकट की शर्तें पूरी करे।
अजीतकुमार की आयु (26 वर्ष 8 माह) और परिवार की स्थिर आय के कारण छूट का प्रश्न ही नहीं उठता।
प्रासंगिक कानूनी प्रावधान:
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 और 16: सार्वजनिक नौकरियों में समानता।
करुणामय नियुक्ति नीति, 1993: केवल “अत्यंत गरीब” परिवारों के लिए लागू।
एकमुश्त अनुग्रह राशि योजना, 2005: नौकरी के बजाय आर्थिक सहायता।
महत्वपूर्ण निर्णयों का उल्लेख:
State Bank of India v. Somveer Singh (2007): टर्मिनल लाभ और पेंशन को करुणामय नियुक्ति से जोड़ने की मनाही।
Union of India v. B. Kishore (2011): आर्थिक संकट के बिना नियुक्ति संवैधानिक समानता के विरुद्ध।
N.C. Santhosh v. State of Karnataka (2020): नियुक्ति के समय लागू योजना को प्राथमिकता।
निष्कर्ष: सार्वजनिक नौकरियों में पारदर्शिता की जीत
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले (Case No. 255/2025) ने करुणामय नियुक्ति के दुरुपयोग पर अंकुश लगाते हुए सार्वजनिक नौकरियों में पारदर्शिता सुनिश्चित की है। अदालत ने स्पष्ट किया कि “पद के बदले पद” की मानसिकता संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है। हालाँकि, मानवीय आधार पर ₹2.5 लाख के मुआवजे का आदेश समाज में न्याय के संतुलन को दर्शाता है।
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लेखक: Shruti Mishra
संदर्भ: [कैनरा बैंक बनाम अजीतकुमार, 2025 INSC 184]
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