सुप्रीम कोर्ट ने 47 साल पुराने संपत्ति विवाद का अंत करते हुए डिक्री लागू करने के निर्देश दिए
सुप्रीम कोर्ट ने 47 साल पुराने संपत्ति कब्जे के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जानें कैसे न्यायालय ने निष्पादन प्रक्रिया में देरी को “न्याय के खिलाफ” बताते हुए मकान मालिकों को राहत दी।
Share this:
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to print (Opens in new window) Print
संपत्ति-विवादमामले का संक्षिप्त विवरण
सुप्रीम कोर्ट ने सिविल अपील संख्या 3640-3642/2025 में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 47 वर्षों से लंबित संपत्ति कब्जे के मामले को निर्णीत किया। यह मामला तमिलनाडु के बेरहामपुर में “मधु मंदिर” बंगले से जुड़ी दो दुकानों के स्वामित्व और कब्जे को लेकर वर्ष 1980 से चल रहा था। कोर्ट ने निष्पादन प्रक्रिया में देरी को “न्याय के प्रति अन्याय” बताते हुए अपीलीय अदालतों के फैसले को पलट दिया और मकान मालिकों को संपत्ति का तत्काल कब्जा सौंपने के आदेश जारी किए।
मुख्य तथ्य
मूल विवाद: 1980 में आय्यवू उदयार (अपीलकर्ताओं के पूर्वज) ने रमानुजम और जगदीशन (विक्रेता) से संपत्ति खरीदने का समझौता किया, लेकिन विक्रेताओं ने बिक्री पंजीकृत नहीं करवाई।
वाद और डिक्री: 1983 में O.S. No. 514/1983 दायर कर विशिष्ट प्रदर्शन (Specific Performance) का डिक्री प्राप्त किया गया, जिसे 2004 में हाई कोर्ट और 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने पुष्ट किया।
निष्पादन में अवरोध: 2008 में संपत्ति का कब्जा लेते समय प्रतिवादी वी. राजमनी और एथिराजुलु ने आत्मदाह की धमकी देकर रोक लगाई और “कृषि किरायेदार” होने का दावा किया।
हाई कोर्ट का फैसला: 2019 में मद्रास हाई कोर्ट ने प्रतिवादियों के पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि मकान मालिकों को नए मुकदमे दायर करने होंगे।
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के प्रमुख बिंदु
निष्पादन प्रक्रिया की देरी पर कड़ी टिप्पणी:
कोर्ट ने राहुल एस. शाह बनाम जिनेंद्र कुमार गांधी (2021) का हवाला देते हुए कहा: “डिक्रीधारक को न्याय का फल मिलने में दशकों लग जाना न्याय प्रणाली पर प्रश्नचिह्न है।”
निर्देश: सभी निष्पादन याचिकाएँ 6 महीने में निपटाई जाएँ।
प्रतिवादियों के दावे खारिज:
कृषि किरायेदार का दावा निराधार: राजस्व रिकॉर्ड में प्रतिवादियों का नाम केवल 2008 से दर्ज है, जो विक्रेताओं के “नो ऑब्जेक्शन” के आधार पर जोड़ा गया।
धारा 47 सीपीसी का दुरुपयोग: प्रतिवादी मूल वाद में चुनौती न देकर निष्पादन चरण में साजिशपूर्ण विलंब कर रहे थे।
सिविल प्रक्रिया संहिता की व्याख्या:
Order XXI Rule 97: निष्पादन न्यायालय को किसी भी अवरोधक के दावे की जाँच करनी अनिवार्य है।
धारा 47 vs. Order XXI: प्रतिवादियों का आवेदन Order XXI Rule 97 के तहत होना चाहिए था, न कि धारा 47 के तहत।
हाई कोर्ट की गलती:
तथ्यों की अनदेखी: प्रतिवादी विक्रेताओं के भतीजे हैं और साजिश से डिक्री को अमान्य करने का प्रयास किया।
संशोधन आवेदन को गलत ठहराना: निष्पादन याचिका में संशोधन करने का अधिकार डिक्रीधारक को है।
निष्कर्ष और आदेश
तत्काल कब्जा: कोर्ट ने जिला न्यायालय को 2 महीने के भीतर पुलिस सहायता से संपत्ति का कब्जा अपीलकर्ताओं को सौंपने का निर्देश दिया।
सभी हाई कोर्ट को निर्देश: लंबित निष्पादन मामलों का डेटा एकत्र कर 6 महीने की समयसीमा लागू करें।
Author Profile

SHRUTI MISHRA
Share this:
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to print (Opens in new window) Print