सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: NCH चेयरपर्सन की नियुक्ति रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने NCH चेयरपर्सन की नियुक्ति को अवैध घोषित किया परिचय 12 फरवरी, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कमीशन फॉर होम्योपैथी (NCH) के चेयरपर्सन पद पर डॉ. अनिल खुराना की नियुक्ति को अवैध ठहराया। कोर्ट ने कहा कि उनके पास “हेड ऑफ डिपार्टमेंट” के रूप में आवश्यक 10 वर्षों का अनुभव नहीं था।…
Share this:
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to print (Opens in new window) Print
सुप्रीम कोर्ट ने NCH चेयरपर्सन की नियुक्ति को अवैध घोषित किया
परिचय
12 फरवरी, 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल कमीशन फॉर होम्योपैथी (NCH) के चेयरपर्सन पद पर डॉ. अनिल खुराना की नियुक्ति को अवैध ठहराया। कोर्ट ने कहा कि उनके पास “हेड ऑफ डिपार्टमेंट” के रूप में आवश्यक 10 वर्षों का अनुभव नहीं था। यह निर्णय सार्वजनिक नियुक्तियों में कानूनी मानदंडों की सख्त पालना की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
मामले की पृष्ठभूमि
- NCH अधिनियम, 2020 की धारा 4: चेयरपर्सन के लिए 20 वर्ष का होम्योपैथी अनुभव और कम से कम 10 वर्ष “हेड ऑफ डिपार्टमेंट” के रूप में कार्य अनिवार्य है।
- विवाद का केंद्र: डॉ. खुराना ने दावा किया कि वे मई 2008 से असिस्टेंट डायरेक्टर के पद पर “हेड” के रूप में कार्यरत थे, जबकि डॉ. पाटिल ने इसका विरोध किया।
सुप्रीम कोर्ट का प्रमुख विश्लेषण
- अनुभव की गणना: कोर्ट ने पाया कि डॉ. खुराना का अनुभव 10 वर्ष से 9 महीने कम था।
- कानूनी व्याख्या: “हेड ऑफ डिपार्टमेंट” का अर्थ संगठनात्मक ढांचे में शीर्ष पदधारक से है, न कि मात्र प्रशासनिक भूमिका।
- दस्तावेजी कमियां: खुराना के अनुभव को साबित करने वाले दस्तावेज अधूरे थे, और सर्च कमेटी ने इसे “संदिग्ध” माना।
महत्वपूर्ण कानूनी संदर्भ
- University of Mysore v. C.D. Govinda Rao (1963): न्यायालयों को विशेषज्ञ समितियों के निर्णयों में हस्तक्षेप सीमित रखना चाहिए, परंतु कानूनी मानदंडों के उल्लंघन की स्थिति में यह आवश्यक है।
- Mahesh Chandra Gupta v. Union of India (2009): “पात्रता” एक वस्तुनिष्ठ कारक है, जिसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।
- M. Tripura Sundari Devi v. State of AP (1990): विज्ञापन में उल्लिखित योग्यता से विचलन “जनता के साथ धोखा” माना जाता है।
निष्कर्ष
यह निर्णय सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियों में पारदर्शिता और कानूनी अनुपालन के महत्व को उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “समतुल्यता” का दावा करने के लिए ठोस साक्ष्य आवश्यक हैं, और प्रशासनिक स्वेच्छाचारिता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
Share this:
- Click to share on WhatsApp (Opens in new window) WhatsApp
- Click to share on Facebook (Opens in new window) Facebook
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to share on Telegram (Opens in new window) Telegram
- Click to share on X (Opens in new window) X
- Click to print (Opens in new window) Print