सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: मोटर दुर्घटना पीड़ितों को मिलेगा पूरा मुआवजा, “योगदानकारी लापरवाही” का आरोप गलत
जस्टिस करोल ने कहा, “मोटर वाहन अधिनियम एक कल्याणकारी कानून है। इसका उद्देश्य पीड़ितों को त्वरित और न्यायसंगत मुआवजा दिलाना है, न कि तकनीकी बहसों में उलझाना।” यह फैसला दुर्घटना पीड़ितों के अधिकारों की मिसाल बनेगा।
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नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना में मारे गए पीड़ित के परिवार को 1.21 करोड़ रुपये का पूरा मुआवजा देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें पीड़ित को 25% योगदानकारी लापरवाही (Contributory Negligence) का दोषी ठहराया गया था। यह फैसला प्रभावती एवं अन्य बनाम बेंगलुरु मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के मामले में आया है, जहाँ एक बीएमटीसी बस ने मोटरसाइकिल सवार को टक्कर मार दी थी।
मामले की पृष्ठभूमि
6 जून 2016 की दुर्घटना: बेंगलुरु के क्रुपानिधि जंक्शन के पास बूबालन (38 वर्ष) अपनी मोटरसाइकिल पर सवार थे। बीएमटीसी बस (KA-01/F-9555) के चालक ने लापरवाही से टक्कर मारी, जिससे बूबालन की मौके पर ही मौत हो गई।
एमएसीटी का आदेश (2017): ट्रिब्यूनल ने बीएमटीसी को 75.97 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया। बूबालन की मासिक आय 62,725 रुपये (होटल रॉयल ऑर्किड में कार्यरत) मानी गई।
हाई कोर्ट का संशोधन (2020): हाई कोर्ट ने मुआवजा बढ़ाकर 77.5 लाख रुपये कर दिया, लेकिन पीड़ित को 25% लापरवाही का दोषी ठहराया।
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख तर्क
योगदानकारी लापरवाही का आरोप निराधार:
कोर्ट ने कहा कि “स्पॉट महज़ार” (Ex. P3) और गवाहों के बयानों में पीड़ित की लापरवाही का कोई सबूत नहीं मिला। हाई कोर्ट ने केवल “अनुमान” पर यह निर्णय लिया, जो गलत है।
जस्टिस संजय करोल ने जिजू कुरुविला बनाम कुंजुजम्मा मोहन (2013) के केस का हवाला देते हुए कहा, “बिना ठोस सबूत के पीड़ित को लापरवाह नहीं ठहराया जा सकता।”
आय का सही आकलन:
हाई कोर्ट ने बूबालन की आय 50,000 रुपये/माह मानी, जबकि ट्रिब्यूनल ने पे स्लिप (Ex. P16) के आधार पर 62,725 रुपये सही ठहराया।
कोर्ट ने प्राणाय सेठी केस (2017) के नियमों को लागू करते हुए 40% भविष्य की आय (फ्यूचर प्रॉस्पेक्ट्स) जोड़कर मुआवजा बढ़ाया।
मोटर वाहन अधिनियम की भावना:
सुनीता बनाम राजस्थान एसआरटीसी (2020) के हवाले से कहा गया कि “मोटर दुर्घटना केस में सबूत का स्तर ‘प्रीपॉन्डरेंस ऑफ प्रोबेबिलिटी’ होता है, न कि आपराधिक मामलों जैसा।”
मुआवजे की गणना (सुप्रीम कोर्ट द्वारा)
क्र. | मद | राशि (रुपये) | आधार |
---|---|---|---|
1. | मासिक आय | 62,725 | पे स्लिप (Ex. P16) |
2. | वार्षिक आय | 7,52,700 | (62,725 × 12) |
3. | भविष्य की आय (40%) | 3,01,080 | प्राणाय सेठी केस |
4. | कुल आय (वार्षिक) | 10,53,780 | (7,52,700 + 3,01,080) |
5. | 1/4 कटौती (निर्भरता) | 2,63,445 | (10,53,780 ÷ 4) |
6. | शुद्ध आय | 7,90,335 | (10,53,780 – 2,63,445) |
7. | गुणक (15) | 1,18,55,025 | (7,90,335 × 15) |
8. | अन्य मदें (कंसोर्टियम, अंतिम संस्कार) | 2,29,900 | |
कुल मुआवजा | 1,20,84,925 |
फैसले का व्यापक प्रभाव
इस फैसले से स्पष्ट हुआ कि योगदानकारी लापरवाही का आरोप लगाने के लिए ठोस सबूत चाहिए।
बीमा कंपनियाँ और परिवहन निगम अब मनमाने तरीके से पीड़ितों को दोषी नहीं ठहरा सकेंगे।
भविष्य की आय का सही आकलन पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाने में मदद करेगा।
निष्कर्ष
जस्टिस करोल ने कहा, “मोटर वाहन अधिनियम एक कल्याणकारी कानून है। इसका उद्देश्य पीड़ितों को त्वरित और न्यायसंगत मुआवजा दिलाना है, न कि तकनीकी बहसों में उलझाना।” यह फैसला दुर्घटना पीड़ितों के अधिकारों की मिसाल बनेगा।
समाचार कोड: SC_MotorAccident_2025
संवाददाता: विधिक समाचार नेटवर्क
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SHRUTI MISHRA
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