सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना पीड़ित के परिवार को बढ़ाया मुआवज़ा: “आय के सबूतों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता”
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32 वर्षीय किसान की मौत के मामले में मुआवजा 20.61 लाख से बढ़ाकर 35.66 लाख रुपये किया, कोर्ट ने कहा— “भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित करना जरूरी”
नई दिल्ली, 17 मार्च 2025 — सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के एक मोटर दुर्घटना मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पीड़ित परिवार को मिलने वाले मुआवजे में भारी बढ़ोतरी की है। कोर्ट ने हरिहर-होस्पेट रोड पर 2012 में हुई घातक दुर्घटना में मारे गए 32 वर्षीय किसान के परिवार को मिलने वाले मुआवजे को 20.61 लाख रुपये से बढ़ाकर 35.66 लाख रुपये कर दिया। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम एक “कल्याणकारी कानून” है, जिसका उद्देश्य पीड़ितों के भविष्य को सुरक्षित करना है।
घटना की पृष्ठभूमि: एक दुर्घटना जिसने तबाह कर दिया परिवार
दुर्घटना: 5 मई 2012 को के.एच.एम. विरुपाक्षय्या (मृतक) अपनी बजाज बाइक पर सवार होकर हरिहर-होस्पेट रोड पर जा रहे थे। तालकल्लु गांव के पास एक फोर्ड कार (KA-36-M-1979) ने उनकी बाइक को टक्कर मार दी, जिससे उनकी मौत हो गई।
आरोप: कार चालक गिरीश बी. पर आईपीसी की धारा 279, 337, 338 और 304ए के तहत केस दर्ज हुआ।
परिवार की मुश्किलें: मृतक के पीछे छोड़ गए 6 परिवारीजन—बूढ़े माता-पिता, पत्नी और चार नाबालिग बच्चे। परिवार की आय का मुख्य स्रोत खेती, दूध बेचने और ट्रैक्टर किराए पर देने का व्यवसाय था।
कोर्ट की यात्रा: MACT से सुप्रीम कोर्ट तक
MACT का फैसला (2014): हरपनहल्ली मोटर दुर्घटना दावा ट्रिब्यूनल ने 25.49 लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया।
हाई कोर्ट का फैसला (2023): कर्नाटक हाई कोर्ट ने मुआवजा घटाकर 20.61 लाख रुपये कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट में अपील: परिवार ने मुआवजा बढ़ाने की मांग की, जबकि बीमा कंपनी ने हाई कोर्ट के फैसले का बचाव किया।
सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ: “आय के सबूतों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता”
मासिक आय का पुनर्मूल्यांकन:
MACT और हाई कोर्ट ने मृतक की आय 10,000 रुपये/माह और 8,000 रुपये/माह मानी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने बैंक प्रबंधक (PW5), फसल खरीदार (PW6), और दूध सहकारी समिति के रिकॉर्ड को आधार बनाते हुए आय 15,000 रुपये/माह मानी।
कोर्ट ने कहा: “सबूतों के आधार पर आय कम आंकना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।”
भविष्य की संभावनाओं पर 40% अतिरिक्त राशि:
कोर्ट ने सरला वर्मा vs DTC (2009) और प्रणय सेठी केस (2017) के नजीरों का हवाला देते हुए भविष्य की आय में वृद्धि को ध्यान में रखा।
ब्याज दर में वृद्धि:
मुआवजे पर ब्याज दर 6% से बढ़ाकर 7.5% प्रति वर्ष की गई।
अंतिम मुआवजा विवरण:
निर्भरता का नुकसान: 32.25 लाख रुपये
अन्य मदें (अंतिम संस्कार, संपत्ति हानि, संयोग हानि): 3.41 लाख रुपये
कुल मुआवजा: 35.66 लाख रुपये
कानूनी सिद्धांत: “मोटर वाहन अधिनियम कल्याणकारी है”
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं को रेखांकित किया:
भविष्य-केंद्रित दृष्टिकोण: कोर्ट ने कहा कि मुआवजे का उद्देश्य पीड़ितों को अतीत का हर्जाना देना नहीं, बल्कि भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
सबूतों का महत्व: बैंक लोन रिकॉर्ड, फसल बिक्री के दस्तावेज और दूध सहकारी समिति के भुगतान को “निर्णायक सबूत” माना गया।
संयुक्त परिवार की जिम्मेदारी: कोर्ट ने माना कि मृतक परिवार का मुखिया था और उसकी आय सभी सदस्यों के लिए महत्वपूर्ण थी।
विशेषज्ञ प्रतिक्रियाएँ
वकील राजीव मेहता: “यह फैसला उन परिवारों के लिए आशा की किरण है जिन्हें निचली अदालतों में न्याय नहीं मिलता।”
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अंजली रेड्डी: “किसानों की आय को वास्तविक आधार पर मानने का यह फैसला ऐतिहासिक है।”
बीमा कंपनी प्रतिनिधि: “हम कोर्ट के आदेश का पालन करेंगे, लेकिन यह फैसला भविष्य के दावों को प्रभावित कर सकता है।”
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