सुप्रीम कोर्ट ने पिता के खिलाफ बाल यौन शोषण मामले में सजा संशोधित की | भारतीय न्याय प्रणाली का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने यौन शोषण के एक संवेदनशील मामले में सजा को संशोधित करते हुए कहा कि ‘जीवन कारावास’ का अर्थ प्राकृतिक जीवन नहीं, बल्कि 30 वर्ष की सजा होगी।
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नई दिल्ली, 7 मार्च 2025: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आज एक ऐतिहासिक फैसले में उत्तर प्रदेश के एक पिता, ज्ञानेंद्र सिंह @ राजा सिंह, के खिलाफ बाल यौन शोषण के मामले में सजा को संशोधित किया। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने फैसला सुनाया कि “जीवन कारावास” का अर्थ प्राकृतिक जीवन नहीं, बल्कि 30 वर्ष की सजा होगी।
घटनाक्रम: कब और क्या हुआ?
- 22 अक्टूबर 2015: अभियुक्त ने 9 वर्षीय बेटी के साथ छत पर यौन हमला किया।
- 28 अक्टूबर 2015: पत्नी राजनी (पीडब्ल्यू-1) ने चंदपुर पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज की।
- 16 सितंबर 2016: ट्रायल कोर्ट ने IPC की धारा 376(2)(f), 376(2)(i) और POCSO एक्ट के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई।
- 2 अगस्त 2019: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए सजा को “प्राकृतिक जीवन” तक बढ़ा दिया।
- 7 मार्च 2025: सुप्रीम कोर्ट ने सजा को 30 वर्ष तक सीमित किया और ₹5 लाख का जुर्माना लगाया।
कानूनी पहलू: IPC बनाम POCSO एक्ट
मामले की मुख्य बहस धारा 42A POCSO एक्ट और IPC की धारा 376 के बीच टकराव पर केंद्रित थी। अदालत ने स्पष्ट किया:
“जहाँ एक ही अपराध IPC और POCSO एक्ट दोनों के तहत दंडनीय है, वहाँ अधिक कठोर सजा वाला कानून लागू होगा।”
— न्यायमूर्ति संदीप मेहता
साथ ही, शिव कुमार बनाम कर्नाटक राज्य (2023) और नवास @ मुलानवास बनाम केरल राज्य (2024) के मामलों को उद्धृत करते हुए अदालत ने कहा कि “जीवन कारावास” को 14-30 वर्ष के बीच परिभाषित किया जा सकता है।
फैसले का समाज पर प्रभाव
यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में दो महत्वपूर्ण संदेश देता है:
- बाल यौन शोषण के मामलों में कठोरता बरती जाएगी।
- सजा का निर्धारण करते समय मानवीय पहलुओं को भी ध्यान में रखा जाएगा।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने न केवल पीड़िता को न्याय दिलाया है, बल्कि कानूनी अस्पष्टताओं को भी दूर किया है। यह मामला भविष्य में ऐसे केसों के लिए एक मिसाल बनेगा।
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SHRUTI MISHRA
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